कुंभ मेला हर 12 साल में आयोजित होता है, दुनिया भर से करोड़ों श्रद्धालु इस मेले में शाही स्नान के लिए पहुंचते हैं. इस मेले में नागा साधुओं की खास मौजूदगी देखने को मिलती है.
इन नागा साधुओं का स्वरूप अनोखा होता है, क्योंकि ये नग्न अवस्था में शरीर पर राख मलकर रहते हैं, जो सांसारिक इच्छाओं से उनकी पूरी तरह मुक्ति को दर्शाता है.
कुंभ मेले के खत्म होने के बाद लोग अक्सर आश्चर्य करते हैं कि ये साधु कहां चले जाते हैं. इनकी रहस्यमयी जीवनशैली को लेकर कई सवाल उठते हैं.
ऐसा माना जाता है कि कुंभ मेले के खत्म होने के बाद ये साधु घने जंगलों या गुफाओं में चले जाते हैं. वे वहीं अपनी साधना और ध्यान में लीन रहते हैं.
नागा साधु अक्सर रात के अंधेरे में अपनी यात्रा करते हैं, ताकि उनकी गतिविधियां बाहरी दुनिया से छिपी रहें.
हर आचार्य इन साधुओं के साथ एक 'कोतवाल' रखता है, जो इनके प्रबंधन की जिम्मेदारी लेता है. वह साधुओं को जंगल में जरूरी सामान और सहायता मुहैया कराता है.
कोतवाल का मुख्य काम यह सुनिश्चित करना है कि साधुओं को उनकी साधना में कोई व्यवधान न आए और उनकी ज़रूरतें पूरी हों.
कुंभ मेले के दौरान इन साधुओं की आस्था और भक्ति को देखने के बाद, लोग उनके जीवन के बारे में और अधिक उत्सुक हो जाते हैं.
इन साधुओं का जीवन सांसारिक सुख-सुविधाओं से पूरी तरह मुक्त होता है. वे खुद को केवल आध्यात्मिक उन्नति और ईश्वर प्राप्ति के लिए समर्पित करते हैं.
कुंभ मेले के बाद इन साधुओं का गायब हो जाना उनके गहन साधना जीवन का एक हिस्सा है, जो दर्शाता है कि वे हर समय ईश्वर के मार्ग पर चलते हैं.