Bihar Political Crisis: अब खबर आ रही है कि विधायकों को तोड़ पाने में असफल राजद की ओर से जेडीयू के सांसदों पर डोरे डाले जा रहे. आज भी अगर बारीक नजरों से देखें तो बिहार की राजनीति के दो ही धड़े हैं. एक पक्ष भाजपा का है तो दूसरा राजद का. नीतीश कुमार ऐसा नंबर लेकर बैठे हैं कि दोनों की मंशा पूरी नहीं होती.
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Bihar Political Crisis: नवंबर-दिसंबर की बात है, जब पटना में आधी रात को जेडीयू के 12 विधायकों की बैठक हुई थी और राजद में जाने या एक अलग गुट बनाने की बात हुई थी. इन 12 विधायकों के संपर्क में राजद के नेता तो संपर्क में थे ही, जेडीयू के भी कुछ नेताओं का शह प्राप्त था. शुक्र मनाइए कि उन 12 विधायकों में से एक ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस बात की सूचना दे दी और सारा भांडा फूट गया. उसके बाद से ही नीतीश कुमार महागठबंधन छोड़ने के बहाने तलाश रहे थे. इंडिया की चौथी बैठक में वो बहाना मिल गया और फिर नीतीश कुमार कोपभवन में चले गए. फिर शुरू हुआ मनाने का सिलसिला, जो आज भी जारी है. अब खबर आ रही है कि विधायकों को तोड़ पाने में असफल राजद की ओर से जेडीयू के सांसदों पर डोरे डाले जा रहे.
पिछले दिनों जीतनराम मांझी ने एक बात कही थी. मांझी का कहना था कि नीतीश कुमार 2013 से पलटी मार रहे हैं. अब वो एक बार मारें या फिर हजार बार.... क्या फर्क पड़ता है. दरअसल, आज की तारीख में नीतीश कुमार एक दांव के पलटू हैं, जो दोनों तरफ से खेलते हैं. कभी राजद की तरफ तो कभी भाजपा की तरफ. उनका समय बलवान है कि दांव के पलटू ही राजा हैं और बाकी दोनों धड़े बारी बारी से मंत्री बनते रहते हैं. आज नहीं तो कल दोनों दल इस दांव के पलटू से मुक्ति चाहते हैं. आज भी अगर बारीक नजरों से देखें तो बिहार की राजनीति के दो ही धड़े हैं. एक पक्ष भाजपा का है तो दूसरा राजद का. नीतीश कुमार ऐसा नंबर लेकर बैठे हैं कि दोनों की मंशा पूरी नहीं होती. जाहिर है जब तक नीतीश कुमार का वो नंबर खत्म नहीं होगा, आमने सामने फाइट नहीं होगी. लगता है बिहार की राजनीति में वो समय आ गया है, जब फाइट आमने सामने की हो.
पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश को ही देख लीजिए. जब तक बसपा मजबूत प्लेयर थी, तब तक वह भाजपा को नाच नचाती रहती थी. भाजपा ने जब उसका बेस खत्म कर दिया, तब से फाइट आमने सामने की हो गई है. बसपा अब बस विपक्षी दलों की वोटकटवा पार्टी बनकर रह गई है. भाजपा और समाजवादी पार्टी का अब प्रदेश में सीधा मुकाबला है. भाजपा नहीं तो सपा और सपा नहीं तो भाजपा.
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आने वाले दिनों में बिहार इसी ओर बढ़ता दिख रहा है. नीतीश कुमार अब अपनी पारी खेल चुके और खेलकर चूक भी गए. भाजपा भी चाहती है कि राजद से उसका सीधा मुकाबला हो और राजद की भी यही मंशा है. अब तक नीतीश कुमार मुकाबले को तिकोना बना देते थे. यहां बात चुनाव की नहीं, बल्कि चुनाव के बाद आए परिणामों के आधार पर की जा रही है. चुनाव तो नीतीश कुमार किसी न किसी के साथ ही लड़ते रहे हैं. 2014 में वे अकेले चुनाव लड़कर औकात समझ गए हैं. नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के सिकुड़ने पर ही भाजपा या फिर राजद एकमुश्त वोट लेकर सत्ताशीन हो सकते हैं. जब तक नीतीश कुमार हैं, तब तक ऐसा होना संभव नहीं है.
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इसलिए भाजपा भी चाहती है कि नीतीश कुमार की पार्टी सिकुड़ जाए और राजद भी यही चाहती है. जब से भाजपा बिहार की सत्ता से बाहर हुई है, तब से या उससे पहले से वो यही चाहती है. राजद तो पहले भी यही चाहता था और आज भी वो यही चाहता है.