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Old Pension Scheme: भाजपा शासित राज्यो में छोड़कर कई कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों की जहां सरकार चल रही है वहां पुरानी पेंशन योजना को लागू कर दिया गया है. हालांकि केंद्र सरकार ने भी नई पेंशन योजना को लेकर ढेर सारे बदलाव किए हैं और कुछ शर्तों के साथ पुरानी पेंशन योजना को लागू करने का फैसला किया है. आपको बता दें कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ कर दिया था कि नई पेंशन योजना की जगह पुरानी पेंशन योजना को लागू करने वाले राज्य इसे अपने बूते पर लागू करें. क्योंकि कर्मचारियों के द्वारा एनपीएस के तहत जमा एक पैसा भी राज्य को केंद्र सरकार नहीं देगी. उन्होंने साफ कहा था कि इन पैसेों पर सिर्फ और सिर्फ कर्मचारियों का हक है. ऐसे में यह राज्यों को नहीं दिया जा सकता है.
केंद्र सरकार के इश रूख की वजह से किसी भाजपा शासित राज्य ने इस स्कीम को अभी तक लागू नहीं किया है. लेकिन जिस तरह से यूपीए शासित या फिर आम आदमी पार्टी शासित पंजाब में इस पुरानी पेंशन योजना को लागू करने का फैसला लिया गया है इसका सीधा असर अब अन्य राज्यों की राजनीतिक सेहत पर भी दिखने लगा है. हालांकि बिहार में अभी इस पुरानी पेंशन योजना को लागू करने की घोषणा नहीं हुई है लेकिन वहां भी इसकी मांग ने जोर पकड़ लिया है क्योंकि राजद के घोषणापत्र में यह शामिल था और अब चूकि सरकार वहां महागठबंधन की है तो इसकी मांग ने जोर पकड़ लिया है.
ऐसे में अब भाजपा शासित कुछ राज्यों को अपनी सेहत पर इसकी वजह से असर होता दिख रहा है तो वहां की सरकारें भी अब अपना रुख बदलने की कवायद में लग गई हैं. कर्नाटक ने तो इस पुरानी पेंशन योजना को राजस्थान में कैसे लागू किया गया है इसको जानने के लिए टीम भेजे जाने की तैयारी है. कर्नाटक राजस्थान के साथ उन पांच और राज्यों जहां इस योजना को लागू किया गया है वहां अपनी टीम भेजेगी ताकि इससे जुड़ी एबीसीडी सब सीखी जा सके.
अब भाजपा शासित राज्यों पर भी इस स्कीम को लागू करने का दबाव बढ़ रहा है ऐसे में ये राज्य केंद्र सरकार पर भी इसको लेकर दबाव बढ़ा सकते हैं और आगामी चुनाव में पार्टी की हालत को देखकर केंद्र सरकार से इसे लागू करने की गुहार लगा सकते हैं. भाजपा को साफ पता है कि कांग्रेस के हाथ में हिमाचल के जाने की एक और केवल एक वजह पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के कांग्रेस का वादा रहा. जिसकी वजह से भाजपा को यह राज्य गंवाना पड़ा.
कर्नाटक में भाजपा अपने हाथ से सत्ता गंवाना नहीं चाहती है तो वहीं जल्द ही मध्यप्रदेश का भी चुनाव है. जहां अगर भाजपा हारी तो उसके लिए चीजें मुश्किल हो जाएगी. भाजपा अपने हाथ से मध्यप्रदेश और कर्नाटक नहीं जाने देना चाहती है जबकि हिमाचल की हार के बाद भाजपा के नेता दबी जुबान से स्वीकार करने लगे हैं कि ओपीएस की वजह से ही उनके हाथ से सत्ता गई. ऐसे में भाजपा के लिए यह बड़ी मुसीबत बन गई है.