चीन को मकाऊ और ब्रिटेन को चिम्पैंजी पर भरोसा

कोरोना की काट निकालने के लिए पूरी दुनिया में कोशिश की जा रही है. चीन ने कोरोना वैक्सीन के टेस्ट के लिए मकाऊ बंदरों का तो ब्रिटेन ने चिम्पैंजी का का चयन किया है.   

Edited by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Apr 27, 2020, 08:37 AM IST
    • दुनिया भर में चल रही है कोरोना की वैक्सीन की तलाश
    • चीन में 8 मकाऊ बंदरों पर सफल प्रयोग
    • ब्रिटेन में चिम्पैंजी के बाद अब इंसानों पर कोरोना वैक्सीन की टेस्टिंग
    • अमेरिका, इजरायल और भारत में भी चल रहे हैं प्रयोग
    • 4 से 6 महीने में कोरोना की वैक्सीन आ जाएगी
चीन को मकाऊ और ब्रिटेन को चिम्पैंजी पर भरोसा

नई दिल्ली: पूरी दुनिया में बंदर प्रजाति के जीव मानव के सबसे करीब माने जाते हैं. इसलिए आदमियों के शरीर पर किसी दवा का प्रभाव जानने के लिए बंदर प्रजाति के जीवों पर इसका प्रयोग किया जाता है. चीन और ब्रिटेन दोनों कोरोना की काट के लिए वैक्सीन बना चुके हैं. अब इसकी टेस्टिंग चल रही है. 

चीन ने किया मकाऊ बंदरों का चुनाव
चीन से ये खबर आ रही कि वहां के वैज्ञानिकों ने पहले तो कोरोना वैक्सीन का टेस्ट चूहों  पर किया और अब मकाऊ बंदरों पर वैक्सीन का ट्रायल चल रहा है. चीनी कंपनी सिनोवैक बायोटेक के मुताबिक उसने अपनी वैक्सीन की दो अलग अलग खुराक रीसस मकाऊ प्रजाति के 8 बंदरों की दी है.ये बंदर लाल मुंह वाले भूरे रंग के होते हैं.

कंपनी का दावा है कि तीन हफ्ते पहले बंदरों को ये इजेक्शन दिए गए थे और उसके बाद जब बंदरों को वायरस के संपर्क में लाया गया तो उनके अंदर कोई संक्रमण पैदा नहीं हुआ. यानी  ये प्रयोग कामयाब रहा.

ये प्रयोग करने के लिए पहले इन सभी आठ बंदरों को वायरस से संक्रमित किया गया. उसके बाद चार बंदरों को वैक्सीन की ज्यादा खुराक दी गई और सात दिन बाद ये देखने को मिला कि उनके फेफड़ों में वायरस का संक्रमण बहुत कम हुआ है.

पूरी दुनिया की थी इस प्रयोग पर नजर
बंदरों पर होने वाले इस प्रयोग का नतीजा ये रहा कि वैक्सीन वाले 4 बंदरों ने वायरस पर काबू पा लिया. लेकिन बिना वैक्सीन वाले 4 बंदरों को निमोनिया हो गया. वैक्सीन की मदद से बंदरों ने कोरोना वायरस को मात दे दी पर जिन बंदरों को वैक्सीन नहीं मिला वो वायरस से नहीं लड़ पाए और उन्हें निमोनिया हो गया.

मकाऊ बंदरों पर प्रयोग प्रयोग कामयाब होने के बाद साइनोवैक बायोटेक कंपनी ने इंसानों पर इस वैक्सीन का ट्रायल शुरू किया और तीन दिन बाद 19 अप्रैल को ऑनलाइन सर्वर बायोरेक्सिव पर इस ट्रायल के नतीजे प्रकाशित कर दिए. हालांकि इस ट्रायल के नतीजों का दुनियाभर के वैज्ञानिक अभी अध्ययन कर रहे हैं. 

सिनोवैक कंपनी की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि 'वैक्सीन बनाने में रासायनिक रूप से निष्क्रिय नोवल कोरोना वायरस पैथोजन्स का इस्तेमाल किया जा रहा है जो असली बीमारी के खिलाफ शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाएगा' 

ब्रिटेन में चिम्पैंजी पर टेस्टिंग
उधर ब्रिटेन ने भी तीन महीने के अंदर कोरोना की वैक्सीन बना लेने का दावा किया है. ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जो वैक्सीन तैयार किया गया है उसमें इस्तेमाल किया गया वायरस एक चिम्पैंजी के शरीर से लिया गया है. बताया जा रहा है कि ये साधारण सर्दी जुकाम करने वाला वायरस है जिसे ऐडिनोवायरस कहते हैं और कोरोना की वैक्सीन में इस वायरस का एक कमज़ोर पड़ चुका स्ट्रेन काम में लिया जा रहा है.

ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिकों की इसी टीम ने इससे पहले कोरोना से मिलती-जुलती मर्स बीमारी के लिए टीका तैयार किया था.  तब टीम को उसके क्लीनिकल ट्रायल में अच्छे नतीजे मिले थे इसलिए इस बार भी वही प्रक्रिया दोहराई जा रही है.

ऑक्सफोर्ड के इस एडिनोवायरस वाले वैक्सीन का इंसानों पर परीक्षण शुक्रवार को शुरू हुआ और माइक्रो बॉयोलॉजिस्ट एलिसा ग्रैनेटो को पहला टीका लगाया गया. वैक्सीन के इंसानी ट्रायल के लिए एलिसा को आठ सौ लोगों में से चुना गया था. 

वैक्सीन तैयार करने वाली टीम ने बताया कि 'इस टीके को लेकर हमें पूरा भरोसा है.. बेशक हमें इसका इंसानों पर परीक्षण करना है और डेटा जुटाना है.. लेकिन, हमें यह देखना है कि यह वैक्सीन लोगों को कोरोनावायरस से बचाती है, इसके बाद ही हम लोगों को ये टीका दे सकेंगे'. 

कई देश कोरोना की वैक्सीन की तलाश में जुटे
कोरोना वायरस की वैक्सीन का चीन और ब्रिटेन के साथ अमेरिका, फ्रांस और इजरायल में भी इंसानों पर ट्रायल जारी है. चीन में कुल तीन वैक्सीन का इंसानों पर ट्रायल चल रहा है. जबकि अमेरिका में फार्मा कंपनी मॉडर्ना करीब डेढ़ महीने से वैक्सीन के ट्रायल का डेटा जमा कर रही है. 

इजराइल में इंस्टीट्यूट ऑफ बॉयोलोजिकल रिसर्च के 50 से ज्यादा वैज्ञानिक वैक्सीन बनाने में जुटे हैं. उधर फ्रांस की सेनोफी पाश्चर कंपनी भी कोरोना वैक्सीन के लिए लगातार काम कर रही है.

भारत में भी गुजरात की जायडस कंपनी का कोरोना की वैक्सीन पर प्रयोग जारी है. इसी कंपनी ने स्वाइन फ्लू की पहली वैक्सीन बनाई थी. 

इन सभी प्रयोगों को देखते हुए ये लग रहा है कि अगले 4-6 महीने में कोरोना की वैक्सीन तैयार हो सकती है. 

 

 

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