Manu Bhandari Birth Anniversary: औरतों के दुख दर्द को जुबान देने वाली एक लेखिका
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Manu Bhandari Birth Anniversary: औरतों के दुख दर्द को जुबान देने वाली एक लेखिका

Birth anniversary or Manu Bhandari: मनु भंडारी ने अपने यथार्थवादी लेखन में महिला पात्रों को हमेशा केंद्र में रख, उनका चित्रण स्वतंत्र और सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने वाले रुप में किया.

फाइल फोटो

Birth anniversary or Manu Bhandari: नई कहानी आंदोलन की आधार स्तंभों में से एक मन्नू भंडारी इस पीढ़ी की अंतिम कड़ी थीं. राजेंद्र यादव , मोहन राकेश और कमलेश्वर त्रयी के अलावा निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी, मनोहर श्याम जोशी, नामवर सिंह नई कहानी आंदोलन के प्रमुख हस्ताक्षर थे. इन्होंने हिंदी साहित्य को एक प्रचलित परिपाटी से मुक्त कर एक नए युग में प्रवेश कराया. अपने संवेदनशील और विषय केंद्रित लेखन से मन्नू भंडारी ने सामाजिक परिस्थिति से उपजे मानवीय द्वंद को बड़े ही सहजता से अपनी रचना में उकेरा. बिना किसी खास विचारधारा और भेदभाव के उन्होंने सामाजिक यथार्थ को केंद्र में रखकर एक अनमोल साहित्य रचा. इनकी हर दूसरी रचना में रोजमर्रा की परिस्थितियों से संघर्ष करता हुआ पात्र आसानी से देखने को मिल जाता है. सहज भाषा में अपने मर्मस्पर्शी लेखन से एक आम पाठक का बड़ा वर्ग मन्नू भंडारी ने तैयार किया. इन्होंने अपने यथार्थवादी लेखन में महिला पात्रों को हमेशा केंद्र में रख, उनका चित्रण स्वतंत्र और सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ने वाले रुप में किया.

व्यक्तिगत जीवन
'आपका बंटी' और 'महाभोज' जैसी कालजयी कृति रचने वाली मन्नू भंडारी का जन्म मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले के भानपुरा गांव में 3 अप्रैल 1939 को हुआ था. पर परवरिश और प्रारंभिक शिक्षा राजस्थान के अजमेर शहर में हुई. कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक और बीएचयू से हिंदी में एम.ए की डिग्री हासिल की. वह वर्षों तक दिल्ली के मिरांडा हाउस में हिंदी की अध्यापिका रहीं और विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन में प्रेमचंद सृजन पीठ की अध्यक्षा भी रहीं.

मन्नू भंडारी का विवाह, हिन्दी के चर्चित साहित्यकार एवं पत्रिका हंस के संपादक राजेंद्र यादव से हुआ था. उनका वैवाहिक जीवन सफल नहीं रहा, पर दोनों ने एक दूसरे की निजता का हमेशा सम्मान किया. वहीं मन्नू भंडारी कभी अपनी इस वैवाहिक पहचान की मोहताज नहीं रहीं. पति राजेंद्र यादव के साथ मिलकर 1961 में पहला प्रयोगात्मक उपन्यास, एक इंच मुस्कान लिखा. 15 नवंबर 2021 को 90 वर्ष की आयु में इनका निधन हो गया.
 
रचना संसार
मध्यमवर्गीय स्त्री को केंद्र में रखकर 'मैं हार गई', 'तीन निगाहों की एक तस्वीर', 'एक प्लेट सैलाब', आंखों देखा झूठ और त्रिशंकु आदि रचना को पढ़ने के बाद उनके व्यक्तित्व की स्पष्टता होती हैं. वैवाहिक जीवन की त्रासदी से उपजी परिस्थितियों को केंद्र में रखकर, बच्चों की इर्द-गिर्द लिखा गया आपका बंटी आज भी अपने आप में एक क्लासिक हैं. बंटी के माध्यम से उन्होंने बाल मनोविज्ञान का सूक्ष्म विश्लेषण किया. हिंदी साहित्य में बाल मनोदशा का इतना बेहतर उदाहरण एकाध ही हैं.
 
वह अपनी कथाओं में सामाजिक जीवन के गिरते मूल्य, हिंसा और बढ़ते पुरुषवादी वर्चस्व को हमेशा ललकारती थी. नारी अस्मिता को लेकर हमेशा मुखर रही मन्नू भंडारी ने सामान्य औरतों की दास्तान को बड़ी मार्मिकता के साथ लिखा. अपने व्यक्तिगत जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अडिग रहने वाली मन्नू ने अपनी मां के माध्यम से तत्कालीन समाज के मानवीय मूल्यों की पड़ताल करते हुए तमाम कथ्यों को रचा. नारी उत्पीड़न को लेकर उनके मन में हमेशा एक स्वभाविक दर्द था. वह गांव-कस्बों से लेकर महानगर तक की स्त्री को एकसाथ जोड़ती थीं. उन्होंने जब लिखना शुरू किया, तब महिला रचनाकार साहित्य जगत में नाम मात्र की थीं. लेकिन उन्होंने अपने मध्यमवर्गीय सामाजिक दायरे को तोड़ते हुए अपनी रचना में भी स्त्री विषयक को ही केंद्र में रखा.

आजादी के बाद शिक्षित और कामकाजी महिलाओं का एक नए उभरे वर्ग के मानसिक अंतर्द्वंदों को केंद्र में रखकर उन्होंने अनमोल साहित्य रचा है. मन्नू भंडारी एक कुशल मनोवैज्ञानिक भी थीं, वह स्त्री जीवन की वह बेचैनी और उसके आंतरिक मनोदशा से भलीभांति परिचित थी. उन्होंने स्त्री जीवन की जटिलताओं, आकांक्षाओं और लालसाओं को एक बड़े कैनवास पर उतारने का काम बखूबी किया. 

टीवी लेखन
मन्नू भंडारी हर विधा में महारथ रखती थीं. उन्होंने दूरदर्शन के लिए प्रेमचंद की निर्मला और महादेवी वर्मा की लक्ष्मी धारावाहिक की पटकथाएं भी लिखी. तो 'रजनी' जैसा यादगार धारावाहिक भी लिखा. फिल्म 'रजनीगंधा' उनकी कहानी 'यही सच है' पर आधारित है और 'जीना यहां' उनकी दूसरी कहानी 'एखाने आकाश नेई' पर आधारित है. इसके अलावा उन्होंने फिल्म स्वामी की पटकथा भी लिखी, जो शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित थी.

पुरस्कार एवं सम्मान
2008 में मनु भंडारी को उनके आत्मकथा- एक कहानी यह भी के लिए, हिंदी में उत्कृष्ट साहित्यिक उपलब्धियों के लिए के.के. बिड़ला फाउंडेशन द्वारा स्थापित प्रतिवर्ष दिया जाने वाला व्यास सम्मान से सम्मानित किया गया.

ए.निशांत
लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं.

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