Bihar Diwas: कानों में शहद सी मिठास घुल जाए, इतनी मीठी हैं बिहार की भाषाएं
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Bihar Diwas: कानों में शहद सी मिठास घुल जाए, इतनी मीठी हैं बिहार की भाषाएं

बिहार एक ऐसा राज्य जहां की भाषाओं के बारे में केवल सुनकर आप पूरे राज्य की भौगोलिक स्थिति का अनुमान लगा सकते हैं. आप भाषाओं को सुनकर लोगों के मन, सोच और स्वभाव का अंदाजा भी लगा सकते हैं. बिहार को क्षेत्रवार समझना है तो उसकी भाषाओं के स्वरूप को समझना होगा.

बिहार भाषायी मैप

पटना: बिहार एक ऐसा राज्य जहां की भाषाओं के बारे में केवल सुनकर आप पूरे राज्य की भौगोलिक स्थिति का अनुमान लगा सकते हैं. आप भाषाओं को सुनकर लोगों के मन, सोच और स्वभाव का अंदाजा भी लगा सकते हैं. बिहार को क्षेत्रवार समझना है तो उसकी भाषाओं के स्वरूप को समझना होगा. सोचिए, जो धरती रामधारी सिंह दिनकर जैसे कवि, भिखारी ठाकुर जैसे लोक कवि और गीतकार के साथ फणीश्वरनाथ रेणु जैसे कलम के धनी पैदा कर दे, उसकी भाषाई विरासत कितनी समृद्ध होगी. 

नागार्जुन की कलम से उपजे ओज, विद्यापति के शब्दों से निकली भगवान की भक्ति, गोपाल सिंह नेपाली के शब्दों में राज्य, नलिन विलोचन शर्मा के शब्दों के रंग, रामवृक्ष बेनीपुरी के शब्दों में यात्रा, शिवपूजन सहाय के शब्दों में रचे रस की यह धरती बिहार की अलग-अलग भाषाओं के समृद्ध विरासत के हीं तो परिचायक हैं. आप बिहार को एक बार भाषा के आधार पर देखेंगे तो आपको पूरा बिहार समझ में आएगा. जहां अंग प्रदेश में अंगिका, मगध में मगही, भोजपुर में भोजपुरी, मिथिलांचल में मैथिली बोली जाती है. अब आप इसकी भाषायी समृद्धि का अनुमान लगाइए. 

अपनी मीठी बोली और भाषा के लिए देश दुनिया में जानेवाला बिहार एक बार इसके बारे में जानिए तो सही. यहां हिंदी और उर्दू दो राजभाषाएं हैं. मैथिलि की मीठास और इसके शब्दों के वजन का अंदाजा लगाना है तो आपको बता दें कि इसे भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में जगह मिली है. यहां की प्रमुख भाषाओं में इसके अलावा बज्जिका भी है. यह वही बिहार है जिसने सबसे पहले हिंदी को एक आधिकारिक भाषा के रूप में मान दिया. आपने बिहार से आए और इनमें से किसी भी भाषा में बात करनेवाले के बारे में एक शब्द सुना होगा. बिहारी, मतलब भाषा ही बिहारी बन गई. 

लोग तो इतना भी मानते हैं कि हिंदी की उत्पत्ति का केंद्र ही बिहार है. मतलब खड़ी भाषा में स्थानीय भाषाओं का मेल आज भी बिहार की हिंदी की पहचान है. शब्द स्थानीय भाषा को भाव हिंदी का. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में बिहारी भाषा और साहित्य का क्या योगदान रहा इसके बारे में एक बार सोचकर देखिए. रामवृक्ष बेनीपुरी, शिवपूजन सहाय, रामधारी सिंह दिनकर, पंडित जगन्नाथ चतुर्वेदी, मुकुट धारी सिंह, जीवानंद शर्मा, मोहनलाल मेहता जैसे लोगों की कलम तब भी अंग्रेजों के खिलाफ इंकलाब लिख रही थी. डॉ राजेंद्र प्रसाद की कलम तब भी अंग्रेजों के खिलाफ अंगार उगलने का काम कर रही थी. लेख, कहानी, स्तंभ, कविता ना जाने क्या-क्या अंग्रेजों की गरजती बंदूकों के सामने लड़ने का हथियार बने थे. राहुल सांकृत्यायन की कहानियां तब से लेकर आज तक भाषा की समृद्धि दिखाने के साथ बिहार का भ्रमण ही तो करा रही हैं.

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