Kanakdhara Strot: कनकधारा स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से घर में धन-धान्य की बढ़ोतरी होती है. घर में सुख शांति आती है और जातक की हर मनोकामना पूर्ण होती है. कनकधारा स्तोत्र का पाठ मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है.
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पटनाः Kanakdhara Strot: सनातन परंपरा में शुक्रवार के दिन मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि मां लक्ष्मी है सभी निधियों और ऐश्वर्यों की स्वामिनी है और संसार के सभी दिव्य रत्न उन्गीं की वजह से हैं. देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए उनका दिव्य पाठ और स्तुति शुक्रवार को करनी चाहिए. अगर आपको धन प्राप्ति की कामना है तो शुक्रवार देवी लक्ष्मी की स्तुति के लिए कनकधारा स्त्रोत का पाठ कीजिए. कनकधाराकी स्तोत्र में मां लक्ष्मी के गुणों का वर्णन 21 श्लोक में किया गया है. इस स्तोत्र का पाठ मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है. इस स्तोत्र की रचना स्वयं आदि शंकराचार्य ने की थी.
यह है इसकी कथा
कहते हैं कि एक दिन आदि गुरु शंकराचार्य भिक्षाटन के लिए गए थे. एक घर में भिक्षा मांगते समय एक बहुत गरीब ब्राह्मण महिला दरवाजे पर आई. आदि गुरु शंकराचार्य जी ने उनसे भिक्षा मांगी तो महिला ने अपने घर में खोजा कि वह कुछ तो ब्राह्मण को दान कर सके. उसे केवल एक आंवला फल मिला और वही फल उस महिला ने आदि गुरु शंकराचार्य जी को दान कर दिया. उस महिला की निस्वार्थता देख आदिगुरु बहुत प्रभावित हो गए. उन्होंने देवी लक्ष्मी की प्रशंसा में 21 श्लोक के एक स्तोत्र की रचना की और उसका पाठ किया. उस पाठ से मां लक्ष्मी प्रसन्न हुईं और आदि गुरु शंकराचार्य के सामने प्रकट हुईं. आदि गुरु शंकराचार्य ने मां से उस गरीब ब्राह्मण महिला को धनी बनाने की कृपा की मांग की. कनकधारा स्त्रोत से प्रसन्न मां ने प्रसन्नता से यह वरदान दे दिया और महिला के दिन बहुर गए.
यह है कनकधारा स्त्रोत
कनकधारा स्तोत्र का नियमित रूप से पाठ करने से घर में धन-धान्य की बढ़ोतरी होती है. घर में सुख शांति आती है और जातक की हर मनोकामना पूर्ण होती है. कनकधारा स्तोत्र का पाठ मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है. इसके लिए सुबह स्नान करने के बाद देवी लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर के सामने कनकधारा स्तोत्र का पाठ करें. स्तोत्र का पाठ छंद तथा लय में होना चाहिए.
कनकधारा स्तोत्र
अगं हरे: पुलकभूषण माश्रयन्ती
भूङ्गाङ्गनेव मुकुलाधरणं तमालम्।
अगीकृताखिलविभतिरपागलीला
माङ्गल्यदास्तु मम मगळदेवतायाः ।।1।।
मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारे:
प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या
सा मे श्रियं दिशतु सागर सम्भवाया: ।।2।।
विश्वामरेन्द्र पदविभ्रम दान दक्षम्
आनन्द हेतु रधिकं मधुविद्विषोपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणार्द्धम्
इन्दीवरोदर सहोदरमिन्दिराय: ।।3।।
आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दम्
आनन्दकन्दम निमेषमनंगतन्त्रम्।
आकेकर स्थित कनी निकपक्ष्म नेत्रं
भूत्यै भवेन्मम भुजंगशयांगनाया: ।।4।।
बाह्यन्तरे मधुजित: श्रितकौस्तुभे या
हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतो पि कटाक्षमाला
कल्याण मावहतु मे कमलालयाया: ।।5।।
कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्
धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव्।
मातु: समस्त जगतां महनीय मूर्ति
भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनाया: ।।6।।
प्राप्तं पदं प्रथमत: किल यत्प्रभावान्
मांगल्य भाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत दिह मन्थर मीक्षणार्धं
मन्दालसं च मकरालयकन्यकाया: ।।7।।
दद्याद् दयानुपवनो द्रविणाम्बुधाराम्
अस्मिन्नकिञ्चन विहंग शिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं
नारायण प्रणयिनी नयनाम्बुवाह: ।।8।।
इष्टा विशिष्टमतयोअपि यया दयार्द्र
दृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रह्ष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां
पुष्टिं कुषीष्ट मम पुष्करविष्टराया: ।।9।।
गीर्देवतैति गरुड़ध्वज सुन्दरीति
शाकम्भरीति शशिशेखर वल्लभेति।
सृष्टि स्थिति प्रलय केलिषु संस्थितायें
तस्यै नमस्त्रि भुवनैक गुरोस्तरूण्यै ।।10।।
श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफल प्रसूत्यै
रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्णवायै।
शक्तयै नमोऽस्तु शतपत्र निकेतानायै
पुष्टयै नमोऽस्तु पुरूषोत्तम वल्लभायै ।।11।।
नमोऽस्तु नालीक निभाननायै
नमोऽस्तु दुग्धौदधि जन्म भूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृत सोदरायै
नमोऽस्तु नारायण वल्लभायै ।।12।।
नमोऽस्तु हेमाम्बुजपीठिकायै
नमोऽस्त भुमण्डलनायिकायै।
नमोऽस्तु देवादिदयापरायै
नमोऽस्तु शार्ङगायुधवल्लभायै ।।13।।
नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै
नमोऽस्तु विष्णोरुरसि स्थितायै।
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै
नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै ।।14।।
नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै
नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै।
नमोऽस्तु देवादिभिर्चितायै
नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै ।।15।।
सम्पत्कराणि सकलेन्द्रिय नन्दानि
साम्राज्यदान विभवानि सरोरूहाक्षि।
त्व द्वंदनानि दुरिता हरणणोद्यतानि
मामेव मातर निशं कलयन्तु मान्ये ।।16।।
यत्कटाक्षसमुपासना विधि:
सेवकस्य सकलार्थ सम्पद:।
संतनोति वचनांगमानर्सेसस्
त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे ।।17।।
सरसिजनिलये सरोज हस्ते
धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे
त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ।।18।।
दिग्घस्तिभिः कनककुंभमुखा व सृष्ट
स्वर्वाहिनी विमलचारू जल प्लुतांगीम।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेष
लोकाधिनाथ गृहिणी ममृताब्धिपुत्रीम् ।।19।।
कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं
करुणापूरतरां गतैरपाड़ंगै:।
अवलोकय माम किंचनानां
प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयाया:।।20।।
स्तुवन्ति ये स्तुतिभिर भूमिरन्वहं
त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो
भवन्ति ते बुधभाविताशया: ।।21।।
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