...ऐ मौत तूने मुझको ज़मीदार कर दिया.. पढ़िए राहत इंदौरी के 20 बेहतरीन शेर
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...ऐ मौत तूने मुझको ज़मीदार कर दिया.. पढ़िए राहत इंदौरी के 20 बेहतरीन शेर

राहत इंदौरी की मौत अदबी दुनिया के कभी न भरने वाला ज़ख्म साबित होगा. राहत इंदौरी अपने बेबाक अदांज़ और बेहतरीन शायरी के लिए जाने जाते रहे हैं. 

फाइल फोटो.

नई दिल्ली: मशहूर शायर राहत इंदौरी का आज दिल का दौरा पड़ने से इंतेकाल हो गया है. मंगल की सुबह उन्होंने ट्वीट करके जानकारी दी थी कि उनकी रिपोर्ट कोरना पॉज़िटिव आई है. राहत इंदौरी अपने बेबाक अदांज़ और बेहतरीन शायरी के लिए पूरी दुनिया जाने जाते रहे हैं. वो हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी अदबी दुनिया के लिए एक मिसाल रहे हैं. राहत इंदौरी की मौत अदबी दुनिया के लिए कभी न भरने वाला ज़ख्म साबित होगा. तो आइए उनके यौमे विलादत पर उनके कुछ मशहूर शेरों पर नज़र डालते हैं. 

दो गज़ सही मगर यह मेरी मिल्कियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया

बुलाती है मगर जाने का नहीं
ये दुनिया है इधर जाने का नहीं

हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे 
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते 

मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का 
इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे

शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम 
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे 

आँख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो 
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो 

बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर 
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ 

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है 
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है 

वो चाहता था कि कासा ख़रीद ले मेरा 
मैं उस के ताज की क़ीमत लगा के लौट आया 

मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया 
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए 

लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है

सभी का खून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है.

मैं जानता हूँ कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है

मैं आ कर दुश्मनों में बस गया हूँ 
यहाँ हमदर्द हैं दो-चार मेरे 

ख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल कर 
जो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे 

हम अपनी जान के दुश्मन को अपनी जान कहते हैं 
मोहब्बत की इसी मिट्टी को हिंदुस्तान कहते हैं 

इक मुलाक़ात का जादू कि उतरता ही नहीं 
तिरी ख़ुशबू मिरी चादर से नहीं जाती है 

कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे 
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे  

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के सँभलते क्यूँ हैं 
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं 

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