एक ऐसा इंकलाबी शायर जिसने लौटा दिया था पाकिस्तान का सबसे बड़ा अवार्ड, भारत से था खास लगाव
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एक ऐसा इंकलाबी शायर जिसने लौटा दिया था पाकिस्तान का सबसे बड़ा अवार्ड, भारत से था खास लगाव

अहमद फराज़ (Ahmad Faraz) सिर्फ़ पाकिस्तान ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान में भी काफ़ी मशहूर थे, और उनके कलाम का हर कोई दीवना था हो और आज भी है. फराज़ साहब को हिंदुस्तान की महमान नवाज़ी बड़ी पसंद आती थी.

एक ऐसा इंकलाबी शायर जिसने लौटा दिया था पाकिस्तान का सबसे बड़ा अवार्ड, भारत से था खास लगाव

नई दिल्ली: जब भी मॉर्डन उर्दू के शायरों की बात आती है तो अहमद फराज (Ahmad Faraz) का नाम पहली सफ़ में रहता है. अहमद फराज़ (Ahmad Faraz) शायरी का वोह नाम थे जिनकी मकबूलियत ना सिर्फ़ पाकिस्तान और हिंदुस्तान में थी बल्कि उन देशों में भी उन्हें पढ़ा और सुना जाता था जहां उर्दू सिर्फ नाम को थी. आज अहमद फराज़ (Ahmad Faraz) का जन्मदिन है और इस मौके पर हम आपको उनके बारे में बताने वाले हैं.

एक बार फराज साहब (Ahmad Faraz) ने अमेरिका में मुशायरा पढ़ा. मुशायरा खत्म होने के बाद उनके पास एक छोटी बच्ची आई. फराज़ साहब ने लड़की से उसका नाम पूछा. बच्ची ने कहा 'फराज़ा'. लड़की का नाम सुनकर फराज़ साहब को बड़ी हैरानी हुई, उन्होंने कहा ये कैसा नाम हुआ?, जिस पर लड़की ने कहा कि आप मम्मी-पापा के पंसदीदा शायर हैं और उन्होंने सोचा था कि लड़का होगा तो उसका नाम फराज़ रखेंगे. लेकिन उनको लड़की हुई तो मेरा नाम उन्होंने फराज़ा रख दिया. इसी किस्से को लेकर फराज़ साहब कहते हैं-

और 'फ़राज़' चाहिएँ कितनी मोहब्बतें तुझे 
माओं ने तेरे नाम पर बच्चों का नाम रख दिया 

पाकिस्तान में पैदा हुए थे अहमद फराज़
फराज अहमद का नाम सैयद अहमद शाह था. फराज़ उनका तखल्लुस (उपनाम) था. 12 जनवरी 1931 का वो दिन, पाकिस्तान के उस पठान परिवार ने शायद ही सोचा होगा कि उनके घर पैदा होने वाला बच्चा मुस्तकबिल में उर्दू की इतनी खिदमत करेगा. पाकिस्तान के नौशेरा में पैदा हुए अहमद फराज़ ने पेशावर यूनिवर्सिटी से तालीम हासिल की और वहीं काफ़ी वक्त तक रीडर भी रहे. उन्हें पाकिस्तान हुकूमत के ज़रिए सबसे बड़े सम्मान 'हिलाल-ए-इम्तियाज़' से नवाज़ा गया. लेकिन 2006 में उन्हेंने इस पुरुस्कार को वापस लौटा दिया क्योंकि वह सरकार की नीतियों से मुतमइन और मुत्तफिक नहीं थे. 

अपने वक्त के गालिब कहलाए जाने वाले फराज अहमद अकसर अपनी शायरी के ज़रिए सरकार पर तीखे हमले भी करते रहते थे. फराज़ साहब कहते हैं 
ये रसूलों की किताबें ताक़ पर रख दो फराज़,
नफरतों के ये सहीफे उम्र भर देखेगा कौन

अहमद फराज़ (Ahmad Faraz) सिर्फ़ पाकिस्तान ही नहीं बल्कि हिंदुस्तान में भी काफ़ी मशहूर थे, और उनके कलाम का हर कोई दीवना था हो और आज भी है. फराज़ साहब को हिंदुस्तान की महमान नवाज़ी बड़ी पसंद आती थी, वोह अकसर इसकी तारीफ किया करते थे. फराज़ कहते हैं- हिन्दुस्तान में अक्सर मुशायरों में शिरकत से मुझे ज़ाती तौर पर अपने सुनने और पढ़ने वालों से तआरुफ़ का ऐजाज़ मिला और वहां के अवाम के साथ-साथ निहायत मोहतरम अहले-क़लम ने भी अपनी तहरीरों में मेरी शे’री तख़लीक़ात को खुले दिल से सराहा. इन बड़ी हस्तियों में फ़िराक़, सरदार अली जाफ़री, मजरूह सुल्तानपुरी, डॉक्टर क़मर रईस, खुशवंत सिंह, प्रो. मोहम्मद हसन और डॉ. गोपीचन्द नारंग ख़ासतौर पर क़ाबिले-जिक्र हैं.

अहमद फराज के कुछ मशहूर शेर

अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें 
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें

दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है 
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता 

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं 
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं 

सुना है दर्द की गाहक है चश्म-ए-नाज़ उस की 
सो हम भी उस की गली से गुज़र के देखते हैं 

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