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Delhi Assembly Election 2025: जब भरे दरबार में द्रौपदी का चीर-हरण युवराज दुर्योधन कर रहा था तो साड़ी की लंबाई बढ़ाते रहने का काम श्रीकृष्ण ने किया था और द्रौपदी की लाज बच गई थी. मगर धृतराष्ट्र और भीष्म पितामह की लाज बची नहीं रह सकी थी. आज दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत साहेब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा साड़ियां बांट रहे हैं, फिर भी महसूस किया जा रहा है कि लोकतंत्र की लाज उतर रही है. लोकतंत्र चलाने वाली शक्तियां मौन हैं. चुनाव आयोग की आंखें झुकी हुई हैं. कान खुले होकर भी बंद हैं, नाक ने मानो सूंघना ही बंद कर दिया है.
जब दिल्ली में विधानसभा चुनाव का ऐलान हो रहा था तब मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने कहा था कि आचार संहिता लागू होने से पहले कुछ घटनाएं घटी हैं, लेकिन चुनाव के दौरान ऐसी घटनाओँ को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार का इशारा प्रवेश वर्मा की ओर से 1100 रुपये महिलाओं को दिए जाने की घटना से लेकर महिलाओं के लिए अपमानजनक बताए जा रहे रमेश विधूड़ी के बयान की ओर ही था, लेकिन उन्होंने खुलकर कुछ नहीं कहा था.
क्या परवेश वर्मा खुद चाहते हैं कि वे ‘अयोग्य’ हो जाएं?
आजकल खुलेआम पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा के आवास पर महिलाओं की भीड़ सुबह से लग जाती हैं. वोटर आईडी देखकर और यह सुनिश्चित करने के बाद कि महिला नई दिल्ली की वोटर हैं, उन्हें साड़ी, मानद राशि दी जा रही है. आम आदमी पार्टी ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग से की थी. इस बारे में चुनाव आयोग ने पार्टी के प्रतिनिधिमंडल को बताया कि किसी डीएम ने, जो जिला निर्वाचन पदाधिकारी भी होता है, अब तक ऐसी घटना की जानकारी नहीं होने की बात कही है. क्या चुनाव आयोग का यह जवाब काफी है?
नामांकन दाखिल करने से पहले भी समारोह पूर्वक महिलाओं को जूते पहनाए गए, बांटे गए. इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग है जो सोशल मीडिया में तैर रहे हैं. विभिन्न न्यूज़ चैनलों में भी ये घटनाएं कवर की गई. क्या यह मान लिया जाए कि इसकी भी जानकारी डीएम को और उन पर जानकारी के लिए निर्भर चुनाव आयोग को नहीं है? यह हास्यास्पद लगता है. ऐसे मामले में तो सुप्रीम कोर्ट भी संज्ञान ले सकता है. चुनाव हो रहा है या मजाक चल रहा है?
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पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया है कि बेचारे प्रवेश वर्मा डिस्क्वालिफाई होने की पूरी कोशिश कर रहे हैं पर चुनाव आयोग है कि मानता नहीं. अरविंद केजरीवाल का यह बयान राजनीतिक भी है जिसका दूसरा अर्थ यह होता है कि प्रवेश वर्मा ने अपनी हार मान ली है और किसी भी तरह से चाहते हैं कि वे चुनाव न लड़ें. इसके लिए जानबूझकर और खुलेआम चुनाव आयोग को चुनौती दे रहे हैं कि वे उन्हें डिसक्वालिपाई करें, लेकिन चुनाव आयोग उनकी खुली चुनौती भी स्वीकार नहीं कर पा रहा है. अरविंद केजरीवाल ने परोक्ष रूप से चुनाव आयोग को बीजेपी के दबाव में रहने का इल्जाम लगाया है.
अरविंद केजरीवाल ने एक और ट्वीट किया है कि पूरी दुनिया कह रही है कि खुलेआम पैसा और सामान बंट रहा है पर चुनाव आयोग कह रहा है कि उन्हें सबूत और गवाह नहीं मिल रहे. केजरीवाल ऐसा कहते हुए सोशल मीडिया पर चल रहे दो वीडियो भी ट्वीट करते हैं जो उनके बयान को सत्यापित करता दिखता है.
प्रवेश वर्मा की राह पर रमेश विधूड़ी भी!
