विश्व धरोहर कुतुबमीनार में इन दिनों पर्यटकों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. भीषण गर्मी के चलते भी हर दिन 500 से लेकर 600 तक पर्यटक विश्व धरोहर को देखने के लिए पहुंच रहे हैं. यहां पहुंचने वाले लोग अक्सर पूछ बैठते हैं कि यह कुतुबमीनार है तो सूर्य स्तंभ कहा है?
कुतुबमीनार को देखने के लिए दिल्ली के ही नहीं, बल्कि राजस्थान, गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, हिमाचल और हरियाणा से भी पर्यटक पहुंच रहे हैं. पर्यटक सीधे कुतुबमीनार के पास पहुंचते हैं, जहां वह इस बात पर चर्चा करते हैं कि यह कुतुबमीनार है या वेधशाला.
कुतुबमीनार में पहुंचने वाले लोग सबसे पहले कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में पहुंचते हैं जिसमें हिन्दू व जैन धर्म से संबंधित भगवानों की मूर्तियां लगी हैं.
पहले लोग सिर्फ कुतुबमीनार को देखने के लिए पहुंचते थे, लेकिन अब विवादित मस्जिद भी उनके एजेंडे में शामिल हो गया है.
कुतुबमीनार को यूनेस्को द्वारा भारत के सबसे पुराने वैश्विक धरोहरों की सूचि में भी शामिल किया गया है. इस आर्टिकल में हम आपको कुतुबमीनार से जुड़ी और कुछ खास जानकारी के बारे बताने जा रहे हैं.
कुतुबमीनार दुनिया की सबसे बड़ी इमारत है जिसकी ऊंचाई 72.5 मीटर है. मोहाली की फतह बुर्ज के बाद भारत की सबसे बड़ी मीनार में कुतुबमीनार का नाम आता है. कुतुब मीनार के आस-पास कई काम्प्लेक्स है जो कि यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी है.
कुतुबमीनार का निर्माण सन् 1193 में दिल्ली के पहले मुस्लिम गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा करवाया गया था. उस वक्त उन्होंने सिर्फ बेसमेंट और पहली मंजिल बनवाई थी.
कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनकाल में इस इमारत का निर्माण नहीं हो पाया था. इसके बाद दिल्ली के सुल्तान कुतुब-उद-दिन ऐबक के उत्तराधिकारी और पोते इल्तुमिश ने करवाया था.
कुतुबमीनार की पांचवी और अंतिम मंजिल का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने करवाया, लेकिन सन 1508 में भयंकर भूकंप की वजह से कुतुब मीनार को काफी नुकसान झेलना पड़ा था.
कुतुबमीनार दक्षिण दिल्ली के महरौली में स्थित है, जिसे लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया है और उनपर कुरान की आयतें लिखी हुई है. पत्थरों पर फूल बेलों की महीन नक्काशी की गई है.
कुतुबमीनार भारत में बनी ऐतिहासिक मीनार की भव्यता और आर्कषण के चर्चे दुनियाभर में होते हैं, क्योंकि जो भी इस मीनार को देखने आता है, इसको देखता ही रह जाता है.
कुतुबमीनार में सन 1974 से पहले आम लोगों के लिए खुला हुआ था, लेकिन 4 दिसंबर, 1981 में यहां आए लोगों के साथ एक भयानक हादसा हुआ, जिसमें 45 लोगों की मौत हो गई. इसके बाद से इमारत प्रवेश पूरी तरह से बंद कर दिया गया.