जामताड़ा में धूमधाम से मनाया गया करमा पर्व, बहनों ने की भाइयों की दीर्घायु की कामना
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जामताड़ा में धूमधाम से मनाया गया करमा पर्व, बहनों ने की भाइयों की दीर्घायु की कामना

जामताड़ा में करमा पूजा बहुत धूमधाम से मनाई गई. करमा पूजा का झारखंड में बहुत महत्व है. इस पूजा को शांति और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है. यह त्योहार झारखंड की संस्कृति के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. 

(फाइल फोटो)

Jamtara: झारखंड के जामताड़ा में करमा पूजा बहुत धूमधाम से मनाई गई. करमा पूजा का झारखंड में बहुत महत्व है. इस पूजा को शांति और खुशहाली का प्रतीक माना जाता है. यह त्योहार झारखंड की संस्कृति के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. इसमें बांस की डाली की पूजी की जाती है. यह त्यौहार भाई बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक माना जाता है. इस त्योहार को लेकर गांव में सुबह से ही चहल पहल देखने को मिली थी. करमा पर्व को लेकर गांव की युवतियों में उत्साह देखने को मिला. 

लोकगीत गाकर पूजा अर्चना की
दरअसल, जामताड़ा के नारायणपुर प्रखण्ड क्षेत्र में प्रकृति पर्व करमा पूजा धूमधाम से मनाई गई. भाई बहन के अटूट प्रेम के त्यौहार करमा को लेकर गांवों में सुबह से ही चहल पहल देखने को मिली. पर्व को लेकर गांव की युवतियों में उत्साह दिखा. करमा पूजा झारखंड के प्रमुख त्योहारों में से एक है. यह त्यौहार भादों महीने के एकादशी तिथि को मनाया जाता है.  इस त्यौहार को धूमधाम एक सप्ताह तक तक रहती है. त्यौहार के पहले दिन बहनें नदी से डलिया भरकर बालू घर लाती है. उसके बाद उसमें गेहूं,धान, ज्यो, कुरथी,मकई,मूंग, घांघरा, चना, उड़द आदि के बीज को बोती है. उसके बाद अगले सात दिनों तक सुबह शाम पारंपरिक करमा लोकगीत गाकर पूजा अर्चना की जाती है.

आदिवासियों ने उत्साह के साथ मनाया पर्व
सातवें दिन बहनें करमा डाली को विभिन्न फूलों से सजाकर उसके आसपास करम के डालों को लगाकर पूजा अर्चना करती है. मंगलवार को प्रखण्ड मुख्यालय के अलावा पहाड़पुर, रघुनाथपुर, दलदला, लोहारंगी, बांसपहाड़ी, मंडरो समेत क्षेत्र के अन्य स्थानों में करमा पूजा को लेकर उत्सवी माहौल था. गांव की युवतियां टोली बनाकर पारंपरिक लोक नृत्य कर रही थी. कहीं सड़कों पर कर्म डाली रखकर नृत्य करते हुए नजर आई तो कहीं घर के अपने टोले के आसपास. वहीं रात को युवतियों ने पारंपरिक तरीके से करम डाली की पूजा करके अपने भाइयों के लिए मंगल कामना की. यह पर्व प्रकृति से जुड़ा होने के कारण आदिवासी समुदाय के लोग इसे उत्साह के साथ मनाते हैं. इस पर्व से वृक्षों को संरक्षण देने की प्रेरणा भी मिलती है.

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