भोपाल: मध्यप्रदेश के नीमच जिले के खोर गाँव मे एक युवक महिलाओं को सस्ते और उच्च क्वालिटी के सैनिटरी नेपकिन पहुंचाने का बेड़ा उठा चुका है. भूपेंद्र खोईवाल जो की कहानी जो हर दिन अपनी टीम के साथ घर घर जाकर पैड बांटते हैं. खोईवाल ने यह काम कुछ महिला साथियों के साथ शुरू किया है. वे 15 महिलाओं को रोजगार देने के साथ साथ एक पैड पर मात्र एक रुपया कमाते हैं. इतने सस्ते दरों पर पैड सबतक पहुंचा कर वे अब तक 4 महीने में 24000 पैड दे चुके हैं.
सस्ती और उच्च क्वालिटी की होती हैं सैनिटरी नेपकिन
यूनिट में काम करतीं महिलाएं कहती हैं कि हम महिलाओं को बीमारियों से बचा रहे हैं. हमारा लक्ष्य है कि हम यह सेनेटरी पैड लाखों महिलाओं तक पहुंचाएं. भूपेंद्र खोईवाल जो कि इस यूनिट के संचालक हैं उन्होंने ही यह काम शुरू किया था. उनके साथ मिलकर ही हम सब यह काम कर रहे हैं. यहां बनाया और बेचा जाने वाला सैनिटरी पैड उच्च क्वालिटी का भी होता है और सस्ता भी होता है.
घर-घर जाकर बेचते और बांटते हैं पैड
भूपेंद्र से बात करने के बाद पता चला कि इनके बनाए सेनेटरी पैड किसी के मेडिकल स्टोर या जनरल स्टोर पर नहीं मिलते हैं, बल्कि यह लोग खुद घर घर जाकर महिलाओं तथा लड़कियों को सेनेटरी पैड देते हैं. साथ ही उनका पूरा रिकॉर्ड भी मोबाइल नंबर के साथ रजिस्टर में दर्ज रखते हैं.
भूपेंद्र का कहना है कि वह किसी अच्छे काम की तलाश में थे जिससे बिजनेस के साथ साथ लोगों की मदद भी किया जा सके. दरअसल, यह पूरा सिलसिला अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन को देखने के बाद शुरू हुआ.
अगर आपको है नौकरी की तलाश तो जरुर पढ़ें ये खबर
अक्षय की फिल्म देख ठान लिया नया पैडमैन बनना है
एक दिन भूपेंद्र ने अक्षय कुमार की फिल्म पैडमैन देखी ,बस उसी दिन से भूपेंद्र को धुन चढ़ गयी कि वह महिलाओं के लिए सेनेटरी पैड बनाने का काम करेंगे. भूपेंद्र ने जब यह बात अपने पिता को बताई तो उन्होंने साफ मना कर दिया, लेकिन जिद पर अड़े भूपेंद्र चार दिनों तक अपने घर ही नहीं गए और पिता से बात नही की. इसके बाद थक हार कर पिता ने हामी भर दी. भूपेंद्र ने अपने पिता से साढे तीन लाख रुपए लिए और सेनेटरी पैड बनाने का एक यूनिट खोर गांव में ही खोल दिया. जोश जोश में भूपेंद्र ने सेनेटरी पैड बनाने का यूनिट तो खोल दिया, लेकिन बड़ी समस्या यह थी कि उसे बेचा कैसे जाए. फिर भूपेंद्र ने एक तरीका अपनाया और अपने यूनिट की दो तीन महिलाओं को साथ लेकर घर-घर जाकर महिलाओं से गंदे कपड़े से होने वाले इंफेक्शन के बारे में चर्चा की ,उन्हें infection के खतरे भी बताए.
बचाइए पर्यावरण बनिए हीरो, प्लास्टिकर कचरा पूरी दुनिया के लिए बन चुका है मुसीबत
महिलाओं के संग मुफ्त में भी बांटे कई पैड
शुरुआती दौर में भूपेंद्र ने कई महिलाओं को मुफ्त सेनेटरी पैड भी दिए और दिन रात मेहनत करके धीरे-धीरे महिलाओं को माहवारी में होने वाले गंदे कपड़े के इंफेक्शन के बारे में जागरूक भी किया. तकरीबन 4 महीने में भूपेंद्र जहां एक ओर अपने यूनिट में 15 महिलाओं को रोजगार दे चुके हैं, वहीं लगभग 24000 पैड ग्रामीण महिलाओं तक पहुंचा भी चुके हैं. उन्होंने बताया कि वह 20 रुपए में 8 सेनेटरी पैड का पैक देते हैं, जिसमें वह सारी चीजें हैं जो इस रेट में अन्य सेनेटरी पैड में भी नहीं मिल पाती. महिलाओं को यह एक पैड मात्र ढाई रुपये में ही मिल जाती है.
