Dev Diwali: जानते हैं देव दिवाली से शिव का क्या है संबंध, क्यों धरती पर इस दिन पधारते हैं देवतागण?
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Dev Diwali: जानते हैं देव दिवाली से शिव का क्या है संबंध, क्यों धरती पर इस दिन पधारते हैं देवतागण?

देव दिवाली के दिन के बारे में मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव सहित सभी देवतागण पृथ्वी लोक में पधारते हैं और यहां के लोगों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं. आपको बता दें कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन 27 नवंबर को इस बार देव दिवाली का त्यौहार मनाया जाएगा.

फाइल फोटो

Dev Diwali: देव दिवाली के दिन के बारे में मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव सहित सभी देवतागण पृथ्वी लोक में पधारते हैं और यहां के लोगों को आशीर्वाद प्रदान करते हैं. आपको बता दें कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन 27 नवंबर को इस बार देव दिवाली का त्यौहार मनाया जाएगा. ऐसे में आपके लिए यह जानना जरूरी है कि भगवान शिव के साथ इस त्यौहार का क्या संबंध है और क्यों इस दिन पृथ्वी लोक में सभी देवता निवास करते हैं. 

कार्तिक के महीने का अंतिम दिन यानि इस पवित्र महीने की पूर्णिमा तिथि को देव दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है. इस देव दिवाली इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि यह देवताओं की दीपावली है. इस दिन गंगा स्नान करने और दीपदान का महत्व बताया गया है. ऐसे में बता दें कि इस त्यौहार का भगवान शिव से गहरा संबंध है. प्रदोष काल में यह देव दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है. 

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इसके बारे में कथा है कि भगवान शिव के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध कर दिया था. ऐसे में तारकासुर के तीन बेटे जिनको मिलाकर त्रिपुरासुर के नाम से जाना जाता है उन्होंने पिता की मौत का बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी कठोर तपस्या की और उन्हें प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांग लिया. ऐसे में ब्रह्मा ने उन्हें वरदान देने से इनकार किया और उन्हें वरदान दिया की जब तीन पुरियां अभिजित नक्षत्र में एक सीध में आ जाएंगे और फिर कोई असंभव रथ पर सवार होकर उसंभव बाण से चाहेगा तभी उनकी मौत होगी. इसके बाद त्रिपुरासुर ने अपना आतंक बढ़ा दिया इसके बाद भगवान शिव को उनके संहार के लिए आगे आना पड़ा. ऐसे में पृथ्वी तब भगवान शिव का रथ बना, सूर्य-चंद्रमा उस रथ के पहिए बन गए. भगवान विष्णु बाण बने, सृष्ठा भगवान के रथ की सारथी बने, वासुकी नाग भगवान के धनुष की डोर और मेरुपर्वत उनके लिए धनुष बना. इसके जरिए शिव ने त्रिपुरासुर का अंत कर दिया. 

भगवान शिव तभी से त्रिपुरारी कहे जाने लगे. इसी कार्तिक पूर्णिमा के दिन शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया था ऐसे में सभी देवता भगवान शिव का आभार प्रकट करने उनकी नगरी काशी पहुंचे. फिर सभी देवताओं ने गंगा स्नान कर दीप दान किया और त्रिपुरासुर के आतंक से मुक्ति पाने का जश्न मनाया. ऐसे में तभी से देव दिवाली मनाई जाने लगी. 

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