ग़फ़लत क्यों बन जाती है इंसान की बर्बादी की वजह?; जानिए क्या कहता है Quran
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ग़फ़लत क्यों बन जाती है इंसान की बर्बादी की वजह?; जानिए क्या कहता है Quran

गफ़लत किसी भी तरह की हो सकती है. अपने फ़र्ज से ग़फ़लत, अपनी इबादत से गफ़लत, अपने ईमान से गफ़लत, अपनी ज़िम्मेदारियों से गफ़लत, अपने वालेदैन से गफ़लत, अपने कुनबे गफ़लत, अपने रिश्तेदारों 

ग़फ़लत क्यों बन जाती है इंसान की बर्बादी की वजह?; जानिए क्या कहता है Quran

नई दिल्ली: ग़फ़लत क़ल्बे इंसानी के लिए सख़्त नुक़सानदेह है. क़ुरान मजीद में अल्लाह तअला सूरए अल आराफ़ की आयत नम्बर 205 में फ़रमाते हैं कि, और अपने रब को जी ही जी में सुबहो शाम याद करो आजिज़ी और पस्त आवाज़ के साथ और ग़ाफ़िलों में से न बनो. आइये आज इस आयत की रौशनी में समझते हैं कि ग़फ़लत क्या है?

गफ़लत किसी भी तरह की हो सकती है. अपने फ़र्ज से ग़फ़लत, अपनी इबादत से गफ़लत, अपने ईमान से गफ़लत, अपनी ज़िम्मेदारियों से गफ़लत, अपने वालेदैन से गफ़लत, अपने कुनबे गफ़लत, अपने रिश्तेदारों और क़राबतदारों से गफ़लत. यानी इनसे ग़ाफ़िल रहना, मतलब अनजान या बेज़ार रहना. गफ़लत दरअसल दिलों के मर जाने का नाम है. दिलों के सूख जाने का नाम है. दिलों के सख़्त हो जाने का नाम है. समाज में क्या हो रहा है. ख़ानदान में क्या हो रहा है उससे पूरी तरह अनजान बने रहना ही तो गफ़लत है.

ये गफ़लत दिलों में वीरानी पैदा करती है, रिश्तों में दूरिया पैदा करती है, ज़िदंगी में बर्बादियों का आग़ाज़ करती है. जब कोई शख़्स रब की बंदगी अपनी ज़िम्मेदारियों और अपने फ़राएज़ को अदा करने में मसरुफ़ रहता है तो अल्लाह भी उससे ग़ाफ़िल नहीं रहता उस पर अपनी रहतमों की बारिश करता है. मिसाल के तौर पर आपके वालेदैन बुज़ुर्ग हैं और उनकी ख़िदमत आपका फ़र्ज़ है और आप अपने फ़र्ज़ से ग़ाफ़िल नहीं हैं तो आप इबादत में मसरुफ़ हैं और अगर आप ग़ाफ़िल हैं तो आप अपनी इबादत से ही दूर हैं.

ग़फ़लत ये भी है कि आप अपने बच्चे से बेपनाह प्यार करते हैं. उसकी हर ख़्वाहिश पूरी करते हैं लेकिन उसे तालीम से दूर रखते हैं उसे प्यार में ख़राब कर रहे हैं तो ये समझ लीजिए कि आप उसकी ज़िदंगी के एक अहम गोशे से ग़ाफ़िल हैं और अपनी ज़िम्मेदारी अदा नहीं कर रहे हैं.  ग़फ़लत अपनी तरक़्क़ी के पीछे भागने और अपने फ़राएज़ को छोड़ जाने का नाम है. इस फ़ानी दुनिया में ये ज़िदंगी बड़ी अनमोल है. इस ज़िदंगी में अपने समाज के लिए कुछ कर गुज़रने का अज़्म ही ग़फ़लत को शिकस्त दे सकता है.

ग़फ़लत ये है कि कोई शख़्स नेक कामों से दूर होता जाए और बड़े से बड़े गुनाह को कम समझने लगे. हालांकि एक नेक और शरीफ़ आदमी अपनी ग़लतियों और गुनाहों को पहाड़ की तरह देखता है और वो डरता है कि कहीं ये पहाड़ उसके ऊपर न गिर पड़े और ग़ाफ़िल शख़्स अपने गुनाहों को किसी काली रात में काली वादियों के बीच काले पत्थर पर चल रही चींटी के मानिंद समझता है जिसे वो देखने की जहमत नहीं उठाता. ग़ाफ़िल शख़्स नाफ़रमानियों से मुहब्बत करने लगता है और पशेमानियों को वो पास भी फटकने नहीं देता.

सरकारे मदीना का इरशादे आली है कि मेरी सारी उम्मत को माफ़ी मिल जाएगी सिवाए उनके जो एलानिया गुनाह करते हैं. सरकारे मदीने आगे फ़रमाते हैं कि दो नेमतें ऐसी हैं कि अक्सर लोग उनकी क़द्र नहीं करते एक सेहत और दूसरी फ़राग़त. लिहाज़ा गुनाहों से दूर रहने. फ़र्ज़ को अदा करने वाला हरगिज़ ग़ाफ़िल नहीं हो सकता. 

सूरए अल मुतफ़फ़्फ़ीन की आयत नम्बर 14 में एलान हुआ कि उनके बुरे कामों की वजह से उनके दिलों पर ज़ंग चढ़ गया है. मुफ़स्सरीन-ए-क़ुरान हज़रत इब्ने अब्बास फ़रमाते हैं कि बंदा जब कोई गुनाह करता है तो एक काला नुकता उसके दिल पर चढ़ जाता है. अगर तौबा कर लिया तो वो नुकता मिट जाता है और दिल फिर रौशन हो जाता है, और अगर वह अपने गुनाहों से ग़ाफ़िल रहता है गुनाह पर गुनाह करता है तो वो स्याह नुकता इतना बढ़ जाता है कि सारा दिल ही काला हो जाता है.

अपने दिलों को काला होने से बचाएं, क्योंकि ज़िंदगी में अगर सही और ग़लत का इम्तियाज़ ख़त्म हो जाएगा तो आदमी इंसान न हो कर जानवर की ज़िदंगी जीने लगेगा जो कि बेमक़सद ज़िदंगी होती है. हमें अपनी ज़िदंगी का फ़ैसला ख़ुद करना है. हमें अपनी ज़िम्मेदारियों से वाकिफ़ होना है. हमें अपने फ़राएज़ को अदा करना है. यही क़ुरान का पैग़ाम है. ही इस्लाम का पैग़ाम है. यही पैम्बरे आज़म का पैग़ाम है. यही अइम्मा का पैग़ाम है. यही बुज़ुर्गाने दीन का पैग़ाम है. हमें इसपर अमल करना है. इसके लिए हमें अपनी सोहबत को साफ़ करना होगा. हमें ये देखना होगा कि हम किसके इर्द गिर्द रहते हैं उठते बैठते हैं. उनकी महफ़िलों और नश्स्तों के आदाब क्या हैं.

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