Bihar Caste Census Vs Rohini Commission Report: बिहार की जातीय जनगणना की रिपोर्ट पेश कर दी, क्या मोदी सरकार अब रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट सामने रखेगी?
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Bihar Caste Census Vs Rohini Commission Report: बिहार की जातीय जनगणना की रिपोर्ट पेश कर दी, क्या मोदी सरकार अब रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट सामने रखेगी?

Bihar Caste Census Vs Rohini Commission Report: बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने जातीय जनगणना की रिपोर्ट सावर्जनिक कर दी है. इसे बिहार की राजनीति में भूचाल आने की बात कही जा रही है. अब सवाल है कि क्या मोदी सरकार रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को पब्लिश कर सकती है.

 

जातीय जनगणना बनाम रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट

Bihar Caste Census Vs Rohini Commission Report: गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर को बिहार सरकार ने जातीय जनगणना (Bihar Caste Census) की रिपोर्ट प्रकाशित कर दी है. इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से बिहार की राजनीति में भूचाल आने की बात कही जा रहा है. बिहार सरकार की ओर से जहां सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar), डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव (Deputy CM Tejashwi Yadav) और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) ने क्रांतिकारी करार दिया है, वहीं भारतीय जनता पार्टी (BJP) की ओर से भी कहा जा रहा है कि जातीय जनगणना (Caste Census) कराने में उसकी सहमति थी. बिहार सरकार (Bihar Govt) ने जातीय जनगणना के जो आंकड़े जारी किए हैं, उसके अनुसार बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 बताई जा रही है. जातीय जनगणना के अनुसार, बिहार की कुल आबादी में हिंदुओं की आबादी 81.99 प्रतिशत है तो मुसलमानों की आबादी 17.70 प्रतिशत बताई जा रही है. अब सवाल यह है कि बिहार सरकार के जातीय जनगणना के जवाब में क्या मोदी सरकार (Modi Govt) रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट (Rohini Commission Report) को सार्वजनिक कर सकती है. अगर ऐसा होता है तो पूरे देश में पिछड़ों के आरक्षण को लेकर नई बहस छिड़ सकती है. 

क्या है रोहिणी कमीशन और उसकी फाइंडिग्स? 

2017 में मोदी सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत मिली शक्तियों के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी के उपवर्गीकरण के लिए रोहिणी आयोग बनाया था. आयोग की अध्यक्ष दिल्ली हाई कोर्ट की रिटायर मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जी. रोहिणी को बनाया गया था. 12 सप्ताह में रोहिणी आयोग को रिपोर्ट देनी थी लेकिन इस आयोग को लगातार विस्तार मिलता रहा और 31 जुलाई को रोहिणी आयोग ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. अगर यह रिपोर्ट सार्वजनिक की जाती है तो ओबीसी आरक्षण को लेकर देश में नई बहस छिड़ सकती है. माना जा रहा है कि बिहार के जातीय जनगणना के जवाब में मोदी सरकार रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को ढाल की तरह इस्तेमाल कर सकती है, लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है. 

क्यों किया गया था रोहिणी आयोग का गठन? 

ओबीसी की सूची में शामिल 5000 से अधिक जातियों को उपवर्गीकृत करने के लिए रोहिणी आयोग का गठन किया गया था. एक धारणा बन गई थी कि ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल कुछ ही समुदायों को 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलता है. शिक्षा और नौकरियों में प्रवेश के लिए समान अवसर सभी पिछड़ी जातियों को मिले, इसके लिए रोहिणी आयोग का गठन किया गया था. 

क्या कहती है रोहिणी आयोग की फाइंडिग्स?

2018 में रोहिणी आयोग ने पिछले 5 साल में ओबीसी कोटा के तहत केंद्र सरकार की ओर से दी गई 1.3 लाख सरकारी नौकरियों का अध्ययन किया था. वहीं आयोग ने 2018 में पिछले 3 साल में केंद्र सरकार के संस्थानों जैसे आईआईटी और आईआईएम जैसे संस्थान में प्रवेश को लेकर भी आंकड़ों का अध्ययन किया था. अभी रोहिणी आयोग की रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की गई है, लिहाजा मीडिया रिपोर्ट के आधार पर यह आंकड़ा सामने आया कि ओबीसी के लिए आरक्षित सभी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में प्रवेश के कोटे का 97 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी के केवल 25 प्रतिशत लोगों को ही प्राप्त हुआ. 

इसका मतलब यह हुआ कि ओबीसी की ताकतवर जातियों ने आरक्षण का सबसे अधिक फायदा उठाया और बाकी जातियों को इसका लाभ नहीं मिला. आयोग ने यह भी पाया कि जॉब्स और प्रवेश में से 24.95 प्रतिशत हिस्सा केवल 10 प्रतिशत लोगों को मिला और 983 जातियों का नौकरियों और प्रवेश में प्रतिनिधित्व शून्य रहा. अध्ययन का एक हिस्सा यह भी कहता है कि नौकरियों और प्रवेश में 994 ओबीसी उपजातियों का कुल प्रतिनिधित्व केवल 2.68 प्रतिशत ही है.

जातीय जनगणना की तोड़ निकालने की कोशिश करेगी मोदी सरकार

विपक्षी एकता के लिए अप्रैल में ​बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की थी, उसके बाद खड़गे ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर पूरे देश में जातीय जनगणना को लेकर आवाज उठाई थी. विपक्षी एकता की तमाम बैठकों में भी जातीय जनगणना की मांग को हवा दी जा रही है. केंद्र सरकार अब तक जातीय जनगणना कराने से इनकार करती आ रही है लेकिन यह माना जा रहा है कि ओबीसी के वोटों के चक्कर में मोदी सरकार इस मसले पर दबाव में है. इसलिए यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार जातीय जनगणना की हवा निकालने की कोशिश करेगी. अगर ऐसा होता है कि मोदी सरकार के लिए रोहिणी कमीशन से बेहतर और कुछ नहीं हो सकता. टीवी डिबेट्स में बीजेपी के कई प्रवक्ताओं ने रोहिणी कमीशन की रिपोर्ट को तुरुप का इक्का बताया है. 

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