बिहार: 46 साल पुराना था लालू यादव-रघुवंश प्रसाद का याराना, ऐसे हुई थी दोनों की दोस्ती
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बिहार: 46 साल पुराना था लालू यादव-रघुवंश प्रसाद का याराना, ऐसे हुई थी दोनों की दोस्ती

रघुवंश प्रसाद सिंह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि पद और लाभ का त्याग छोड़कर रघुवंश अपनी प्रतिबद्धता पार्टी और लालू के प्रति हमेशा बनाई रखी, लेकिन इसके बदले में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला.

46 साल पुराना था लालू यादव और रघुवंश प्रसाद का याराना. (फाइल फोटो)

पटना: केंद्र से लेकर बिहार की राजनीति में मौंजू रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह (Raghuvansh Prasad Singh) अब नहीं रहे. रविवार को दिल्ली के एम्स (AIMS) में उन्होंने अंतिम सांस ली और इसी के साथ सियासत का एक और मझे हुए खिलाड़ी सबको अलविदा कहकर एक नई यात्रा पर निकल गए.

ट्वीट में छलका दर्द
वैसे तो भारतीय राजनीति में कई किस्से और कहानी हैं, जिसका जिक्र मौके दर मौके पर होता रहता है. राजनीति में कई नेताओं की दोस्ती के किस्से भी खूब चर्चित भी रहे हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है रघुवंश प्रसाद सिंह और लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) की दोस्ती की, जिसकी चर्चा आज भी हर जगह होती है. वैसे रघुवंश प्रसाद सिंह का जाना आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की निजी क्षति है और इसकी झलक उनके ट्वीट में भी दिखी.

'प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया?'
लालू यादव ने रघुवंश बाबू के निधन की खबर सुनकर ट्वीट कर लिखा, 'प्रिय रघुवंश बाबू! ये आपने क्या किया? मैनें परसों ही आपसे कहा था आप कहीं नहीं जा रहे है. लेकिन आप इतनी दूर चले गए. नि:शब्द हूं, दुःखी हूं, बहुत याद आएंगे.' इससे पहले लालू यादव ने 10 सितंबर को भी रघुवंश प्रसाद के इस्तीफे के बाद पत्र में लिखा था, 'लालू यादव ने लिखा, 'आपके द्वारा कथित तौर पर लिखी एक चिट्ठी मीडिया में चलाई जा रही है. मुझे तो विश्वास ही नहीं होता. अभी मेरे, मेरे परिवार और मेरे साथ मिलकर सिंचित राजद परिवार आपको शीघ्र स्वस्थ होकर अपने बीच देखना चाहता है.'

'आप कहीं नहीं जा रहे हैं. समझ लीजिए'
पत्र में लालू ने आगे लिखा, 'चार दशकों में हमने हर राजनीतिक, सामाजिक और यहां तक कि पारिवारिक मामलों में मिल-बैठकर ही विचार किया है. आप जल्द स्वस्थ हो जाएं, फिर बैठकर बात करेंगे. आप कहीं नहीं जा रहे हैं. समझ लीजिए.'  

पारिवारिक संबंध
दरअसल, लालू यादव और रघुवंश प्रसाद की रिश्ता राजनीतिक के साथ पारिवारिक भी था. लालू हर मौके पर रघुवंश प्रसाद सिंह से राय लिया करते हैं. रघुवंश प्रसाद के करीबी बताते हैं कि बिना रघुवंश बाबू के हामी के भरे लालू यादव कोई भी काम नहीं करते थे. फिर चाहे वह सियासत से जुड़ा हो या फिर पारिवार से संबंधित.

जेल में हुई थी दोनों की मुलाकात
जानकारी के अनुसार, लालू यादव और रघुवंश प्रसाद की दोस्ती करीब 46 से पहले जय प्रकाश नारायण (Jai Prakash Narayan) के 'संपूर्ण क्रांति' आंदोलन के दौरान बांकीपुर जेल में हुई थी. उस दौरान लालू यादव और रघुवंश प्रसाद सिंह एक ही जेल में थे. उस वक्त लालू पटना विश्वविद्यालय (Patna University) में छात्र नेता थे और रघुवंश प्रसाद जेपी आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता. इसी दौरान दोनों की दोस्ती का किस्सा शुरू हुई जो अंतिम समय तक जारी रहा.

'लालू के खास रहे रघुवंश बाबू'
इसके बाद रघुवंश प्रसाद सिंह विधानसभा से लेकर केंद्र में मंत्री रहे लेकिन लालू यादव का साथ कभी नहीं छोड़ा. बिहार में जब भी लालू यादव की सरकार आई उसमें रघुवंश प्रसाद सिंह का भूमिका अहम रही. कहा जाता है कि जगदानंद सिंह और रघुवंश प्रसाद सिंह लालू यादव के साथ तब से हैं, जब आरजेडी की स्थापना भी नहीं हुई थी और शायद यही कारण है कि इसी वजह से दोनों लालू यादव के सबसे हमेशा खास रहे.

लालू को नहीं हुआ यकीन
रघुवंश प्रसाद सिंह कभी नाराज भी हुए तो लालू यादव उन्हें हमेशा मनाने पहुंच गए. कभी दोनों के बीच गिला-शिकवा नहीं दिखा. यहां तक जब 10 सितंबर को रघुवंश प्रसाद ने पार्टी से इस्तीफा दिया तो भी लालू यादव ने उसे स्वीकार नहीं किया.