यह मंदिर सिखाता है कि कैसे हर एक बूंद बचाकर अपनी धरती को निर्जल होने से बचाएं
गंदे कपड़े के इस्तेमाल से निजात दिलाने का रखा है लक्ष्य
इसमें उच्च किश्म की जेल शीट लेयर दी जाती है. भूपेंद्र के मुताबिक उन्हें एक पैकेट पर फिलहाल एक रुपए की ही कमाई होती है. लेकिन कमाई से ज्यादा उनकी रुचि महिलाओं को गंदे कपड़े से आजादी दिलाने में है. भूपेंद्र कहते हैं कि उनके इस सैनिटरी पैड बनाने के काम का लोग मजाक उड़ाते हैं, लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. उनका लक्ष्य है कि नीमच जिले की लगभग तीन लाख महिलाओं तक उनके सेनेटरी पैड पहुंच जाएं. भूपेंद्र की प्लानिंग कहीं न कहीं सार्थक यूं भी लगती है कि इससे महिलाओं को रोजगार तो मिल ही रहा है, साथ ही इनके बनाए हुए सैनिटरी पैड किसी मेडिकल या जनरल स्टोर पर नहीं मिलते. इन्हें बेचने का काम उसी कॉलोनी या बस्ती की कोई महिला करती है, जो पैड खरीदने वाली महिला का पूरा रिकॉर्ड भी मेंटेन रखती है.
मिशन में पूरी टीम लगी है घर-घर पैड पहुंचाने में
प्रतिदिन भूपेंद्र सुबह या शाम को अपने यूनिट पर काम करने वाली महिलाओं के साथ छोटी बस्तियों व मोहल्लों में जाते हैं और अपने पैड बेचने के साथ-साथ उन्हें कपड़े के इस्तेमाल से होने वाले खतरों के बारे में जागरूक भी करते हैं. भूपेंद्र ने एक लक्ष्य बनाकर अपना बिजनेस चालू किया है जिसमें महिलाओं की सुरक्षा और परेशानियों को खास महत्व दी गई है. उनका कहना है कि यकीनन वे चाहते तो कोई और भी बिजनेस खोल सकते थे, लेकिन उन्होंने महिलाओं की चिंता करते हुए उन्हें गंदे कपड़े से आजादी दिलाना अपना एक मिशन भी बनाया है, और इस मिशन में वो अकेले नहीं हैं. उनकी पूरी टीम उनके साथ है जो पैड बनाती भी है और घर घर तक पहुंचाती भी है.
भारत में 36 फीसदी महिलाएं ही कर पाती हैं सैनिटरी नेपकिन का इस्तेमाल
भारत में माहवारी में सैनिटरी नैपकिन इस्तेमाल न कर पाने की वजह से काफी मौतें भी होती हैं और समस्याएं तो अनगिनत हैं हीं. आंकड़ों पर नजर डालें तो पाएंगे कि देश में तकरीबन 36 फीसदी महिलाएं ही सैनिटरी नेपकिन का इस्तेमाल कर पाती हैं. गरीब या मध्यम परिवारों की महिलाएं माहवारी के दौरान गंदे कपड़े ही प्रयोग में लाती हैं. इसकी वजह से उन्हें हेपटाइटिस-बी, सर्वाइकल कैंसर, प्रजनन क्षमता में प्रभाव से लेकर कई गंभीर बीमारियां हो जाती हैं. इन बीमारियों की वजह से उनकी उत्पाद क्षमता और स्वस्थ्य बिगड़ने से न सिर्फ उन्हें बल्कि देश को भी नुकसान होता है. पूरे विश्व में हर साल माहवारी में इंफेक्शन से 8 लाख मौतें हो जाती थी. हालांकि, अब यह धीरे-धीरे घट तो रही है. लेकिन भारत में कुछ जगहों पर स्थितियां यूं ही बनी हुईं हैं.