पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने भगत सिंह को शहीद का दर्जा देने की मांग को लेकर दायर की गई जनहित याचिका को खारिज कर दिया है. खंडपीठ ने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता इस मामले में कोई भी ऐसा रिकार्ड पेश नहीं कर पाया है, जिससे वो अपनी बात को सिद्ध कर पाए.
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नई दिल्ली: देश की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शहीद का दर्जा दिए जाने की मांग काफी समय से उठ रही है. इस मांग को लेकर कोर्ट में कई जनहित याचिकाएं भी दायर की गई थी, जिसे पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.
चीफ जस्टिस रवि शंकर झा और जस्टिस अरुण पल्ली की खंडपीठ ने स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शहीद का दर्जा दिए जाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया. फैसले में कहा कि वो किस अधिकार से भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शहीद का दर्जा देने के लिए कह सकते हैं, जबकि दिल्ली हाईकोर्ट के द्वारा भी इस याचिका को खारिज किया जा चुका है. खंडपीठ ने फैसले में ये भी कहा कि याचिकाकर्ता इस मामले में कोई भी ऐसा रिकार्ड पेश नहीं कर पाया है, जिससे ये बात साबित हो सके और कोर्ट उस आधार पर अपना फैसला सुना सके.
दिल्ली कोर्ट में दायर की गई थी याचिका
सोनीपत के वकील बिजेंद्र सांगवान ने इस मामले को लेकर पहले दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसे कोर्ट के द्वारा खारिज कर दिया गया.
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23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में दी गई थी फांसी
स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी थी. संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रकाशित 1857 से 1947 तक, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों की डिक्शनरी में भी इनका नाम शामिल किया गया है.
सितंबर 2016 में निकाली गई थी शहीद सम्मान जागृति यात्रा
भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के वंशजों ने साल 2016 में जलियांवाला बाग से इंडिया गेट तक शहीद सम्मान जागृति यात्रा निकालकर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शहीद का दर्जा दिलाने की मांग की थी.
संसद में भी उठ चुका है मुद्दा
19 अगस्त 2013 को राज्यसभा सांसद केसी त्यागी ने भी र भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को शहीद का दर्जा दिलाने का मुद्दा उठाया था. तब उन्हें कई सदस्यों का समर्थन भी मिला था. देश का हर बच्चा जिन्हें शहीद के नाम से जानता है, जिनके जीवन से प्रेरणा लेता है, उन महान स्वतंत्रता सेनानियों को शहीद का दर्जा दिए जाने के लिए शायद अभी भी सबूतों की कमी है.