Bihar News: रितेश कृषि विश्वविद्यालय सबौर से एग्रीकल्चर से इंटरमीडिएट किया लेकिन उसके बाद आर्ट्स से ग्रेजुएशन कर रहे है. वह बताते है कि गन्ना रस निकालने वाले दुकानदार व अन्य जगहों से वह खोई को जमा करके घर ले आते हैं फिर मशीनों की मदद से उसे डेली यूज़ प्रोडक्ट में तब्दील कर देते हैं.
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भागलपुर: भागलपुर के युवा अपने नवाचार से हर क्षेत्र में परचम लहरा रहे हैं. साथ ही आत्मनिर्भर भारत को परिभाषित करते हुए लोकल फॉर वोकल की तरफ बढ़ रहे हैं. ऐसे ही है नवगछिया के युवक जो गन्ने के वेस्ट मेटेरियल से कप, प्लेट समेत कई सामग्रियां तैयार कर रहे है. दरअसल हम नवगछिया के रहने वाले रितेश की बात कर रहे हैं. रितेश ने गन्ने के खोई को बर्बाद होते हुए या खेतों में जलते हुए देखा तब उसने यूट्यूब पर वीडियो देखा जिसके बाद उसने कप प्लेट बनाने का सोचा उसने मशीन मंगवाया और मां के सहारे कप प्लेट बनाकर बाजार में बेचना शुरू कर दिया.
रितेश कृषि विश्वविद्यालय सबौर से एग्रीकल्चर से इंटरमीडिएट किया लेकिन उसके बाद आर्ट्स से ग्रेजुएशन कर रहे है. वह बताते है कि गन्ना रस निकालने वाले दुकानदार व अन्य जगहों से वह खोई को जमा करके घर ले आते हैं फिर मशीनों की मदद से उसे डेली यूज़ प्रोडक्ट में तब्दील कर देते हैं. खोई से बना प्रोडक्ट अब बिहार के कई जिले समेत दूसरे राज्य मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश और उड़ीसा भी भेजा जा रहा है.
बाजारों में सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाते ही नई व्यवस्था ढलने लगी है फिलहाल डिस्पोजेबल उत्पाद जैसे थाली, प्लेट, कटोरा आदि बाजार में पहुंच रहा है लेकिन रितेश द्वाराम बनाए गए गन्ने की खोई से बने उत्पाद दिखने में बेहद खूबसूरत और टिकाऊ भी है. जिस वजह से ग्राहक से ज्यादा पसंद करने लगे. यह उत्पाद सिंगल यूज प्लास्टिक की जगह अच्छा विकल्प साबित हो रहा.
रितेश बताते है कि एग्रीकल्चर में ही अपना भविष्य देखते हैं लेकिन उनका कहना है कि पारिवारिक दिक्कतों के कारण स्नातक में आर्ट्स विषय को चुनना पड़ा लेकिन कृषि के क्षेत्र में नई क्रांति लाने का जज्बा हमेशा से था. इस वजह से यूट्यूब की मदद से वीडियो देखकर इस उद्योग को शुरू करने की इच्छा हुई और अब तो मुझे यह सामान बनाते 3 महीने हो चुके हैं, और बाजार में प्रोडक्ट्स को अच्छा रिस्पांस मिल रहा है. शुगर पेशेंट गन्ने की खोई से बने कप को ज्यादा पसंद कर रहे हैं.
इनपुट- जी बिहार झारखंड ब्यूरो
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