भूकंप ही नहीं अब फसलों के भी मिल सकेंगे भौगोलिक संकेत, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर कर रहा प्रयास
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भूकंप ही नहीं अब फसलों के भी मिल सकेंगे भौगोलिक संकेत, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर कर रहा प्रयास

Geographical Indications of Crops: हिमाचल प्रदेश में कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की ओर से फसलों के भी भौगोलिक संकेत मिलने के लिए तैयारी की जा रही है. गद्दी महिलाओं के अनूठे पारंपरिक आभूषण जीआई के लिए सूचीबद्ध, किसानों ग्रामीणों को इसका भरपूर लाभ मिलेगा. 

भूकंप ही नहीं अब फसलों के भी मिल सकेंगे भौगोलिक संकेत, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर कर रहा प्रयास

विपन कुमार/धर्मशाला: मौसम और भूकंप को लेकर भौगोलिक संकेत मिलने की बात तो आप सभी को मालूम है, लेकिन अब कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने हिमाचल प्रदेश की महत्वपूर्ण फसलों के भी भौगोलिक संकेत (Geographical indication) मिलने की कोशिश शुरू कर दी है. फसलों के साथ पारंपरिक गहनों को लेकर भी जीआई यानी भौगोलिक संकेत मिलने की पहल की जा रही है ताकि उसका लाभ किसानों के साथ ग्रामीणों को भी मिल सके. 

इन क्षेत्रों के उत्पादों को GI के लिए चुना गया
बता दें, फसलों और उत्पादों के मालिकों को इन विशिष्ट उत्पादों पर विशेष अधिकार मिले होते हैं. वे इन्हें बेचकर भरपूर लाभ ले सकते हैं. जानकारी के अनुसार प्रदेश के भरमौर, बरोट और किन्नौर के राजमाश, करसोग, शिलाई और चंबा क्षेत्र की उड़दबीन, करसोग की कुल्थी, कुल्लू, कांगड़ा और मंडी क्षेत्र के लाल चावल, चंबा की चूख, चंबा के प्राचीन आभूषण, जानवरों की नस्लें और उनके उत्पाद आदि को भौगोलिक संकेत (जीआई) के लिए चुना गया है.

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इन्हें किया गया सूचीबद्ध
गद्दी महिलाओं के अनूठे पारंपरिक आभूषण जैसे चाक और चिड़ी, चंद्रहार और चंपाकली, लौंग, कोका, तिल्ली और बालू, बुंदे, झुमके, कांटे, लटकनीय तुंगनी और कनफुल, गोजरू, टोके, कंगनू, स्नंगु, सिंघी और परी और भरमौर क्षेत्र से सफेद शहद जैसे औषधीय उत्पाद लाहौल स्पीति और किन्नौर से एफिड्स हनी ड्यू, जंगली मशरूम (कीड़ाजड़ी), स्पीति छरमा और ऊनी उत्पाद जैसे चारखानी पट्टू, डोहरू, पूडे और चीगू बकरी से पश्मीना आदि को जीआई के लिए सूचीबद्ध किया गया है.

चावल, जौ, राजमाश, कुल्थी, माह (उड़द) जैसी अच्छी फसलें हैं तो संभावित फसलें जैसे कुट्टू, चौलाई, बाथू (चेनोपोडियम), बाजरा, काला जीरा, ऑर्किड, बांस, चारा, लहसुन, अदरक, लाल अदरक, जिमीकंद, खीरा आदी के लिए कयूनिवर्सिटी का प्रयास है। काकड़ी, घंडियाली, मूली, ककोरा, तरडी, लिंगडू आदि और पहाड़ी मवेशियों में भैंस (गोजरी) जानवरों में स्पीति घोड़ा, स्पीति गधा, रामपुर-बुशैहर और गद्दी भेड़, चीगू और गद्दी बकरियां, हिमाचली याक, बर्फीली ट्राउट, गोल्डन महासीर, कार्प और हिल स्ट्रीम फिश आदि ने जीआई के लिए कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के लिए भी कोशिश की है.

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कुलपति प्रोफेसर हरिंद्र कुमार चौधरी ने दी जानकारी
इस बारे में कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रोफेसर हरिंद्र कुमार चौधरी ने बताया कि हिमाचल प्रदेश में खानपान और परिधानो में बहुत विविधता है. लोगों के पहनने वाले कपड़ों में बहुत विविधता है. पहाड़ों में पट्टू और दोड़ू एक अद्भुत परिधान है, जिसे पहनकर अगर कोई व्यक्ति ग्लेशियर में भी बैठा है तो उसे ठंड नहीं लगती है. 

हिमाचल प्रदेश की विविधता का शक्ति प्रदर्शन करने का प्रयास 
इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के 12 जिलो में विविधता से भरे आभूषणों को लोग बहुत पहनते हैं. उन्होंने कहा कि इन सारी विविधताओं को जीयोलॉजिकल इंडिकेशन (जीआई) करने के लिए हमारा कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर सजग है. उन्होंने कहा कि हमने जीआई टास्क फोर्स बनाई है, जो अलग-अलग समुदायों को फाइल की जा रही है. इसके साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर इसका रजिस्ट्रेशन किया जा रहा है ताकि पूरे विश्व को हिमाचल प्रदेश की इस विविधता का शक्ति प्रदर्शन कर सकें. 

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