आमतौर पर युद्ध कई हफ्तों, महीनों तक चलते हैं. लेकिन इतिहास में ऐसे भी लड़ाइयां हुई हैं, जो कई सालों तक चलती रही हैं. हालांकि, आज की कहानी World Shortest War की है, जो महज 38 मिनट तक चला. इस युद्ध को इतिहास में Anglo-Zanzibar War के तौर पर दर्ज किया गया है. ऐसे में आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर एंग्लो-जांजीबार युद्ध क्यों हुआ? अगर युद्ध हुआ तो वो क्या वजह थी, जिसके चलते सिर्फ 38 मिनट में ही ये खत्म हो गया. आइए इस युद्ध से जुड़े इन सवालों को जानते हैं.
दरअसल, 1890 में ब्रिटेन और जर्मनी के बीच Heligoland-Zanzibar Treaty नाम से एक संधि हुई. इस संधि के तहत दोनों देशों को पूर्वी अफ्रीका के इलाकों पर राज करने के लिए विशिष्ट क्षेत्र दिए गए. हेलिगोलैंड-जांजीबार संधि के तहत जांजीबार को अंग्रेजों को सौंपा गया, जो एक द्वीप था. जबकि इसके पास में मौजूद मुख्य भूमि तंजानिया के निकटवर्ती क्षेत्र जर्मनों को दिए गए. इस तरह जांजीबार को ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बना दिया गया.
ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बनने के बाद अंग्रेजों ने इस इलाके पर शासन के लिए जांजीबार के पांचवें सुल्तान हममद बिन थुवैनी को चुना. सब कुछ ठीक-ठाक और शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा था. तभी अगस्त 1896 में सुल्तान की मौत हो गई. वहीं, सुल्तान की मौत के चंद घंटों के भीतर ही थुवैनी का भाई खालिद बिन बरगश ने जांजीबार पर दावा करते हुए गद्दी संभाल ली. उसने ऐसा करने से पहले अंग्रेजों से बात तक नहीं की.
ब्रिटेन ने अपनै सैनिकों को इकट्ठा किया और फिर युद्ध की शुरुआत कर दी. एक तरह ब्रिटेन की सेना थी, तो दूसरी ओर जांजीबार की. ब्रिटिश जहाजों ने जांजीबार के किले पर हमला बोल दिया. सिर्फ दो मिनट के भीतर ही खालिद के तोप-गोले और हथियार तबाह हो गए. वहीं, किले को लकड़ी से बनाया गया था, जिसमें आग लग गई और वह धर-धराकर जमींदोज हो गया.
युद्ध के समय किले में 3000 के करीब सैनिक थे, जो जिंदगी की जद्दोजहद के बीच फंस गए. इसकी वजह ये थी कि जो लकड़ी का किला कुछ देर पहले उनकी सुरक्षा कर रहा था, वो अब आग का गोला बनकर उन्हें ही निगलने पर आतुर था. सेना का मनोबल टूटता देख, खालिद पिछले दरवाजे से जान बचाकर भाग निकला. महज 40 मिनट से भी कम समय में सुल्तान का झंडा उतार दिया गया और युद्ध की समाप्ति हो गई.