Delhi Monuments: दिल्ली एक ऐतिहासिक धरोहरों का शहर माना जाता है. यहां देश की कई ऐतिहासिक जगहें हैं जो दूर-दूर से लोग देखने आते हैं. दिल्ली में लोग घूमने के इरादे से आते हैं तो लाल किला, कुतुबमीनार, इंडिया गेट, अक्षरधाम और कनॉट प्लेस जैसी जगह ही घूमते हैं. इतना ही नहीं दिल्ली में लंबे समय से रह रहे लोग भी यहां के कई ऐतिहासिक और शानदार जगह नहीं घूम पाते हैं. यहां तक कि ट्रैवल एजेंसियों भी इन जगहों के बारे में नहीं जानती होंगी. तो आज हम आपको ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में आपने कभी सुना नहीं होगा.
दिल्ली की पहली महिला शासक रजिया बेगम सुल्तान का मकबरा एक रहस्य है. पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट के पास स्थित रजिया सुल्तान की क्रब गुमनाम चीजों की तरह है. ऐसा माना जाता है कि रजिया सुल्तान को उनके पति अल्तुनिया की सेना ने बगावत कर उन्हें यहीं मार गिराया था, जिसके बाद उन्हें यहीं दफ्ना दिया गया.
महरौली के पास 12वीं शाताबदी में इस किले को पृथ्वीराज चौहान ने बनवाया था. पृथ्वीराज चौहान को राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता था इसलिए इस किले का नाम भी किला राय पिथौरा रखा गया था. इस किले के अंदर पृथ्वीराज चौहान की प्रतीमा भी लगी हुई है. बता दें कि इस किले को पहले लाल कोट के नाम से जाना जाता था और इसकी स्थापना तोमर शासक राजा अनंग पाल ने 1060 में की थी. इस किले को 12वीं शाताबदी में पृथ्वीराज चौहान ने युद्ध में जितकर हासिल किया तब से इसका नाम किला राय पिथौरा हुआ.
गंधक की बावली का निर्माण 13वीं शताब्दी में कराया गया था. महरौली स्थित ये बावली शहर का सबसे पुराना और बड़ा सीढ़ीदार कुआं है. कुएं में सल्फर मिले होने की वजह से इसमें बदबू आती है. प्राचीन समय से ही कुएं के पानी को काफी गुणकारी माना जाता है और इसे बनाने का श्रेय इल्तुतमिश को जाता है.
इल्तुतमिश का मकबरा, कुतुब मीनार कॉम्प्लेक्स में है. यह कॉम्प्लेक्स के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में है. कुतुबमीनार स्थित प्राचीन दिल्ली की ये क्रब, सादगी और वास्तुकला के लिए जानी जाती है. काफी लोगों को इसके बारे में इसलिए पता नहीं है, क्योंकि कुछ साल पहले ही इसे टूरिस्ट के लिए खोला गया है. इस जगह की खास बात ये है कि यह मकबरा बिना छत का है. मतलब कई मुस्लिम शासकों ने इसकी छत बनवाई लेकिन इसकी छत टीक नहीं पाई है. तब से ये मकबरा बिना छत का ही है.
मिर्ज़ा गालिब इस हवेली में आगरा से आने के बाद नौ साल तक रहे थे. यहां गालिब की मौत के बाद बाजार लगता था. बाद में सरकार ने इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया. ये हवेली दिल्ली के चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन के पास है. मेट्रो स्टेशन के बाद तंग गलियों से होकर आप इस हवेली पर पहुंचेंगे.