गुरु की राह पर चेला, 1977 में जेपी ने दी थी विपक्ष को दिशा, क्या नीतीश विपक्षी एकता के नाम पर कर पाएंगे चमत्कार?
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गुरु की राह पर चेला, 1977 में जेपी ने दी थी विपक्ष को दिशा, क्या नीतीश विपक्षी एकता के नाम पर कर पाएंगे चमत्कार?

कोलकाता में सोमवार को जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) एक टेबल पर थे तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने जेपी, बिहार और नीतीश कुमार का नाम लिया.

लोकनायक जयप्रकाश नारायण और नीतीश कुमार

कोलकाता में सोमवार को जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) और ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) एक टेबल पर थे तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने जेपी, बिहार और नीतीश कुमार का नाम लिया. उन्होंने कहा कि जिस तरह जयप्रकाश नारायण (Jayprakash Narayan) ने तब विपक्ष को दिशा देने का काम किया था, उसी तरह नीतीश कुमार को पटना में विपक्ष के सभी दलों की आॅल पार्टी मीटिंग (All Party Meeting) बुलानी चाहिए. विपक्ष के नेता अपनी मुहिम को 1977 से तो जोड़कर देखते हैं, लेकिन तब हालात कुछ और थे. आपातकाल के चलते देश में त्राहि-त्राहि की स्थिति थी. जनता इंदिरा गांधी के शासन से नाराज हो गई थी लेकिन इस बार के हालात अलग हैं. अभी पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) देश ही नहीं दुनिया भर के सबसे लोकप्रिय नेताओं में शुमार हो चुके हैं. हिमाचल और पश्चिम बंगाल को छोड़ दिया जाए तो राज्य दर राज्य चुनाव जीते जा रहे हैं. ऐसे में क्या नीतीश कुमार की विपक्षी एकता की मुहिम कोई गुल खिला पाएगी, यह तो लोकसभा चुनाव परिणाम (Lok Sabha Election 2024) ही तय कर पाएंगे. अब आइए जानते हैं 1977 में हालात कैसे थे और किन हालात में जनता पार्टी (Janta Party) का गठन हुआ था. 

1977 में बनी जनता पार्टी एक पार्टी नहीं थी बल्कि आपातकाल के विरोध में स्थापित की गई पार्टियों का एक समूह थी. जनता पार्टी के गठन के मूल कारणों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि एक रिट याचिका थी, जो जनता पार्टी के निर्माण के मूल में थी. रिट याचिका 1971 में राजनारायण ने दायर की थी, जो चुनावी कदाचार से जुड़ा हुआ था. 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी को दोषी पाया और अगले 6 साल तक कोई भी चुनाव लड़ने से रोक दिया था.  उसके बाद राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को आपातकाल यानी इमरजेंसी की घोषणा कर दी. आपातकाल में प्रेस सेंसरशिप की शुरुआत हुई, चुनाव स्थगित कर दिए गए और हड़तालों के अलावा रैलियों पर बैन लगा दिया गया. विपक्ष के नेताओं जैसे जयप्रकाश नारायण, चंद्रशेखर, बीजू पटनायक, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, राजनारायण, सत्येंद्र नारायण सिन्हा और मोरारजी देसाई आदि नेताओं को हजारों कार्यकर्ताओं के साथ जेल में डाल दिया गया. 

आपातकाल में केंद्र सरकार को संसद की सहमति के बिना कार्यकारी आदेश जारी करने की शक्ति दे दी. कफ्र्यू लगा दिया गया और पुलिसबलों को वारंट रहित तलाशी और गिरफ्तारी के अधिकार मिल गए. तमिलनाडु और गुजरात की राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, माकपा आदि पर प्रतिबंध लगा दिया गया और उनके नेताओं को पकड़ लिया गया. भाकपा ने आपातकाल का समर्थन किया था. 42वें संशोधन के जरिए नागरिकों को सुप्रीम कोर्ट तक जाने से वंचित कर दिया गया. संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन करने की असीमित शक्ति संसद को मिल गई. कोर्ट की शक्तियों को भी सीमित कर दिया गया. इससे समाज में अराजकता बढ़ गई. पुलिस निरंकुश हो गई और आम जनता नाराज. परिवार नियोजन जैसे अलोकप्रिय अभियान चलाए गए. 

1977 में इंदिरा गांधी की सरकार ने चुनाव कराने का ऐलान कर दिया. विपक्षी दलों के नेताओं को जेल से बाहर किया गया तो घेराबंदी भी तेज हो गई. भारतीय क्रांति दल, भारतीय लोकदल, स्वतंत्र पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, उत्कल कांग्रेस, भारतीय जनसंघ और कांग्रेस ओ एक साथ आए. 23 जनवरी 1977 को जनता पार्टी का गठन किया गया, जिसमें इन सभी दलों का विलय कर दिया गया. चंद्रशेखर जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष बने और रामकृष्ण हेगड़े महासचिव. भारतीय जनसंघ के नेता लालकृष्ण आडवाणी को प्रवक्ता पद की जिम्मेदारी दी गई. 10 फरवरी 1977 को जनता पार्टी का घोषणापत्र लांच किया गया, जिसमें कई लोकप्रिय ऐलान किए गए. कांग्रेस फाॅर डेमोक्रेसी जनता पार्टी में शामिल नहीं हुई लेकिन सरकार को उसने समर्थन दिया था. माकपा ने तब ऐलान किया था कि वह जनता पार्टी के उम्मीदवारों के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी और विपक्षी वोटों के बिखराव से बचने की कोशिश करेगी. 

जनता पार्टी को मुसलमानों का व्यापक रूप से वोट मिला. चरण सिंह के नेतृत्व में किसानों ने भरपूर समर्थन किया. शिरोमणि अकाली दल ने पंजाब में तो तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम जैसे महत्वपूर्ण सहयोगी मिल गए. भारतीय जनसंघ के नेताओं ने मध्यम वर्ग में अपनी पैठ को चुनाव में भुनाया. 23 मार्च को परिणामों की घोषणा हुई और जनता पार्टी को 271 सीटें हासिल हुई थीं और कांग्रेस को केवल 153. इंदिरा गांधी रायबरेली से हार गई थीं और यूपी में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली. जनता पार्टी के उम्मीदवारों ने 10 राज्यों में कांग्रेस का सफाया कर दिया था. उस समय जयप्रकाश नारायण जनता पार्टी के एक स्तंभ थे और उन्हीं के चेले आज नीतीश कुमार बीजेपी की मोदी सरकार के खिलाफ विपक्षी एकता की मुहिम के साथ आगे बढ़ रहे हैं. देखना होगा कि नीतीश कुमार अपने राजनीतिक गुरु जयप्रकाश नारायण की तरह केंद्र सरकार को सत्ता से बेदखल करने में कितना कामयाब हो पाते हैं. 

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