75 बरस बाद अपने सिख भाइयों से मिली मुमताज़, 73 साल तक हकीकत से थी अनजान
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75 बरस बाद अपने सिख भाइयों से मिली मुमताज़, 73 साल तक हकीकत से थी अनजान

ऐसी कई खबरें आपने पहले भी पढ़ी होंगी लेकिन हाल ही में एक खबर आई है कि हिंदुस्तना के बंटवारे के दौरान बिछड़ने वाली मुमतान बीबी 75 साल बाद अपने भाइयों से मिली हैं.  पाकिस्तानी अखबर डॉन के मुताबिक दंगों के दौरान हुए हंगामे की वजह से अपने परिवार से पिछड़ जाने वाली महिला मुमताज़ करतारपुर में अपने सिख भाइयों मिल गई हैं.

फाइल फोटो

Kartarpur Sahib: हिंदुस्तान जब दो हिस्सों में बंटा था तो ना सिर्फ सरहदें अलग-अलग हुईं थी बल्कि लोगों के सीनों में मौजूद दिल भी चिर गए थे. लाखों लोग ऐसे थे जो इस बंटवारे में अपनों से ही बिछड़ गए थे. हालांकि अब एक लंबा अरसा हो चुका है, बिछड़ने वाले लोग अपनी-अपनी जिंदगी में मसरूफ हो चुके हैं लेकिन कभी भी अपनों का वो दर्द टीस बनकर चुभने लगता है जो उनसे अलग हो गए. 

हालांकि कुछ लोग अब भी अपनी जड़ों को शिद्दत से याद करते हैं और वो अपनों से मिलने के लिए हर मुमकिन कोशिश करते रहते हैं. ऐसी कई खबरें आपने पहले भी पढ़ी होंगी लेकिन हाल ही में एक खबर आई है कि हिंदुस्तना के बंटवारे के दौरान बिछड़ने वाली मुमतान बीबी 75 साल बाद अपने भाइयों से मिली हैं. 

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पाकिस्तानी अखबर डॉन के मुताबिक दंगों के दौरान हुए हंगामे की वजह से अपने परिवार से पिछड़ जाने वाली महिला मुमताज़ करतारपुर में अपने सिख भाइयों मिल गई हैं. डॉन के मुताबिक,"बंटवारे के समय मुमताज़ बीबी एक दूध पीती बच्ची थीं जो अपनी मां की लाश पर पड़ी हुई थीं. उनकी मां दंगों का शिकार हो गई थीं, उन्हें लोगों ने कत्ल कर दिया था."

जिसके बाद उन्हें इकबाल और उनकी पत्नी अल्लाह रखी ने गोद लिया और उन्हें बेटी की तरह उसकी परवरिश की. उन्होंने ने ही मुमताज़ नाम भी रखा था. इकबाल और उनकी पत्नी ने मुमताज़ को बिल्कुल भी ये एहसास नहीं होने दिया कि मुमताज़ उनकी बेटी नहीं है लेकिन जब 2 बरस पहले इकबाल की ज्यादा तबीयत खरीब हुई तो उन्होंने मुमतोज़ को बताया कि वो उनकी सगी बेटी नहीं है, वो हकीकत में एक सिख परिवार से है. 

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इकबाल का इंतेकाल हो गया. जिसके बाद मुमताज़ और उनके बेटे ने सोशल मीडिया पर उनके खानदान की तलाश शुरू कर दी. उन्हें मालूम हुआ कि मुमताज़ के हकीकी पिता का गांव भारतीय पंजाब के जिला पटियाला में है. सोशल मीडिया के ज़रिए राब्ता होने के बाद मुमताज़ के बाई सरदार गुरमीत सिंह, सरदार नरेंद्रा सिंह और सरदार अमरेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ गुरुद्वारा साहब पहुंचे और मुमताज़ से मुलाकात की. 

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