लालू के प्रति दिखाई वफादारी
राजनीति के जानकार बताते हैं कि लालू के प्रति रघुवंश प्रसाद की वफादारी का अंदाज इस बात से भी लगााया जा सकता है कि 2009 में आरजेडी के 4 सांसद लोकसभा पहुंचे थे. इस दौरान रघुवंश प्रसाद सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह (Manmohan Singh) के द्वारा संदेश भेजवाया कि वह उन्हें लोकसभा अध्यक्ष बनाना चाहती हैं. लेकिन रघुवंश प्रसाद ने मना कर दिया.

सोनिया रघुवंश के काम से थी प्रभावित
दरअसल, सोनिया गांधी रघुवंश प्रसाद के यूपीए-1 में केंद्रीय मंत्री रहते हुए काम से बहुत प्रभावित थी. उस वक्त मनरेगा (MNREGA) और गांवों में सड़कों के जाल बिछाने का जो काम रघुवंश प्रसाद सिंह ने किया था, उसकी तारीफ बहुत हुई थी. लेकिन रघुवंश प्रसाद अपने सिद्धातों और विचारों से पीछे नहीं हटे. लालू के साथ जो उनका आत्मीय प्रेम था, उसको उन्होंने हमेशा निभाया.

लालू के साए की तरह रहे रघुवंश प्रसाद
यहां तक जब चारा घोटाले में लालू यादव जेल गए तब भी रघुवंश बाबू मीडिया में बचाव से लेकर पटना से रांची तक संघर्ष किया. वह बाराबर लालू से मिलने जाते रहे और उनके साथ साए की तरह खड़े रहे. लालू ने भी टिकट से लेकर मंत्री बनाने तक हर फैसले में रघुवंश बाबू की राय ली. लेकिन अंतिम के कुछ वर्षों में रघुवंश प्रसाद के अंदर कुछ कसक दिखने लगी.

2015 से शुरू हुई मन में कसक
2014 लोकसभा चुनाव में रघुवंश प्रसाद की वैशाली से हार का शुरू हुआ सिलसिला रामा सिंह के आरजेडी ज्वाइन करने तक जारी रहा. कई मौकों पर पार्टी ने उनके विपरीत फैसले किए. कहा जाता है कि 2015 में बिहार में सरकार बनने के बाद मंत्रीमंडल गठन के दौरान लालू ने रघुवंश प्रसाद से पूछा तक नहीं और इसका जिक्र अपने करीबियों से वह हमेशा करते रहे. इसके बाद राज्यसभा चुनाव, जगदानंद सिंह का प्रदेश अध्यक्ष बनाना, सवर्ण आराक्षण का मुद्दा, आरजेडी में बाहुबली प्रवृति के लोगों की एंट्री, तेज प्रताप यादव द्वारा दिए गए बयान ने रघुवंश प्रसाद को तोड़ दिया. 

38 शब्दों में बयां किया दर्द
आखिरकार जब रघुवंश प्रसाद सिंह ने सहा नहीं गया, तो उन्होंने अपनी चुप्पी 10 सितंबर को एम्स में इलाज के दौरान बेड से 38 शब्दों में तोड़ दी और कहा, 'कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीठ पीछे खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं. पार्टी, नेता, कार्यकर्ता और आमजन ने बड़ा स्नेह दिया, क्षमा करें.' 

पद और लाभ का किया त्याग
वहीं, रघुवंश प्रसाद सिंह को करीब से जानने वाले बताते हैं कि पद और लाभ का त्याग छोड़कर रघुवंश अपनी प्रतिबद्धता पार्टी और लालू के प्रति हमेशा बनाई रखी, लेकिन इसके बदले में उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे.

समाजवाद का जीता-जागता उदाहरण थे रघुवंश प्रसाद
74 वर्षीय रघुवंश बाबू समाजवाद का एक जीता-जागता उदाहरण थे. अपने 4 दशक से भी अधिक लंबे राजनीतिक जीवन में रघुवंश प्रसाद सिंह ने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. जहां रहे पूरे मन से रहे और जो मन में आया उसको तुरंत बोल दिया. विधायक से लेकर केंद्र में मंत्री बनने तक का सफर तय करने वाले रघुवंश प्रसाद सिंह को कभी किसी चीज का घमंड नहीं रहा.

बेदाग छवि के समाजवादी नेता
साधारण रहन-सहन, सीधी बोली और ज्यादा लाग लपेट न करना यह रघुवंश प्रसाद की पहचान रही. अपने चार दशक से भी के अधिक के राजनीतिक जीवन में कभी उनके ऊपर कोई दाग नहीं लगा. बेदाग छवि और जनता के बीच रहने वाले समाजवादी नेता रघुवंश प्रसाद की राजनीति में अपनी अलग पहचान थी और शायद यही कारण रहे कि उनका सभी दलों में सम्मान रहा. खैर, अब रघुवंश प्रसाद सिंह एक नई यात्रा पर निकल चुके हैं और देश में शोक की लहर. लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह जिस चीज के लिए जाने जाते हैं, वही उन्होंने हमेशा किया.