क्या बोरिस जॉनसन ख़तरा हैं ब्रिटेन के मुसलामानों के लिए?

कंजरवेटिव पार्टी के नेता बोरिस जॉनसन फिर जीत कर ब्रिटेन में सत्तारूढ़ हो गए हैं. लेकिन इस बार की उनकी जीत ने ब्रिटैन के मुसलमानो के भीतर भय पैदा किया है..  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 15, 2019, 03:59 PM IST
    • इस्लामोफोबिआ का आरोप ब्रिटिश मुसलमानों के डर की वजह
    • इस्लामोफोबिया है वैश्विक इस्लामिक कट्टरपन्थी का परिणाम
    • ब्रिटैन के बहुसंख्यक लोग बोरिस से प्रभावित
    • बोरिस का लक्ष्य मुस्लिम्स नहीं, ब्रेक्सिट है
क्या बोरिस जॉनसन ख़तरा हैं ब्रिटेन के मुसलामानों के लिए?

लंदन.  बोरिस जॉनसन जीत गए यूके में चुनाव. वो ही नहीं, उनकी कंज़र्वेटिव पार्टी ने भी इन ब्रिटिश चुनावों में भारी जीत दर्ज की है. ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री के तौर पर बोरिस जॉनसन की ये पहली पारी है, वे इसके पहले भी प्रधानमंत्री थे. किन्तु क्या ऐसी वजह है जिसने जॉनसन की वापसी से डरा दिया है ब्रिटेन में रहने वाले मुस्लिमों को? आइये जानते हैं:

ब्रिटेन के मुसलमानों के डर के पीछे इस्लामोफोबिआ  

ब्रिटैन एक आदर्श प्रजातांत्रिक राष्ट्र है जिसे विश्व में उसकी गैर-साम्प्रदायिक छवि के लिए जाना जाता है. दुनिया के शरणार्थी ब्रिटैन में न केवल शरण पाते हैं बल्कि उनके सम्मान में भी वहां कोई कमीं नहीं होती. ऐसे में ब्रिटैन के मुसलमानो का डर ज़ाहिर करता है कि बोरिस जॉनसन को लेकर वे सहज नहीं हैं. वजह सबसे बड़ी ये है कि बोरिस पर इस्लामॉफ़ोबिआ का आरोप लगाया जा चूका है.

इस्लामोफोबिया है वैश्विक इस्लामिक कट्टरपन्थी चेहरा

इस्लामोफ़ोबिया मुसलमानों के ख़िलाफ़ और उनके प्रति तर्कहीन भय या घृणा का पूर्वाग्रह है। इस्लामोफ़ोबिया दो शब्दों से मिलकर बना है. इस्लाम और फ़ोबिया जिसका हिंदी में शाब्दिक अर्थ होता है- इस्लाम का भय. इस्लाम से भयभीत होने का वैश्विक कारण दुनिया में इस्लामी कट्टरपंथी का सर उठाना है और इस भी से यदि बोरिस जॉनसन भी मुक्त न हो सके, तो कोई हैरानी की बात नहीं. 

 

ब्रिटैन के बहुसंख्यक लोग बोरिस से प्रभावित 

बोरिस की छवि उनके देश में ही नहीं दुनिया में भी साफ़ है. स्पष्टवादी और मृदुभाषी बोरिस अड़ियल और कट्टर रुझान के नेता नहीं हैं. आज ब्रिटैन में वे सबसे लोकप्रिय राजनेताओं में से एक हैं. 

बोरिस की पार्टी के भारी जनादेश का संकेत 

बोरिस जॉनसन की तरह ही उनकी पार्टी भी यूनाइटेड किंगडम की आज की सर्वाधिक लोकप्रिय पार्टी बन कर उभरी है. जिस तरह का जबरदस्त जनादेश कंजर्वेटिव पार्टी को ब्रिटिश चुनावों में इस बार प्राप्त हुआ है उसने पिछले बत्तीस सालों के कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए हैं. इसके पीछे न केवल पार्टी की विचारधारा और उनका काम है बल्कि बोरिस जॉनसन जैसे नेताओं की छवि भी पार्टी के इस राजनीतिक उत्कर्ष का कारण है.

बोरिस का लक्ष्य मुस्लिम नहीं, ब्रेक्सिट है 

ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी को भारी बहुमत यदि मिला है तो उसके पीछे एक बड़ा कारण ब्रेक्सिट भी है.  पीएम बोरिस जॉनसन ने पहले भी इसका वादा किया था और अब फिर कहा है कि इस बार उनकी पार्टी फिर एक नया जनादेश मिला है जिससे वह ब्रिटेन को यूरोपीय यूनियन से अलग करने वाले ब्रेक्जिट को लागू कर सकेंगे.

ब्रिटिश मीडिया मानती है कि बोरिस के आने से मुसलमान डरे  

ब्रिटिश मीडिया से मिल रही जानकारी के अनुसार इन चुनाव परिणामों के बाद वहां के मुस्लिमों को लेकर भी देश में बातें शुरू हो गई हैं. गैर-मुस्लिम समुदाय का कोई ऐसा बयान सामने नहीं आया है किन्तु ब्रिटिश-मुस्लिमों का कहना है कि नई जॉनसन सरकार के आने के बाद अब उनके समुदाय को अपने भविष्य की चिंता है.

मुस्लिम काउन्सिल ऑफ़ ब्रिटेन इस डर से असहमत नहीं

 मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन के महासचिव हारुन खान इस डर की बात पर सहमति की मुहर लगाते हैं. हारून कहते हैं कि जहां एक ओर सत्तारूढ़ कंजरवेटिव अपनी जीत का जश्न मना रही है, वहीं दूसरी ओर देश भर में मुस्लिम समुदाय में साफ़ तौर पर एक भय की भावना नज़र आ रही है.

भयभीत मुस्लिम काउन्सिल के सदस्य प्रधानमंत्री से मिले 

एक ब्रिटिश अखबार के अनुसार बोरिस पर इस्लामॉफ़ोबिआ के आरोप नई बात नहीं हैं. उन पर व्यक्तिगत रूप से इस्लामोफोबिया के आरोप पहले भी लगते रहे हैं. इसी डर से चिन्तित ब्रिटेन में ब्रिटिश-मुसलमानों के स्थान को आश्वस्त करने के लिए मुस्लिम काउंसिल ऑफ ब्रिटेन के प्रतिनिधि हाल में पीएम जॉनसन से मिले. 

मुस्लिम काउन्सिल ऑफ़ ब्रिटेन के प्रतिनिधि कहते हैं कि सत्तारूढ़ पार्टी और राजनीति में कट्टरता की चिंताओं के साथ उनकी संस्था ने चुनाव प्रचार अभियान में हिस्सा लिया था लेकिन जो परिणाम आया है उसमें तो अब वाली सरकार तो पहले से ही इस्लामोफोबिया से ग्रस्त है. हम अपने पीएम से प्रार्थना करते हैं कि वे इस फोबिआ से मुक्त हो कर सारे  ब्रिटेन के लिए कार्य करेंगे.

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