Bihar Se Palayan Series 3: र से रोजगार के लिए परदेश में हेट स्टोरी का शिकार हो जाते हैं बिहारी
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Bihar Se Palayan Series 3: र से रोजगार के लिए परदेश में हेट स्टोरी का शिकार हो जाते हैं बिहारी

Bihar Se Palayan Series 3: घर से निकलते ही बिहारियों को ट्रेन में शारीरिक कष्ट तो मंजिल पर पहुंचकर मानसिक कष्ट से गुजरना पड़ता है. वे जहां काम करते हैं, वहां न भाषा, न खान पान और न ही रहन सहन अपनी होती है. उन्हें हर तरह से समझौता करना पड़ता है. 

बिहार से पलायन

Bihar Se Palayan Series 3: बिहार से भारी संख्या में पलायन के पीछे कुछ लोग सामाजिक कारण गिनाएंगे तो कुछ आर्थिक तो कुछ राजनीतिक, लेकिन इस बात से कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि राज्य से पलायन केवल रोजगार के लिए हो रहा है. केवल रोजी रोटी के जुगाड़ में घरों की दीवारें अपनों के लिए रोती हैं. घर आंगन सूने हो जाते हैं और बच्चों की किलकारियां बड़ी लाइन की ट्रेनों से दूर महानगरों में 10/10 के कमरों में सिमटकर रह जाती हैं. र से रोजगार, चाहे नौकरी के लिए हो या बिजनेस के लिए या फिर किसी अन्य काम के लिए, उद्देश्य रोजी रोटी कमाना और अपने बच्चों को अच्छी परवरिश देना होता है. 

2012 का एनएसएसओ डेटा के अनुसार, बिहार से भारी संख्या में पलायन रोजगार संबंधी कारणों से ही हो रहा है. पलायन करने वाले कुछ लोगों में से लगभग 30.7 प्रतिशत रोजगार की तलाश में चले गए, क्योंकि वे जहां से गए वहां रोजगार नहीं था. बाहर जाने वाले कुछ पुरुषों में से लगभग 23.8 प्रतिशत ने बेहतर रोजगार पाने के लिए मूल स्थान छोड़ दिया था. लगभग 34.3 प्रतिशत पुरुषों ने तब पलायन किया जब उन्हें बाहर आने पर रोजगार करने का प्रस्ताव मिला. परिवार का एक सदस्य जब बाहर गया तो माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्य भी प्रवासी हो गए. एक आदमी के प्रवासी होने पर एक पूरा परिवार प्रवासी हो गया.

कोरोना के समय उम्मीद बंधी थी कि प्रवासी मजदूर लौट आएंगे तो राज्य में ही उनको रोटी रोटी के साधन मिल जाएंगे पर आंकड़े बताते हैं कि कोरोना के बाद पलायन में और तेजी आई है. राज्य तो छोड़िए, कोरोना के बाद बिहार के लोगों ने विदेश में भी पलायन किया है. पूरे देश भर से कोरोना के बाद 3,34,000 लोग विदेश गए हैं, जिनमें से 56,000 अकेले बिहार के हैं. ये लोग रोजगार के लिए विदेश गए हुए हैं. पिछले 5 साल में 2023 में बिहार से विदेश जाने वालों की यह सबसे बड़ी संख्या है. विदेश में बिहारियों के लिए पसंदीदा जगहों में सउदी अरब, यूएई, कुवैत, कतर, ओमान, बहरीन, मलेशिया, अफगानिस्तान, इंडोनेशिया, इराक, जॉर्डन, लेबनान, लीबिया, दक्षिणी सूडान, सीरिया, थाईलैंड आदि देश हैं. 

विदेश जाने वालों में सारण, गोपालगंज और सीवान के लोगों की संख्या अधिक है. 2022 में पटना से 6993 लोग विदेश गए तो सीवान से 2272 और पूर्वी चंपारण से 3657. गोपालगंज से विदेश जाने वालों की संख्या 8751 है तो सारण से 2272, मधुबनी से 4389, दरभंगा से 2424, मुजफ्फरपुर से 1917, किशनगंज से 2232, सीतामढ़ी से 2112 और पश्चिम चंपारण से 4262 लोग विदेश गए. पूर्णिया से 2846, अररिया से 1586 और सुपौल से 1318 लोग विदेश जा चुके हैं. 

एक आंकड़े के अनुसार, बिहार से नौकरी की तलाश में बाहर जाने वाले 85 प्रतिशत मजदूर प्रतिमाह केवल 5,000 रुपये कमाते हैं. कम उम्र से रोजगार करने और कौशल की कमी के कारण ये लोग जिंदगी भर एक ही काम करते रहते हैं और ​इनके भविष्य में विकास की संभावनाएं खत्म होती चली जाती हैं. बाहर जाने पर निचली जाति के मजदूरों के साथ बदसलूकी की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं और उसे सबसे निचले स्तर का काम सौंपा जाता है. पहले तो लंबी सफर के बाद ये परदेश पहुंचते हैं और फिर पुलिस इन्हें परेशान करती है. उसके बाद से ये लोग ठेकेदारों के चंगुल में फंस जाते हैं और वहां से निकलने में इन्हें दिन में ही तारे दिख जाते हैं. 

इनके साथ लूटपाट भी की जाती है. स्थानीय लोग इनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करते हैं और पुलिस भी इनकी नहीं सुनती. ऐसे लोगों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दी जाती है अलग से काम करने के पैसे भी नहीं दिए जाते. परदेश गए बिहारी मजदूर बहुत ही डर के साये में काम करते हैं. काम न छिन जाए या ​दिहाड़ी न मारी जाए, इसके डर से ये मुंह बंद करके काम करते हैं. असंगठित क्षेत्र में काम करने के ​कारण इन्हें कार्यस्थल पर हादसों के बाद भी मुआवजे के रूप में कुछ नहीं मिलता. पीएफ तो छोड़िए, ईएसआईसी आदि की सुविधा भी इन्हें हासिल नहीं होती.

बिहार से विदेश जाने वालों को सरकार भी प्रोत्साहित कर रही है. ऐसे लोगों को जाने से पहले ट्रेनिंग दी जाती है और इसके लिए 36 मास्टर ट्रेनर बनाए गए हैं. विदेश जानेवालों को दरभंगा, पटना, गया, पूर्णिया और मुजफ्फरपुर जैसे जगहों पर प्रशिक्षण दिया जा रहा है. विदेश मंत्रालय की ओर से ऐसे लोगों को इमिग्रेशन दिया जाता है और ऐसे लोगों के कागजात की जांच भी विदेश मंत्रालय के माध्यम से होती है. पटना में पहले कार्यालय न होने से यहां के लोगों को कोलकाता या फिर रायबरेली जाना पड़ता था. अभी नियोजन भवन में इसका कार्यालय स्थित है और पटना में विदेश भवन बनाने के लिए गर्दनीबाग में जगह तय कर ली गई है.

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