Hazaribagh: 1998 के बाद पहली बार सिन्हा परिवार के फार्म हाउस 'ऋषभ वाटिका' में पसरी है खामोशी
Advertisement
trendingNow0/india/bihar-jharkhand/bihar2169745

Hazaribagh: 1998 के बाद पहली बार सिन्हा परिवार के फार्म हाउस 'ऋषभ वाटिका' में पसरी है खामोशी

Hazaribagh: पिछले 26 सालों में यह पहला आम चुनाव है, जब यहां खामोशी-सी पसरी है. यशवंत सिन्हा के बाद उनके पुत्र जयंत सिन्हा 2014 और 2019 के चुनावी समर में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर हजारीबाग से उतरे और विजयी भी रहे. उनकी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र भी यही फार्म हाउस रहा. 

जयंत सिन्हा

Hazaribagh: 1998 के बाद यह पहली बार है, जब हजारीबाग शहर से करीब सात किमी दूर स्थित 'ऋषभ वाटिका' में इस चुनावी मौसम में पहले जैसी बहार नहीं है. न कार्यकर्ताओं की फौज, न जिंदाबाद के नारे. 'ऋषभ वाटिका' उस फार्म हाउस का नाम है, जहां वित्त मंत्री, विदेश मंत्री सहित कई बड़े ओहदों पर रह चुके पूर्व बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा अपने परिवार के साथ रहते हैं. 1984 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से वॉलेंटरी रिटायरमेंट लेने के बाद बिहार के बक्सर जिले के मूल निवासी यशवंत सिन्हा हजारीबाग शहर में शिफ्ट हुए थे और उनके सियासी सफर की शुरुआत भी यहीं से हुई थी. कुछ सालों के बाद उन्होंने इसी शहर के बाहरी छोर पर स्थित डेमोटांड़-मोरांगी नामक जगह पर कई एकड़ जमीन खरीदकर अपना फार्म हाउस स्थापित किया था, तभी से यह परिसर हजारीबाग जिले में सियासत का एक बड़ा पावर सेंटर बना रहा.

पिछले 26 सालों में यह पहला आम चुनाव है, जब यहां खामोशी-सी पसरी है. यशवंत सिन्हा के बाद उनके पुत्र जयंत सिन्हा 2014 और 2019 के चुनावी समर में बीजेपी प्रत्याशी के तौर पर हजारीबाग से उतरे और विजयी भी रहे. उनकी राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र भी यही फार्म हाउस रहा. बीते 10 वर्षों में पिता यशवंत सिन्हा और पुत्र जयंत सिन्हा के बीच राजनीतिक तौर पर बड़े मतभेद और फासले भी सामने आए, लेकिन यह आवास सियासी गतिविधियों से हमेशा गुलजार रहा.

यशवंत सिन्हा या जयंत सिन्हा जब भी हजारीबाग में होते, कार्यकर्ताओं-समर्थकों का हुजूम उन्हें यहां घेरे रखता. इस बार सिन्हा परिवार हजारीबाग के चुनावी समर से दूर है. कहने को तो कुछ रोज पहले जयंत सिन्हा ने खुद सोशल मीडिया एक्स पर सियासत से अपने संन्यास का ऐलान किया, लेकिन तमाम लोगों का यही कहना है कि बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें पहले ही कह दिया था कि इस बार उनकी उम्मीदवारी रिपीट नहीं की जाएगी.

यह भी पढ़ें:'बेटी से किडनी लिया, फिर पार्टी का टिकट दिया...उसी का नाम है लालू', बीजेपी का तंज

इस तरह करीब ढाई दशकों तक हजारीबाग में पावर सेंटर रहे सिन्हा परिवार का सियासी तौर पर अवसान अब तय हो गया है. बता दें कि सियासत में कदम रखने के बाद यशवंत सिन्हा ने वर्ष 1984 में हजारीबाग लोकसभा सीट से पहला चुनाव जनता पार्टी के टिकट पर लड़ा था, लेकिन तब उन्हें करीब छह हजार वोट ही मिले थे. इसके बाद 1988 में जनता पार्टी की ओर से राज्यसभा पहुंचने के साथ उनका सियासी उत्कर्ष काल शुरू हुआ था.

1989 में जनता दल का गठन हुआ तो उन्हें पार्टी का महासचिव चुना गया था. चंद्रशेखर के प्रधानमंत्रित्व काल में वह पहली बार केंद्र में वित्त मंत्री बने और इसके बाद उनका आभामंडल बड़ा होता चला गया. 1992 में वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और इसके बाद 1998 में पहली बार हजारीबाग सीट से लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 1999, 2004 और 2009 के चुनाव में भी बीजेपी ने उन्हें इस सीट से प्रत्याशी बनाया. हालांकि, 2004 का चुनाव वह हार गए थे, लेकिन पार्टी में उनका कद और पद बना रहा.

यह भी पढ़ें:औरंगाबाद सीट पर लालू ने उतार दिया कैंडिडेट, देखती रह गई कांग्रेस

2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार बनी तो यशवंत सिन्हा को पार्टी ने चुनावी राजनीति से रिटायरमेंट देकर उनके पुत्र को टिकट थमाया था. हालांकि, यशवंत सिन्हा ज्यादा दिनों तक राजनीति से किनारा नहीं रख सके. उन्होंने 2018 में बीजेपी की सदस्यता छोड़ दी और “भारतीय सबलोग पार्टी” नामक एक दल गठित कर देश के कई हिस्सों के दौरे पर निकले. पार्टी की पहचान नहीं बन सकी और बाद में उन्होंने ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ज्वाइन कर ली. 2022 में वह संयुक्त विपक्षी दलों की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने थे. अब वह 86 साल के हो चुके हैं और उनके चुनाव मैदान में उतरने की संभावना नहीं के बराबर है.

इनपुट: आईएएनएस

Trending news