क्या आप जानते हैं: 11 महीने का ही क्यों बनता है रेंट एग्रीमेंट, बीच में खाली करने पर क्या होगा?
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क्या आप जानते हैं: 11 महीने का ही क्यों बनता है रेंट एग्रीमेंट, बीच में खाली करने पर क्या होगा?

Rent Aggrement Law: बड़े शहरों में ज्यादातर आबादी किराये के मकानों में गुजर-बसर करती है. ऐसे में उन्हें घर ढूढ़ने के साथ मकान मालिक और किरायेदारी कानून का पालन करना होता है. मकान मालिक और किरायेदार के बीच 11 महीने का एग्रीमेंट साइन होता है. 

प्रतिकात्म तस्वरी

नई दिल्ली: क्या आपने कभी मकान किराए पर लिया है? अगर हां तो आपके और मकान मालिक के बीच 11 महीने का रेंट एग्रीमेंट साइन हुआ होगा. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह रेंट एग्रीमेंट सिर्फ 11 महीने का ही क्यों होता है, एक साल यानी 12 महीने का क्यों नही होता. तो हम आपको यह बताएंगे कि आखिर रेंट एग्रीमेंट 11 महीने का ही क्यों होता है? 

यह रेंट एग्रीमेंट किरायेदार और मकान मालिक के बीच एक कॉन्ट्रेक्ट होता है. एक तरह से इसे मकान मालिक और किरायेदार के बीच कानूनी संबंध कहा जा सकता है. इसमें यह बताया जाता है कि मकान मालिक तय समय के लिए अपनी प्रॉपर्टी किराए पर दे रहा है. इस एग्रीमेंट में किरायेदार और मकान मालिक के लिए कुछ नियम-कानून तय किए जाते हैं. जिसका मकान मालिक और किरायेदार दोनों पार्टियों को मानना जरूरी होता है. इसमें किराया, मकान की हालत, दोनों पार्टियों का पता और रेंट एग्रीमेंट लिखा होता है. साथ ही मकान मालिक अपनी शर्तें उसमें लिखता है, जो उसे किरायेदार को बतानी होती हैं.  

अगर किरायेदारी एक साल से कम है तो उसे रजिस्टर्ड करने की कोई जरूरत नहीं होती है. रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत एक साल से कम अवधि की लीज के समझौते को रजिस्टर करने की जरूरत नहीं है. यानी बिना रजिस्ट्रेशन के एक साल से कम के किरायेदारों के समझौते पर दस्तखत किए जा सकते हैं, लेकिन आगर कोई रेंट एग्रीमेंट को रजिस्टर करने का विकल्प चुनता है तो स्टाम्प ड्यूटी की राशि किराए और ठहरने की अवधि से तय होती है. जितनी लंबी अवधि तक किरायेदार रहेगा, उतनी ज्यादा स्टाम्प ड्यूटी चुकानी होगी. 

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बता दें कि अगर 11 महीने से अधिक का रेंट एग्रीमेंट बनवाते है, तो किरायेदार द्ववारा मकान मालिक को दिया गया किराया. वह रेंट टेनेंसी एक्ट के दायरे में आता है. इस एक्ट में अगर किराए को लेकर कोई विवाद होता है. अगर मामला कोर्ट में जाता है तो कोर्ट को अधिकार है कि वह किराया फिक्स कर दे. फिर मकान मालिक उससे अधिक किराया नहीं वसूल सकता है. 

अगर एक्सपर्ट्स की बात करें तो किरायेदारों का समर्थन करने वाले कानूनों के कारण अक्सर प्रॉपर्टी खाली कराना मकान मालिक के लिए मुश्किल हो जाता है. इसी वजह से  मकान मालिक को इंसाफ मिलने में काफी समय लग जाता है.  इसलिए मकान मालिक और किरायेदार दोनों के लिए रेंट एग्रीमेंट ही फायदेमंद होता है. दोनों ही इस पर राज़ी भी हो जाते हैं.