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Bihar Politics: 4 बार पहले ही पलटी मार चुके नीतीश कुमार अब पांचवी बार बिहार में सियासी उलटफेर करने की तैयारी कर बैठे हैं. ऐसे में बिहार में भाजपा के साथ सरकार का गठन करने की कवायद तेज कर चुके नीतीश कुमार विभागों के बंटवारे की डील फाइनल होते ही अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं. हालांकि इस बार भाजपा कुछ बेहतर सियासी शर्तों के साथ नीतीश के साथ होने के मुड में है.
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ऐसे में नीतीश का हृदय परिवर्तन एक बार फिर कैसे हुआ यह पर्दे के पीछे का बड़ा सियासी गेम है जिसको भाजपा के 3 और जदयू के चार नेता मिलकर खेल रहे थे. नीतीश भाजपा के साथ आ जाएं इसकी पूरी कहानी अक्टूबर 2023 से ही लिखी जा रही थी. बस पर्दे पर इसके फिल्मांकन की जरूरत थी.
ऐसे में पर्दे पर इस सियासी पटकथा के फिल्मांकन से पहले जदयू ने इस राह में रोड़ा बन रहे राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह को सबसे पहले किनारे किया. भाजपा और जेडीयू का गठबंधन किन शर्तों पर हो और इस पटकथा का फिल्मांकन कैसा हो इसके लिए दोनों ही दलों की तरफ से 7 नेताओं को पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई थी. पटकथा का पूरा प्लॉट कैसा होगा इसके लिए खूब एहतियात बरता गया और मुलाकातों से ज्यादा इस बार फोन पर स्क्रिप्ट को लेकर बात होती रही.
ऐसे में भाजपा की तरफ से केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय, सुशील मोदी और विनोद तावड़े मैदान में थे. वहीं दूसरी तरफ जदयू की तरफ से केसी त्यागी, विजय चौधरी, हरिवंश और संजय कुमार झा मैदान में थे. भाजपा की तरफ से इस पूरे मामले को नित्यानंद राय लीड कर रहे थे जो अमित शाह के बेहद विश्वासी माने जाते हैं. वह इस पटकथा में लगातार NDA के नेताओं से मिलते रहे. वहीं सुशील मोदी के साथ नीतीश का संबध किसी से छुपा नहीं है. सुशील मोदी कई बार इशारों में समझा गए थे कि नीतीश को भाजपा के साथ आना ही होगा. विनोद तावड़े बिहार भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और बिहार प्रभारी हैं. ऐसे में भाजपा के नेताओं की बैठक की जिम्मेदारी तावड़े के पास रही. वह नरेंद्र मोदी के बेहद करीबी माने जाते हैं.
वहीं संजय झा जेडीयू की तरफ से इस मामले में ताबड़तोड़ बैटिंग कर रहे थे. नीतीश की पार्टी में उनके बाद संजय झा अकेले नेता हैं जो सरकार और संगठन दोनों में सहयोग करते हैं. 2017 में भी भाजपा के समीप नीतीश को लाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी. वह राजनीति में भाजपा से ही आए थे. वहीं राज्यसभा के इपसभापति हरिवंश की भाजपा से नजदीकी तो जगजाहिर है. ऐसे में इस पटकथा को फाइनल कराने में हरिवंश की भूमिका अहम रही. वहीं केसी त्यागी और विजय चौधरी इस पूरी कहानी के सभी किरदारों के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश करते रहे और इसमें वह सफल भी रहे.