एसबीआई के कर्मचारियों ने सरकार से बैंकिंग अमेंडमेंट बिल को संसद में पेश न करने की मांग की है. उनका कहना है कि कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने से सरकारी बैंकों की सेवाओं में और तत्परता आएगी और उनसे होने वाला लाभ भी बढ़ेगा.
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रोहित कुमार/ हिसार : बैंकों का निजीकरण करने के लिए प्रस्तावित बिल के विरोध में आज दूसरे दिन भी हड़ताल का असर देखने को मिला. हिसार में लगभग 300 अधिकारियों और कर्मचारियों ने एसबीआई की मुख्य ब्रांच के सामने धरना देकर रोष प्रकट किया. उनका कहना है कि सरकार अड़ियल रवैया न अपनाए और यूएफबीयू से बैठकर बातचीत करे. उन्होंने बैंकिंग अमेंडमेंट बिल को संसद में पेश न करने की मांग की.
सरकार ले कॉरपोरेट्स लोन की गारंटी
यूएफबीयू के सह संयोजक राजेश पसरीजा ने बताया कि जिस तरह सरकार ने प्राइवेट बैंकों को सपोर्ट देने के लिए जमा राशि की बीमा रकम को 1 लाख से बढ़ाकर 5 लाख किया है, उसी प्रकार सरकारी बैंकों में कॉरपोरेट्स लोन की गारंटी सरकार ले, जिससे टैक्सपेयर्स की कमाई इन कॉरपोरेट लोन में डूबने से बचाई जा सके.
कर्मचारियों की कमी का मुद्दा उठाया
उन्होंने यह भी बताया कि जिस प्रकार प्राइवेट बैंकों में प्रति कर्मचारी पर 400 से 600 ग्राहक हैं, उसी तरह यह अनुपात सरकारी बैंकों में भी सुनिश्चित किया जाए, क्योंकि सरकारी बैंकों में प्रति कर्मचारी पर 1600 से 2000 ग्राहक हैं. कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने से सरकारी बैंकों की सेवाओं में और तत्परता आएगी और उनसे होने वाला लाभ भी बढ़ेगा.
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कर्मचारियों का कहना है कि बैंकों का निजीकरण करने से आम आदमी की पूंजी को तो खतरा है ही, साथ ही रोजगार के नए अवसर न के बराबर रह जाएंगे. इसके अलावा सरकार द्वारा चलाई गई चलाई गई जन कल्याणकारी नीतियों को भी ठीक से लागू नहीं किया जा सकेगा.
उनका कहना है कि ग्राहक अक्सर प्राइवेट बैंकों पर समय-समय पर अधिक सर्विस चार्ज लेने और सेवाएं न देने के आरोप लगाते रहते हैं. साथ ही इन पर आरटीआई भी लागू नहीं होता है. इसकी वजह से सरकार का भी उतना नियंत्रण नहीं रहता.
सरकार ने विनिवेश से जो रकम निर्धारित की है, उससे अपने आय के स्रोत बढ़ाने चाहिए और कॉरपोरेट्स से जल्द रिकवर करने के लिए कोई नीति बनानी चाहिए, ताकि आम जनता की मेहनत से कमाई हुई राशि को वापस लिया जा सके.