माता के 52 शक्तिपीठों में से एक मां चंडिका स्थान मुंगेर मुख्यालय के गंगा नदी के किनारे स्थित है. यह मंदिर बहुत शक्तिशाली और चमत्कारी माना जाता है. यहां पर माता सती का बायां नेत्र गिरा था.
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Munger: इस बार 26 सितंबर से नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. पूरे देश में धूम धाम से नवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है. वहीं, माता के 52 शक्तिपीठों में से एक मां चंडिका स्थान मुंगेर मुख्यालय के गंगा नदी के किनारे स्थित है. यह मंदिर बहुत शक्तिशाली और चमत्कारी माना जाता है. यहां पर माता सती का बायां नेत्र गिरा था. पिछले दो सालों से कोरोना महामारी के चलते यह मंदिर बंद था. वहीं, इस नवरात्रि पूरे दो सालों बाद इस मंदिर के दरवाजे खुल रहे हैं.
जैसा कि मंदिर के दरवाजे पूरे दो साल बाद खुल रहे हैं. जिसको लेकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि श्रृद्धालुओं का मेला लग सकता है. सभी भक्त माता के दर्शन को लेकर दो सालों से इंतजार कर रहे हैं. वहीं, इस मंदिर को लेकर प्रशासन ने भी तैयारियां शुरू कर दी हैं. फिलहाल मंदिर को रंगने का काम चल रहा है. इस बार भक्त पूरे मन और श्रद्धा से पूजा कर सकेंगे.
दानवीर कर्ण से जुड़ी कथा
वहीं, पौराणिक कथाओं के अनुसार माता चंडिका के सबसे बड़े भक्त महाभारत काल के योद्धा दानवीर कर्ण थे. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि कथाओं के अनुसार दानवीर कर्ण हर रोज इस मंदिर में पूजा आराधना के लिए आते थे. उन्होंने बताया कि यहां पर कढ़ाई नुमा आकार है, जिसमें घी खौलता था. जिसके बाद कर्ण अपनी पूजा पाठ से माता को खुश करने के लिए उस कढ़ाई में अपनी आहुति देते थे. जिसके बाद माता सती कर्ण से खुश होकर उन्हें जीवित करती थी उन्हें हर रोज वरदान के रूप में 50 किलो सोना देती थी. जिसके बाद कर्ण उसे गरीबों को दान कर देते थे.
क्या है चंडिका मंदिर का इतिहास
चंडिका मंदिर के पुराने पुजारी का कहना है कि माता चंडिका के चमत्कार की बहुत सी कहानियां है. यहां पर नेत्र रोगी आते हैं, जिनको डॉक्टरों ने जवाब दे दिया होता है. जिनका लेंस सुख चुका होता है, या फिर किसी भी प्रकार का कोई उपाय नहीं होता है. ऐसे भक्त माता के दरबार में आकर मां को प्रणाम करके फूल चढ़ाते हैं. इसके अलावा नेत्र रोगियों को काजल लगाया जाता है. बताते हैं कि गाय के घी और कपूर से आरती की जाती है और उसी का काजल बनाया जाता है. इस काजल को सुबह और शाम को लगाने से माता के आशीर्वाद से रोगी के नेत्र 45 दिनों में ठीक हो जाते हैं. वहीं भक्त की आंखों की रोशनी आने के बाद माता को खुश होकर सोना चांदी, पाठा की बलि या फिर अपनी इच्छा अनुसार चढ़ावा चढ़ाते हैं.