Ramleela 2022: कौन हैं प्रतापभानु जिसके प्रसंग के बिना नहीं होती है रामलीलाएं
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Ramleela 2022: कौन हैं प्रतापभानु जिसके प्रसंग के बिना नहीं होती है रामलीलाएं

Ramleela 2022: रामलीला में आपने ध्यान दिया होगा कि इसके पहले दिन न श्रीराम की, न रावण की और न ही विष्णु जी की कथा सुनाई जाती है, बल्कि सबसे पहले एक राजा की कहानी सुनाई जाती है. 

Ramleela 2022: कौन हैं प्रतापभानु जिसके प्रसंग के बिना नहीं होती है रामलीलाएं

पटनाः Ramleela 2022: नवरात्र का समय चल रहा है, एक तरफ आदिशक्ति की उपासना हो रही है तो दूसरी तरफ रामलीलाएं भी जारी हैं. अगर आपने कभी भी रामलीला देखी हो, तो ध्यान दिया होगा कि इसके पहले दिन न श्रीराम की, न रावण की और न ही विष्णु जी की कथा सुनाई जाती है, बल्कि सबसे पहले एक राजा की कहानी सुनाई जाती है. असल में यही राजा, रामकथा के होने और रामायण लिखे जाने की वजह है. तुलसी दास ने भी मानस में इस प्रसंग का जिक्र सबसे पहले किया है. 

वो लिखते हैं, - सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी. जो गिरिजा पति संभु बखानी॥
बिस्व बिदित एक कैकय देसू. सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू॥1॥
 राज धनी जो जेठ सुत आही. नाम प्रतापभानु अस ताही॥
अपर सुतहि अरिमर्दन नामा. भुजबल अतुल अचल संग्रामा॥3॥

इसका अर्थ हुआ कि, मैं आपको वो कथा सुनाता हूं जो भगवान शिव ने मां पार्वती को सुनाई थी. कैकेय देश में एक सत्यकेतु नाम का राजा था. उसके बड़े बेटे का नाम प्रतापभानु था. राजा ने उसका राजतिलक कर दिया. 

सतयुग के अंत में राजा था प्रतापभानु
असल में प्रतापभानु सतयुग के अंत से ठीक पहले राजा बना था. एक बार राजा प्रतापभानु शिकार के लिए वन में गए और एक जंगली सुअर का पीछा करते-करते राह भटक गए. सैनिक आदि पीछे छूट गए थे. इधर जब रात घिरने को आई तो राजा ने भी आसरा खोजा. पास ही एक कुटिया में एक मुनि रहते थे. असल में वह मुनि राजा से ही हारा हुआ एक कपटी था और जंगल में इस तरह रह कर बुरा समय काट रहा था. कपटी मुनि जानता तो सब था, लेकिन अनजान बनते हुए उसने राजा का परिचय पूछा. राजा ने मुनि को बताया कि वह महाराज प्रतापभानु के मंत्री हैं और वन में मार्ग भटक गए हैं. इतना सुनते ही उस कपट मुनि ने कहा-आपने नीति का पालन करते हुए अपने को छुपाया, मुझे अच्छा लगा. नीति यही कहती है कि स्थान विशेष को छोड़कर राजा को अपना परिचय स्पष्ट नहीं करना चाहिए- राजन प्रतापभानु. अपना नाम सुनकर राजा आश्चर्य में पड़ गया और मुनि को बहुत सिद्द पुरुष समझ बैठा. 

कपटी मुनि ने बिछाया मायाजाल
राजा प्रतापभानु उसके मायाजाल में आ गए और चक्रवर्ती सम्राटके पद हेतु उनसे विचार विमर्श करने लगे तब उस कपट मुनि ने राजा प्रतापभानु से कहा कि उसके जीवन में संकट सिर्फ ब्राह्मणों के शाप से ही आ सकता है. इस संसार में ब्राह्मणों के शाप के अतिरिक्त कोई और तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता. इसलिए सभी ब्राह्मणों को निमत्रण देकर उन्हें भोजन करवाओ. इस प्रकार सभी ब्राह्मण तुम्हारे अधीन हो जाएँगे और तुम्हारे जीवन में कभी कोई कष्ट नहीं आएगा. लेकिन ब्राह्मण के लिए भोजन मुझे ही बनाना पड़ेगा. आज से तीन दिन बाद मैं तुम्हारे पास आऊंगा और इस घटना के बारे में बताऊंगा. जिससे तुम मुझे पहचान जाओगे. हमारे इस मिलन का तुम किसी से कोई भेद न खोलना अन्यथा सब व्यर्थ हो जाएगा.अब रात्रि बहुत हो गई हैं-तुम आराम करो. 

ऐसे मिला श्राप
अगली सुबह प्रतापभानु महल लौट आए, लेकिन मुनि की बात उन्हें याद रही. राजा प्रतापभानु ने एक लाख ब्राह्मणों को निमंत्रित किया और कपटी मुनि ने मायावी राक्षस के साथ मिलकर अभक्ष्य मांस से पकाये व्यंजन बनाए. जब ब्राह्मण भोजन ग्रहण करने बैठे तभी आकाशवाणी हुई. जिससे सभी ब्राह्मणों को पता चला कि उनके सामने मांस परोसा गया है. इतना पता चलते ही सभी ब्राह्मणों ने राजा प्रतापभानु को श्राप दिया कि वे कुल समेत राक्षस हो जाये. 
इधर उस कपटी मुनि ने जब ये आकाशवाणी सुनी कि प्रतापभानु अपना सत्य खो चुका है तो उसने कई राजाओं के साथ मिलकर कैकय देश पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध में सत्यकेतु का वंश ही समाप्त हो गया. यही राजा प्रतापभानु अगले जन्म में रावण बना, उसका भीमकाय भाई अरिमर्दन कुम्भकर्ण बनकर जन्मा और राजा प्रतापभानु का मंत्री धर्मरुचि रावण के सौतेले भाई विभीषण के रूप में जन्मा.

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