बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर का इम्पैक्ट, लड़े बिना ही जीते, भाजपा के लिए क्यों बढ़ेगी मुसीबत
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बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर का इम्पैक्ट, लड़े बिना ही जीते, भाजपा के लिए क्यों बढ़ेगी मुसीबत

प्रशांत किशोर (पीके) को चुनावी रणनीतिकार के तौर पर तो सभी पहचानते हैं लेकिन अब बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर ने जो किया है वह सच में लोगों को आश्चर्य में डालने वाला है.

(फाइल फोटो)

पटना: प्रशांत किशोर (पीके) को चुनावी रणनीतिकार के तौर पर तो सभी पहचानते हैं लेकिन अब बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर ने जो किया है वह सच में लोगों को आश्चर्य में डालने वाला है. जन सुराज के जरिए बिहार की राजनीतिक जमीन पर अपने लिए संभावना तलाश रहे प्रशांत किशोर का अब प्रभाव वहां दिखना शुरू हो गया है. बता दें कि तेजस्वी हों या नीतीश कुमार या फिर भाजपा या नरेंद्र मोदी प्रशांत किशोर जन सुराज यात्रा के दौरान सब पर हमला बोलते रहे हैं. 

प्रशांत किशोर बिहार के बक्सर जिले में जन्मे इनका पूरा नाम प्रशांत किशोर पांडेय है. बता दें कि कई चुनावों को अपने बल पर रणनीतिक तौर पर दिलचस्प बना देनेवाले प्रशांत किशोर ने जेडीयू का दामन थामा तो लगा था कि अब जदयू के अच्छे दिन आने वाले हैं लेकिन सबको तब झटका लगा जब पीके को पार्टी छोड़नी पड़ी. प्रशांत इसके बाद बिहार के गांव-गांव की खाक छानने निकल पड़े. अब इतने प्रयास के बाद उनका इम्पैक्ट देखने को मिल रहा है. 

प्रशांत किशोर के साथ बेतिया के अफाक अहमद घूम रहे थे जिसको समर्थन देकर सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से उन्होंने विधान परिषद तक पहुंचा दिया. प्रशांत किशोर के समर्थन से अफाक अहमद यहां इस सीट पर वाम दलों का किला ढहाने में कामयाब रहे. अफाक अहमद ने शिक्षक की नौकरी से वीआरएस लेने के बाद प्रशांत किशोर के साथ चलना शुरू किया जिसका परिणाम आज उनको मिला. 

वैसे तो प्रशांत के सक्रिय राजनीति में आने के सवाल पर सभी दल यही कहते रहते थे कि उनके आने से कुछ नहीं बदलने वाला है लेकिन प्रशांत ने जो किया उसके बाद से राजनीतिक गलियारों में चर्चा तेज हो गई है. अब अन्य दलों के लगने लगा है कि उनके खिलाफ एक बड़ी ताकत बनकर प्रशांत किशोर उभर रहे हैं. 

बिहार में 2500 किलोमीटर से ज्यादा की यात्रा कर चुके प्रशांत किशोर अगर 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के साथ उतरे तो इसका सबसे बड़ा नुकसान भाजपा और जदयू को ही होगा. प्रशांत दोनों ही दलों की राजनीति को अच्छे से समझते और परख चुके हैं. आपको बता दें कि 2014 में नरेंद्र मोदी के लिए राजनीतिक कैंपेन प्रशांत किशोर ने की वहीं जदयू के साथ तो उनका ऐसा रिश्ता रहा कि वह एक समय में नीतीश कुमार के सबसे करीबी बन गए थे. 

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प्रशांत किशोर को तो जदयू ने अपना राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी बनाया था और उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिला था. 'बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है' का नारा तो सबको याद होगा. यह प्रशांत किशोर की ही उपज थी जिसके दम पर उस बार जदयू राजनीतिक फसल काटने में कामयाब रही थी. प्रशांत किशोर के सिर पर ही जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस जैसे धुर विरोधी दलों को साथ लाने और महागठबंधन बनवाने का ताज सजता है. 2017 में तो प्रशांत दक्षिण की राजनीति में भी सक्रिय होने लगे और वाईएसआर कांग्रेस के साथ जुड़ गए थे. 

अब बिना लड़े हीं जब प्रशांत ने सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से वाम पार्टी का किला ढहा दिया तो अब राजनीतिक दलों ने भी मानना शुरू कर दिया कि पीके के तौर पर एक बड़ी चुनौती उनके सामने खड़ी होनेवाली है.  35 साल से  इस सीट पर कम्युनिस्ट पार्टी का कब्जा था. बता दें कि जिस सारण लोकसभा सीट के अंदर यह खलबली पीके ने मचाई है. यह सारण जिला राजद का गढ़ माना जाता रहा है. यहां से लालू यादव सांसद रह चुके हैं और यहीं से भाजपा के कद्दावर नेता राजीव प्रताप रूडी भी सांसद हैं. ऐसे में अगर 6 महीने की मेहनत से पीके ने दोनों दलों को इतनी बड़ी शिकस्त दी है तो बिहार में 2025 में होनेवाले विधानसभा चुनाव तक पीके भाजपा-राजद के लिए मुश्किलें और बढ़ा सकते हैं.  

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