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पटना: 3 दिन पहले अमित शाह से दिल्ली में जाकर मिले जीतन राम मांझी से जब पत्रकारों ने सवाल किया कि वह कहीं गठबंधन से अलग होकर NDA में शामिल होने का विचार तो नहीं बना रहे हैं तो उन्होंने सीधे तौर पर कह दिया था कि वह दशरथ मांझी को भारत रत्न दिए जाने की मांग लेकर मिले थे. जबकि उन्होंने नीतीश कुमार का साथ और महागठबंधन से अलग होने की बात से सीधे इंकार कर दिया था. उन्होंने तब साफ कह दिया था कि वह नीतीश कुमार को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाले हैं. ऐसे में अब जीतन राम मांझी के ताजा बयान ने बिहार की सियासत में भूचाल ला दिया है.
जीतन राम मांझी ने अपने ताजा बयान में कह दिया कि राजस्थान में जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ राजेश पायलट अनशन कर सकते हैं तो हम नीतीश कुमार के खिलाफ क्यों अनशन नहीं कर सकते हैं. उन्होंने अपनी स्पष्टता को अपनी मजबूरी माना.
वह अपने बयान में यह भी कहते सुने गए कि वह महागठबंधन में अब दबाव महसूस कर रहे हैं. उन्होंने साफ कह दिया कि मुझे हर तरफ से कहा जा रहा है कि मेरे साथ आइए. ऐसे में अब हमें निर्णय लेना ही होगा. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार तो पहले ही बोल चुके हैं कि हम ही आपको सबकुछ देंगे ऐसे में अब निर्णय की घड़ी अब आ गई है.
वैसे आपको बता दें कि नीतीश कुमार मांझी की इफ्तार पार्टी में शामिल हुए थे तो सब सामान्य लग रहा था लेकिन जिस तरह से अब उनके बयान आ रहे हैं उसने बिहार की सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है. इस दावत-ए-इफ्तार में नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी के बीच खूब सियासी चर्चा हुई थी और इस दौरान जीतन राम मांझी ने मीडिया से बताया था कि उनके ऊपर कितना दबाव है.
हालांकि मांझी यह भी मानते हैं कि उन्हें नीतीश कुमार के साथ बहुत कुछ मिला और अभी बहुत कुछ मिलना बाकी है. उन्होंने नीतीश कुमार को बिहार में शराबबंदी पर सर्वदली बैठक बुलाने की भी सलाह दी. इससे पहले भी अंबेडकर जयंती के अवसर पर मांझी ने अपने पुराने जख्म को दिखाते हुए कहा था कि हमारे पास 60 विधासक तब होते तो कौन मुझे सीएम की कुर्सी से उतार सकता था. ऐसे में 5 साल की बात तो दूर दो साल में मैं बिहार को टेकुआ की तरह सीधा कर देता. अब सियासी पंडित मांझी के इन बयानों से अटकल लगा रहे हैं कि उनके पास अब अपने लिए रास्ता चुनने का विकल्प आ गया है.
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अब महागठबंधन के लिए झटका कम हो नहीं रहा है एक तरफ कांग्रेस के नेता शकील अहमद ने कोई भी चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर पार्टी और अलायंस दोनों को परेशानी में डाल दिया है. वहीं जीतन राम मांझी महागठबंधन पर दबाव इसलिए बना रहे हैं कि वह कांग्रेस से ज्यादा सीटों पर लोकसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारना चाहते हैं और साथ ही नीतश सरकार में एक तो उनका बेट पहले से मंत्री है और एक मंत्री पद की मांग उनकी पहले से रही है. दूसरी तरफ कांग्रेस का भले कोई खास जनाधार बिहार में नहीं हो ऐसे में मधुबनी की सीट जो शकील अहमद लड़ते हैं वह तो अब्दुल बारी सिद्धिकी को उतारकर राजद अपने पाले में कर लेगी लेकिन महागठबंधन के सातों दलों को पता है कि दलित वोट बैंक के लिए भाजपा के पास लोजपा जैसी पार्टी है लेकिन महागठबंधन में केवल मांझी हीं हैं ऐसे में वह चले गए तो गठबंधन की परेशानी बढ़ जाएगी और शायद यही सब देखकर मांझी अभी से दबाव बढ़ा रहे हैं.