धनतेरस का इतिहास प्राचीन भारतीय मान्यताओं से जुड़ा हुआ है. मान्यता है कि दीपावली से दो दिन पहले समुद्र मंथन से धन्वंतरि का अवतरण हुआ था. इस दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे. इसलिए यह दीपवाली से पहले मनाया जाता है. साथ ही धन्वंतरि का प्रकट होना स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इसके अलावा, इस दिन भगवान धन्वंतरि ने आयुर्वेद का ज्ञान भी दिया था, जिससे मानव जीवन में सुख और समृद्धि आई.
धनतेरस पर लोग अपने घरों में नए बर्तन, सोने-चांदी के आभूषण खरीदते हैं. यह माना जाता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तुएं समृद्धि और खुशहाली लाती हैं. इस दिन विशेष रूप से बर्तन खरीदने की परंपरा प्रचलित है, क्योंकि यह घर में धन और समृद्धि का प्रतीक है.
धनतेरस की पूजा में देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर की विशेष पूजा की जाती है. लोग इस दिन शाम को दीप जलाकर अपने घरों को रोशन करते हैं. पूजा के दौरान घर के सभी सदस्यों का ध्यान सकारात्मक ऊर्जा की ओर केंद्रित होता है. इसके साथ ही, इस दिन विशेष रूप से 'धनतेरस' के नाम से एक पूजा विधि भी होती है, जिसमें विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है.
धनतेरस न केवल व्यक्तिगत समृद्धि का पर्व है, बल्कि यह सामाजिक एकता और भाईचारे का भी प्रतीक है. इस दिन लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएं देते हैं और एक साथ मिलकर इस पर्व को मनाते हैं. यह पर्व हमें यह सिखाता है कि धन केवल भौतिक वस्तुओं में नहीं, बल्कि संबंधों और साझा खुशियों में भी होता है.