Delhi Election 2025 : नई दिल्ली विधानसभा सीट पर 2025 का चुनाव केवल एक क्षेत्रीय लड़ाई नहीं है, बल्कि यह तय करेगा कि दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अरविंद केजरीवाल अपनी पकड़ बरकरार रख पाएंगे, या प्रवेश वर्मा और संदीप दीक्षित में से कोई नई दिल्ली की राजनीति की दिशा बदल देगा.
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नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 का शंखनाद हो चुका है और नई दिल्ली विधानसभा सीट फिर से चुनावी चर्चा के केंद्र में है. यह सीट हमेशा से दिल्ली की राजनीति में महत्वपूर्ण रही है, क्योंकि इस क्षेत्र से चुनाव जीतने वाले नेताओं का मुख्यमंत्री बनना लगभग तय माना जाता है. साथी इस बार के हालात पहले से अलग हैं. आरोप-प्रत्यारोप, भ्रष्टाचार के मुद्दे और दिग्गज नेताओं के बीच टक्कर ने इस चुनाव को और दिलचस्प बना दिया है.
ऐतिहासिक महत्व और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य
नई दिल्ली विधानसभा सीट का ऐतिहासिक महत्व यह है कि यहां से विधायक बनने वाले अधिकतर नेता मुख्यमंत्री बने हैं. 1998 से 2013 तक शीला दीक्षित (कांग्रेस) ने इस सीट से जीत दर्ज की और तीन बार मुख्यमंत्री बनीं. इसके बाद 2013 में आम आदमी पार्टी (आप) के नेता अरविंद केजरीवाल ने इस सीट पर कब्जा जमाया और 2015 व 2020 के चुनावों में अपनी जीत बरकरार रखी. इस बार अरविंद केजरीवाल के सामने दो बड़े राजनीतिक दिग्गज खड़े हैं, बीजेपी के प्रवेश वर्मा और कांग्रेस के संदीप दीक्षित. प्रवेश वर्मा पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे हैं, जबकि संदीप दीक्षित तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के बेटे हैं. ऐसे में यह मुकाबला न केवल नई दिल्ली सीट के लिए है, बल्कि दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए भी है.
केजरीवाल की चुनौतियां
अरविंद केजरीवाल इस बार चौथी बार नई दिल्ली सीट से चुनाव मैदान में हैं, लेकिन उनके सामने कई चुनौतियां हैं. एक तरफ वह दिल्ली शराब नीति केस में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ बीजेपी और कांग्रेस ने उन्हें घेरने के लिए 'शीशमहल' जैसे मुद्दे उठाए हैं. बीजेपी और कांग्रेस का आरोप है कि मुख्यमंत्री आवास के रेनोवेशन पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए, जबकि जनता की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया गया. इसके अलावा केजरीवाल के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि क्या वह जनता का विश्वास चौथी बार जीत पाएंगे. हालांकि, उनके पास शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किए गए कार्यों का मजबूत रिकॉर्ड है, जो उनके समर्थन में जा सकता है, लेकिन क्या यह पर्याप्त होगा.
बीजेपी और प्रवेश वर्मा की रणनीति
बीजेपी ने इस बार नई दिल्ली सीट पर प्रवेश वर्मा को उतारा है. प्रवेश वर्मा को हिंदुत्व और विकास के मुद्दों पर जोर देने के लिए जाना जाता है. उनका कहना है कि यदि बीजेपी सत्ता में आती है, तो यमुना की सफाई, प्रदूषण नियंत्रण और महिलाओं की सुरक्षा पर प्राथमिकता दी जाएगी. प्रवेश वर्मा ने अरविंद केजरीवाल पर तीखा हमला करते हुए कहा कि कोविड के दौरान जब दिल्ली को ऑक्सीजन की जरूरत थी, तब केजरीवाल सरकार 'हर बोतल पर मुफ्त बोतल' की योजना चला रही थी. बीजेपी की रणनीति साफ है कि केजरीवाल को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरकर जनता को यह विश्वास दिलाना कि बीजेपी ही दिल्ली के विकास के लिए सही विकल्प है.
कांग्रेस और संदीप दीक्षित का दांव
कांग्रेस ने इस बार शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मैदान में उतारा है. कांग्रेस का मानना है कि संदीप दीक्षित के नाम के साथ 'दीक्षित' ब्रांड जुड़ा हुआ है, जो ब्राह्मण और परंपरागत कांग्रेस समर्थकों को वापस ला सकता है. संदीप दीक्षित ने अरविंद केजरीवाल और प्रवेश वर्मा दोनों पर निशाना साधते हुए कहा कि दिल्ली को नई सोच और पारदर्शिता की जरूरत है, न कि 'आरोप-प्रत्यारोप' की राजनीति की. कांग्रेस के लिए यह चुनाव 'सर्वाइव' करने का मौका है, क्योंकि पिछले दो चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है.
जातीय समीकरण और मतदाता वर्ग
नई दिल्ली सीट पर जातीय समीकरण भी एक बड़ा फैक्टर हैं. इस सीट पर ब्राह्मण, पंजाबी, खत्री और दलित समुदाय के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
ब्राह्मण वोटर्स: कांग्रेस और बीजेपी का परंपरागत समर्थन बेस.
पंजाबी और खत्री वोटर्स: आप और बीजेपी दोनों के लिए महत्वपूर्ण.
दलित वोटर्स: आप का मजबूत गढ़.
पिछले तीन चुनावों में अरविंद केजरीवाल ने इन सभी वर्गों में अपनी पकड़ मजबूत की थी, लेकिन क्या इस बार ये समीकरण बदलेंगे.
चुनावी मुकाबले में कौन किस पर भारी?
क्या नई दिल्ली सीट फिर से तय करेगी मुख्यमंत्री?
नई दिल्ली सीट के इतिहास को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस सीट पर जीतने वाला ही मुख्यमंत्री बनता है. हालांकि, इस बार तस्वीर थोड़ी अलग है. अरविंद केजरीवाल के मुख्यमंत्री बनने पर कानूनी अड़चनें हो सकती हैं, क्योंकि उन पर चल रहे मामलों का असर उनके पद पर पड़ सकता है. वहीं, बीजेपी और कांग्रेस ने अब तक यह स्पष्ट नहीं किया है कि उनकी जीत की सूरत में मुख्यमंत्री कौन होगा.
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