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Valentine Day Special: प्यार में ऐसी तपस्या, पति के एक प्रण ने प्रेम को बनाया अजर अमर

Valentine Day Special: वैलेंटाइन वीक यानी मोहब्बत का महीना फरवरी चल रहा है. आज हम आपको बिहार के  स्व. साहित्यकार भोलानाथ आलोक की प्रेम कहानी बताने जा रहे है. भोलानाथ ने अपनी पत्नी से प्रेम अमर करने के लिए कुछ ऐसा किया है जो आप सोच भी नहीं सकते हैं. 

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Valentine Day Special: वैलेंटाइन वीक यानी मोहब्बत का महीना फरवरी चल रहा है. आज वैलेंटाइन डे है, जिसे दो प्यार करने वाले एक साथ मनाना पसंद करते है. दुनिया में प्यार की कई मिसाल दी जाती है. वहीं आज हम आपको बिहार के  स्व. साहित्यकार भोलानाथ आलोक की प्रेम कहानी बताने जा रहे है. भोलानाथ ने अपनी पत्नी से प्रेम अमर करने के लिए कुछ ऐसा किया है जो आप सोच भी नहीं सकते हैं. 

 

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बिहार के पूर्णिया के स्व. साहित्यकार भोलानाथ आलोक ने एक प्रण लिया था. उनके एक प्रेम ने उनके प्रेम को अजर अमर कर दिया. भोलानाथ ने प्रण लिया कि जिस दिन उनका निधन होगा. उसी दिन उनकी पत्नी के अस्थि कलश का उनके शव के ऊपर रखकर दाह संस्कार किया जाएगा. ऐसा इसलिए ताकि उनका प्रेम अजर अमर रहे.

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स्व. साहित्यकार भोलानाथ आलोक की पत्नी रानी का निधन 25 मई 1990 को हुआ था. पत्नि के निधन के बाद 32 सालों तक भोलानाथ ने अपनी पत्नी का अस्थि कलश सिपाही टोला स्थित अपने घर में आम के पेड़ में लटकाए रखा. जिसके बाद वे रोजाना पत्नी के अस्थि कलश पर आकर गुलाब का फूल चढ़ाते थे और अगरबत्ती दिखाकर प्रणाम करते थे.

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स्वः भोलानाथ आलोक पत्नी के निधन के वक्त ही लिखित संकल्प लिया था कि जिस दिन उनका निधन होगा, उसी दिन उनकी पत्नी के अस्थि कलश का उनके शव की छाती पर रखकर दाह संस्कार किया जाएगा, ताकि उनका प्रेम अजर अमर हो जाए.

 

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इस बारें में उनके दामाद बताते है कि आज के समय में लोग क्या ही प्यार और समर्पण का भाव रखते है. मेरे ससुर का प्यार और सासू मां के प्रति समर्पण हमें सीख देता है. सासु मां के निधन के बाद भी उनके अस्थि कलश की पूजा करते रहे. मरने के बाद उनकी इच्छा पूरी की गई.

 

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परिजन बताते है कि जमाने के नजर में भले ही उनकी मौत के साथ दोनों की प्रेम कहानी का अंत हो गया हो. मगर सच कहें तो अब इस प्यार का एक नया अध्याय शुरू हो गया है. हम लोगों ने भोलानाथ बाबू जी की मौत के बाद उनकी और मां की अस्थियों तो मिलाकर उसी आम के पेड़ पर बांधकर रख दिया है. उसी आम के पेड़ पर बाबू जी ने मां की अस्थियां रखी थी. हालांकि अब बाबू जी ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया है, लेकिन बाबू जी की उस परंपरा को अब हमने कायम रखा है.

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अब घर के सभी लोग इस स्थान पर मत्था टेक कर ही घर से बाहर जाते हैं या फिर आते हैं. अस्थियों की पोटली देखकर हमें महसूस होता है कि वे हमारे पास ही हैं और ये पवित्र प्रेम कहानी जैसे फिर से लिखी जा रही है.