कैथल के इस गांव में 160 साल से नहीं मनाई जाती होली, अंधविश्वास या कुछ और, जानें पूरी कहानी
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कैथल के इस गांव में 160 साल से नहीं मनाई जाती होली, अंधविश्वास या कुछ और, जानें पूरी कहानी

साल में एक बार आने वाला होली त्योहार आज देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. हर ओर होली की धूम है, लेकिन एक जगह ऐसी भी है जहां लगभग 160 साल से होली नहीं मनाई जाती. सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है.

बाबा स्नेहीलाल की समाधि

विपिन शर्मा/कैथल: साल में एक बार आने वाला होली त्योहार आज देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. हर ओर होली की धूम है, लेकिन एक जगह ऐसी भी है जहां लगभग 160 साल से होली नहीं मनाई जाती. सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है. कैथल जिले के गुहला-चीका उपमंडल के गांव दुसेरपुर में बीते करीब 160 साल से होली नहीं मनाई जाती है. 

यहां के लोगों का मानना है कि होली मनाने से कोई भी अनहोनी हो सकती है. गांव में होली फेस्टिवल न मनाए जाने के पीछे का कारण 160 साल पहले होली के ही दिन एक साधु का श्राप बताया जा रहा है. साधु के दिए गए श्राप से आशंकित ग्रामीण आज भी डरे हुए हैं और होली का त्योहार मनाने से बचते हैं.

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मांग पूरी न होने पर बाबा ने ले ली समाधि

साधु द्वारा दिए गए श्राप को लेकर ग्रामीणों में वैसे तो कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं लेकिन गांव की सीमा रानी, रमेश चंद्र शास्त्री, हुक्म चंद, मामू  राम, रमेश शर्मा के मुताबिक 160 साल पहले गांव में स्नेहीराम नाम का एक साधु रहता था, जिसका कद काफी कम था. बताया जाता है कि साधु स्नेहीराम ने होली के दिन गांव वासियों के सामने कोई मांग रखी थी, जिसे ग्रामीण पूरा नहीं कर पाए थे. ग्रामीणों के मुताबिक अपनी मांग पूरी न होने से गुस्साए बाबा स्नेहीराम ने होली के दिन समाधि ले ली थी. 

बच्चों की शरारत पड़ी भारी

इसके अलावा एक कथा यह भी प्रचलित है कि घटना के दिन गांव में होली के उल्लास का मौहल था और लोगों ने मिल जुलकर एक स्थान पर होलिका दहन के लिए सूखी लकड़ियां, उपले व अन्य समान इकट्ठा कर रखा था. होलिका दहन के तय समय से पहले गांव के ही कुछ युवाओं को शरारत सूझी और वे समय से पहले ही होलिका दहन करने लगे. युवाओं को ऐसा करते देख वहां मौजूद बाबा रामस्नेही ने उन्हें ऐसा करने से रोका चाहा, लेकिन उन युवकों ने बाबा के ठिगनेपन का मजाक उड़ाते हुए समय से पहले ही होलिका दहन कर दिया, जिसके बाद बाबा को गुस्सा आया और उन्होंने जलती होली में छलांग लगा दी.

तभी होलिका में जलते-जलते बाबा ने ग्रामीणों को श्राप भी दे दिया. बाबा ने श्राप देते हुए कहा कि आज के बाद इस गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाएगा. अगर किसी ने होली का पर्व मनाने की हिम्मत की तो उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा.

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श्राप से निजात पाने के लिए कही थी यह बात

सच्चाई कुछ भी रही हो लेकिन उस घटना के बाद से आज तक गांव में कोई भी होली का त्योहार नहीं मनाता. बताया ये भी जाता है कि लोगों ने बाबा से गलती के लिए माफी भी मांगी थी, जिसके बाद बाबा ने गांव वालों को श्राप से मुक्त होने का वरदान देते हुए कहा था कि अगर होली के दिन किसी भी ग्रामीण की गाय को बछड़ा या उसी दिन गांव की किसी  को लकड़ा पैदा होता है तो उन्हें श्राप से मुक्ति मिल जाएगी, लेकिन पिछले 160 वर्षों में होली के दिन गांव में न किसी गाय को बछड़ा पैदा हुआ और न ही किसी महिला को लड़का पैदा हुआ. बुजुर्गों द्वारा बताई गई रीतों का पालन करते हुए जहां कुछ ग्रामीण आज भी मीठी रोटी बनाकर बाबा स्नेहीराम की समाधि की पूजा करते हैं वहीं कुछ लोग बाबा की याद में केवल एक दीपक जलाते हैं. 

160  साल का लंबा वक्त बीत जाने के बाद भी आज तक गांव में होली का पर्व नहीं मनाया गया. स्थानीय लोगों ने बताया कि घटना के बाद उसी जगह पर बाबा की समाधि बना दी गई और लोगों ने उसकी पूजा करनी शुरू कर दी, जिसके चलते अब जब भी गांव में कोई शुभ कार्य होता है तो ग्रामीण सबसे पहले बाबा की समाधि पर माथा टेकते हैं और खुशहाली की दुआ मांगते हैं.

 

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