Bihar Politics: ललन सिंह ने नीतीश कुमार के सामने एक तरह से यह साबित कर दिया था कि आरसीपी सिंह, उपेंद्र कुशवाहा जो भी बोल रहे हैं, वो सब भाजपा नेताओं के इशारे पर बोल रहे हैं. आज यही आरोप खुद ललन सिंह पर लग रहे हैं. बस उधर वाला साइड भाजपा के बदले राजद हो गया है.
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Bihar Politics: कहते हैं, इतिहास खुद को दोहराता है. बिहार में आज इस बात की बानगी साफ तौर पर देखी जा सकती है. कभी भाजपा से नजदीक होने का आरोप लगाकर आरसीपी सिंह (RCP Singh) को न केवल जेडीयू के अध्यक्ष़ पद से रुखसत किया गया, मोदी सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा दिलवाया गया और उसके बाद पार्टी से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. आरसीपी या उपेंद्र कुशवाहा (Upendra Kushwaha) की किसी भी बात पर खुद नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी कहते थे कि वे किसी और के इशारे पर बोल रहे हैं. तब उनका इशारा भाजपा की ओर हुआ करता था. उस समय जेडीयू में ललन सिंह (Lalan Singh) की तूती बोलती थी और नीतीश कुमार के बाद सबसे पावरफुल नेताओं में उनकी गिनती थी. आज वहीं ललन सिंह राजद (RJD) के अलावा लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) के करीबी होने का आरोप झेल रहे हैं. यही नहीं, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाने की भी बात अंदरखाने से बाहर आ रही है. अब देखना यह है कि ललन सिंह खुद ही इस्तीफा देते हैं या फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से उन्हें हटाया जाता है.
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बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव से ललन सिंह की बढ़ती नजदीकियों से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाखुश हैं और उन्होंने 29 दिसंबर को राष्ट्रीय परिषद की बैठक बुलाई है. जानकारों का कहना है कि राष्ट्रीय परिषद की बैठक तभी बुलाई जाती है, जब पार्टी में बड़े स्तर पर परिवर्तन करना होता है. इसलिए ललन सिंह के इस्तीफे को लेकर तरह तरह की बातें सामने आ रही हैं. अगर ललन सिंह की अध्यक्ष छिन गई तो बिहार के पूर्व सीएम कर्पू्री ठाकुर के बेटे और सांसद रामनाथ ठाकुर की लॉटरी लग सकती है. नीतीश कुमार इस बहाने एक बार फिर पिछड़ा कार्ड खेल सकते हैं. रामनाथ ठाकुर के अलावा अशोक चौधरी का नाम भी अध्यक्ष पद के लिए चल रहा है. एक चर्चा यह भी चल रही है कि लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए नीतीश कुमार अध्यक्ष पद अपने पास भी रख सकते हैं.
एक समय नीतीश कुमार के सबसे चहेते आरसीपी सिंह आज जेडीयू से बाहर होकर भाजपा में शामिल हो गए हैं. वाजपेयी सरकार के दौरान मंत्री रहते नीतीश कुमार और आरसीपी सिंह में नजदीकियां बढ़ी थीं. नौबत यहां तक आ पहुंची कि आरसीपी सिंह ने वीआरएस लेकर जेडीयू ज्वाइन कर लिया. वे पार्टी में कई पदों पर रहे और बाद में अध्यक्ष भी बने. केंद्र में मंत्री बनने की बारी आई तो आरसीपी सिंह पर आरोप लगा कि उन्होंने अपना ही नाम आगे बढ़ा दिया था. उसके बाद वे ललन सिंह कैंप के निशाने पर आ गए थे. आरसीपी सिंह राज्यसभा सदस्य थे. मंत्री बने तब तक आधा से अधिक कार्यकाल खत्म हो चुका था. शेष समय के लिए मंत्री रहे पर जेडीयू ने बाद में उनका नाम राज्यसभा के लिए रिपीट नहीं किया था. तब तक अध्यक्ष पद से वे रुखसत हो चुके थे और ललन सिंह की पार्टी में पूरी हनक चल रही थी. नतीजा यह हुआ कि आरसीपी सिंह को केंद्र में मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. उसके बाद से वे नीतीश कुमार से इतने बेगाने हुए कि भाजपा में शामिल हो गए और अब दिन रात और सुबह शाम बस उन्हीं को कोसते रहते हैं.
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जेडीयू अध्यक्ष पद संभालने के बाद से ही ललन सिंह राजद से नजदीकियां बढ़ाने लगे. उनकी अध्यक्षी में ही जेडीयू ने एक बार फिर राजद के साथ सरकार बनाना तय किया, जो आज भी चल रही है. ललन सिंह ने न केवल राजद से नजदीकियां बढ़ाईं, बल्कि लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव के भी काफी करीब होते चले गए. नीतीश कुमार भले भाजपा के साथ रहें या फिर राजद के साथ, जुबान हमेशा संतुलित रखते आए हैं और यही बात उनकी सफलता का सबसे बड़ा कारण है. दूसरी ओर, ललन सिंह भाजपा के खिलाफ मुखर होते चले गए और संसद में गृह मंत्री अमित शाह से नोकझोंक के वीडियो काफी वायरल हुए. इस तरह की राजनीति नीतीश कुमार नहीं करते हैं और शायद ही ऐसी राजनीति उनको पसंद हो. जानकार बता रहे हैं ललन सिंह की इस बात से भी नीतीश कुमार नाराज हैं कि वे एक्सट्रीम पर जाकर बयानबाजी करते हैं. देखना यह है कि राष्ट्रीय परिषद की बैठक में क्या ललन सिंह अध्यक्ष पद छोड़ते हैं या उन्हें पद से हटाया जाएगा या फिर यह बैठक किसी और कारण से बुलाई गई है. जो भी हो, बिहार और जेडीयू की राजनीति में आने वाला समय घमासान वाला होता दिख रहा है.