Mahendragarh School Bus Accident: 11 अप्रैल को हरियाणा के कनीना में हुए स्कूल बस हादसे में 6 बच्चों की मौत का दर्द जिला शिक्षा अधिकारी सुनील दत्त के चेहरे पर दिखाई नहीं दिया. इतना ही नहीं, जब उनसे स्कूल व्यवस्था को लेकर सवाल किए गए तो मुस्कुराते हुए नजर आए.
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Mahendragarh School Bus Accident: 11 अप्रैल की सुबह कनीना कस्बे के पास हुए दर्दनाक सड़क हादसे में 6 मासूम बच्चों की हुई दर्दनाक मौत के बाद भी जिला शिक्षा अधिकारी सुनील दत्त को इसका जरा भी गम नहीं है. इससे शर्मनाक बात क्या होगी. जब इस घटना को लेकर उनसे सवाल किया तो किस तरह उनका चेहरा खिलखिला रहा है, जिस घटना को लेकर पूरा देश आज इन परिवारों को हिम्मत, साहस और ढाढस बधाने का कार्य कर रहा है.
तो वहीं, इन मासूम बच्चों के लिए जिला शिक्षा अधिकारी के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला, बल्कि सवाल पूछने पर जिला शिक्षा अधिकारी खिलखिला रहे हैं. उनके चेहरे को देखकर जरा भी नहीं लगता कि इतनी बड़ी और भीषण घटना का इन्हें जरा भी गम है, जिस अधिकारी के पूरे जिले के स्कूलों को लेकर जिम्मेदारी बनती है जब उनसे उनकी जिम्मेदारी का सवाल पूछने पर उल्टा ज्ञान देते नजर आ रहे हैं कि इसमें आप हम और स्कूल सब की जिम्मेदारी है.
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जिला शिक्षा अधिकारी साहब का कहना हैं कि जिले में 750 स्कूल है और उनका फोकस सरकारी स्कूलों पर ज्यादा रहता है, लेकिन सरकारी स्कूलों के हालात क्या है यह सब जनता जानती है. आपका तो क्या सरकार का भी फोकस नहीं है सरकारी स्कूलों पर क्या आप भूल गए पिछले दिनों कितने स्कूलों में तालाबंदी हुई थी. साहब तो स्कूल को भी क्लीन चिट देते नजर आ रहे हैं कि इस हादसे में स्कूल की कोई गलती नहीं, चालक शराब पीकर गाड़ी चला रहा था इस वजह से हादसा हुआ.
लेकिन, क्या शराबी ड्राइवर को रखना स्कूल की गलती नहीं, क्या गाड़ियों के फिटनेस सर्टिफिकेट इंश्योरेंस चेक करना परिवहन विभाग की गलती नहीं, क्या आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं की स्कूल में साल में कभी एक दो बार विजिट किया जाए और चेक किया जाए की स्कूल के ड्राइवर स्टाफ और वाहनों की क्या स्थिति है, क्या आपने कभी बच्चों से बात की कि उन्हें स्कूल आने-जाने में कोई परेशानी तो नहीं.
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जब शिक्षा अधिकारी से पूछा गया कि उनके विभाग की कमी रही, तो डीईओ साहब साफ तौर पर मना कर देते हैं कि उनके विभाग की इसमें कोई कमी नहीं. जब अवकाश के दिन स्कूल लगने पर पूछा गया तो कितनी मासूमियत से समझा रहे हैं कि हम तो स्कूलों को दीपावली की छुट्टी करने को भी नहीं बोलते, ईद पर स्कूल लगाने को नहीं बोलते, तो आप किस नाम के जिला शिक्षा अधिकारी हैं.
आपका दायित्व बनता है कि जिले के सभी स्कूलों को देखा जाए और न केवल आपका दायित्व बल्कि आपके नीचे कार्य करने वाले खंड शिक्षा अधिकारियों का भी दायित्व बनता है, स्थानीय प्रशासन का भी दायित्व बनता है, कि इस प्रकार से नियमों की अवहेलना करने वाले स्कूलों पर लगाम लगाई जाए. जब उनसे उनकी जिम्मेदारी पूरी तरह नहीं निभाने पर सस्पेंड करने की बात को लेकर सवाल किया तो भी जिला शिक्षा अधिकारी साहब खिल खिलाते हुए नजर आए. यह हंसी बताती है कि उनके पीछे किसी बड़े राजनीतिक व्यक्ति या पार्टी का हाथ है. जो शायद कह रही है कि आप लोग चाहे, जितने सवाल करें उनका कुछ होने वाला नहीं.
हम पूछना चाहते हैं कि आखिर सत्ता में बैठे कौन वो लोग हैं जो पिछले 5 साल से एक अधिकारी को जिले से बाहर नहीं जाने दे रहे. कौन वह राजनीतिक नेता है, जिसे इस अधिकारी से इतना प्रेम है? लगातार सवाल पूछने पर डीईओ साहब तो सवालों से बचकर चले गए, लेकिन कई सवाल अभी भी जिला शिक्षा अधिकारी और यहां के स्थानीय प्रशासन पर खड़े होते हैं.
बहरहाल, इस विभिषक घटना का दुख पूरे देश में सुनाई दिया, लेकिन जिस तरह से डीईओ का खिलता हुआ चेहरा और हंसी देखकर नहीं लगता कि उन्हें इस घटना का जरा भी गम है. अब देखना यह होगा कि कब सरकार और प्रशासन इस प्रकार के जिम्मेदार पद के व्यक्ति को गैर जिम्मेदाराना कार्य के लिए दोषी पाते हैं या उनकी नजर में अभी पाक साफ है. अब राष्ट्रीय बालसंरक्षण आयोग के सचिव प्रशांक कानूनगो ने जिला शिक्षा अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की अनुशंसा जरूर की है, लेकिन देखना होगा कि अब कब उन पर कार्रवाई होती है.
(इनपुटः कमरवीर सिंह)