दिल्ली में वायु प्रदूषण न केवल एक स्वास्थ्य संकट बन गया है, बल्कि यह एक राजनीतिक बहस का केंद्र भी है. हर साल अक्टूबर से जनवरी के बीच वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के 'खतरनाक' स्तर पर पहुंचने के साथ ही सरकारों के बीच जिम्मेदारी तय करने और समाधान ढूंढने की बहस तेज हो जाती है. यह संकट अब केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से एक बड़ा जनहित का मामला बन चुका है, जहां सत्ताधारी दल और विपक्ष के बीच एक दूसरे पर दोषारोपण का सिलसिला चलता है.
दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर एक बार फिर 'खराब' श्रेणी में पहुंच गया है, बुधवार (29 जनवरी 2025) को एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 348 दर्ज किया गया. यह स्थिति अस्थमा, फेफड़ों और दिल के मरीजों के लिए बेहद खतरनाक है. विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण में मौजूद पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे सूक्ष्म कण फेफड़ों और श्वसन तंत्र को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं. लंबे समय तक इसमें रहने से अस्थमा, खांसी और सीने में जकड़न जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं.
दिल्ली सरकार का मानना है कि प्रदूषण का बड़ा हिस्सा पड़ोसी राज्यों खासकर हरियाणा में पराली जलाने से आता है. पराली जलाने के दौरान उत्पन्न धुएं के विशाल बादल दिल्ली की हवा को जहरीला बना देते हैं. इस पर केंद्र सरकार का तर्क है कि पराली जलाने का योगदान सीमित है और दिल्ली के स्थानीय स्रोत जैसे वाहन उत्सर्जन, निर्माण धूल और औद्योगिक प्रदूषण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. दिल्ली सरकार ने ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने और कंस्ट्रक्शन साइट्स पर धूल नियंत्रण उपायों जैसे कई कदम उठाए हैं. हालांकि केंद्र सरकार का दावा है कि अकेले दिल्ली सरकार की नीतियां पर्याप्त नहीं हैं और क्षेत्रीय सहयोग के बिना समस्या हल नहीं होगी.
पराली जलाना एक संवेदनशील राजनीतिक मुद्दा है. दिल्ली सरकार के अनुसार हरियाणा में किसान अक्सर सीमित संसाधनों और समय के कारण अपनी फसल के अवशेष जलाने के लिए मजबूर होते हैं. किसानों का कहना है कि सरकारों द्वारा वादा किए गए मुआवजे और मशीनरी के अभाव में उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है. इस स्थिति में राज्य सरकारें किसानों का पक्ष लेती हैं और केंद्र पर पर्याप्त सहायता न देने का आरोप लगाती हैं.
पिछले कुछ वर्षों में प्रदूषण नियंत्रण को लेकर दिल्ली और पड़ोसी राज्यों के बीच समन्वय का अभाव स्पष्ट हुआ है. विशेषज्ञों का मानना है कि वायु गुणवत्ता सुधारने के लिए तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक समाधान जरूरी हैं. हालांकि, सियासी मतभेद इन प्रयासों को कमजोर कर रहे हैं. दिल्ली के प्रदूषण संकट का समाधान तभी संभव है जब राजनीतिक इच्छाशक्ति मजबूत हो और सरकारें मिलकर ठोस नीति बनाएं. यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है, जिसे राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर सुलझाने की जरूरत है.