बीजेपी के एक और प्रत्याशी और पूर्व सांसद रमेश विधूड़ी ने भी मानो चुनाव आयोग को खुली चुनौती देने की ठान रखी है. जब रमेश विधूड़ी ने प्रियंका गांधी के गाल की तरह दिल्ली की सड़क बनाने वाला बयान दिया था या फिर मुख्यमंत्री आतिशी पर बाप बदल लेने से जुड़ा अनैतिक बयान दिया था, तब चुनाव आचार संहिता नहीं लगी थी. मगर, अब चुनाव आचार संहिता के जारी रहते रमेश विधूड़ी ने एक बार फिर कहा है कि आतिशी गली-गली ऐसे घूम रही है जैसे हिरणी जंगल में घूमा करती है. कालकाजी में रमेश विधूड़ी और आतिशी एक दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी हैं. इस बयान के बाद भी चुनाव आयोग मौन है.
दिल्ली में लंबी होती वोटर लिस्ट और आखिरी समय में लाखों लोगों द्वारा वोटर लिस्ट के आवेदनों पर भी आम आदमी पार्टी ने सवाल उठाए हैं. इन सवालों के जवाब में भी चुनाव आयोग का यही कहना है कि उसके अधिकारी मुस्तैद हैं और एक-एक वोटर की जांच परख के बाद ही उनके नाम वोटर लिस्ट में जोड़े जा रहे हैं. इससे पहले भी जिन नामों को हटाया गया है उसमें भी पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया है. मगर चुनाव आयोग से सबसे बड़ा सवाल यही है कि खुद मुख्य चुनाव आयोग भी तो प्रक्रिया का पालन ही कर रहे हैं. न डीएम रिपोर्ट देगा कि उनके इलाके में नकद या साड़िया, जूते आदि बंट रहे हैं और न चुनाव आयोग मानेगा कि ऐसा कुछ हो रहा है.
सवालों में चुनाव आयोग
यह कैसी चुनाव प्रक्रिया है कि जिसके नाम वोटर लिस्ट से हटाए गए हैं, उनकी शिकायत पर खुद उनसे ही पूछताछ होती है, लेकिन कभी उन लोगों से पूछताछ नहीं होती जिन्होंने नाम हटवाने के लिए आवेदन दिया था. सिर्फ यह कह देना कि बीएलओ या चुनाव अधिकारी विभिन्न राजनीतिक दलों की मौजूदगी में ही वोटर का सत्यापन करता है, शिकायतें खत्म नहीं होतीं. अगर प्रक्रिया का सही तरीके से पालन होता तो ऐसी स्थिति आती ही नहीं.
हरियाणा के रानियां विधानसभा में प्रत्याशी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार वीवीपैट का मिलान करने के लिए 4.25 लाख रुपये जमा कराए. पहले तो वीवीपैट के मिलान से ना-नुकुर किया गया. डीएम इसके लिए तैयार ही नहीं हुए. बाद में अदालती निर्देश पर वीवीपैट मिलान की तारीख और समय तय हुआ. मगर, वीवीपैट मिलान करने के बजाए संबंधित ईवीएम का डेटा ही डिलीट कर दिया गया. फिर कहा गया कि मॉक पोल करके चेक करेंगे कि ईवीएम सही है या नहीं. प्रत्याशी ने विरोध किया और वीवीपैट के मिलान से खुद को अलग कर लिया. फिर भी चुनाव आयोग यही कहता रहेगा कि चुनाव प्रक्रिया के तहत हो रहे हैं?
चुनाव की पूरी प्रक्रिया बाध्यकारी दबावों से प्रभावित हो गयी दिखती है. दिल्ली विधानसभा चुनाव को ऐसे दबावों से मुक्त करने के लिए चुनाव आयोग को सामने आना पड़ेगा. आयोग ऐसा नहीं करता है तो राजनीतिक दलों को दबाव बनाना पड़ेगा. अगर चुनाव ही पारदर्शी और विश्वसनीय तरीके से नहीं होंगे, तो नतीजों पर विश्वास कौन करेगा? क्या चुनाव आयोग स्वयं आचार संहिता का पालन कर रहा है? आचारसंहिता तोड़ रही घटनाओं के तमाम सबूतों के रहते भी अगर आयोग तक घटनाएं नहीं पहुंच पा रही हैं तो आचारसंहिता टूटने का दोषी कौन है?