मुझे मुस्कुरा मुस्कुरा कर न देखो, मिरे साथ तुम भी हो रुस्वाइयों में

चाहता हूँ फूँक दूँ इस शहर को, शहर में इन का भी घर है क्या करूँ

सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है, हँसता चेहरा एक बहाना लगता है

मत देख कि फिरता हूँ तिरे हिज्र में ज़िंदा, ये पूछ कि जीने में मज़ा है कि नहीं है

थोड़ा सा अक्स चाँद के पैकर में डाल दे, तू आ के जान रात के मंज़र में डाल दे

उन से मिल कर और भी कुछ बढ़ गईं, उलझनें फ़िक्रें क़यास-आराइयाँ

ये दाढ़ियाँ ये तिलक धारियाँ नहीं चलतीं, हमारे अहद में मक्कारियाँ नहीं चलतीं

कुछ मोहब्बत को न था चैन से रखना मंज़ूर, और कुछ उन की इनायात ने जीने न दिया

मेरे दिल ने देखा है यूँ भी उन को उलझन में, बार बार कमरे में बार बार आँगन में

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