जिसे जानलेवा रोग समझते रहे, वही दवा बन गया

एक वक्त था, जब भारत में ट्यूबरकुलोसिस(टीबी) यानी क्षय रोग असाध्य महामारी माना जाता था. आज जिस तरह कोरोना वायरस को लोग मौत का दूसरा नाम मानते हैं. उसी तरह किसी जमाने में टीबी होने पर मौत तय मानी जाती थी. लेकिन उसी बीमारी के टीके ने आज भारतीयों को मौत से मुंह में जाने से रोक रखा है.    

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 23, 2020, 06:16 PM IST
    • आखिर क्यों भारत में कोरोना का प्रभाव बेहद कम है?
    • कोरोना वायरस को भारत में पांव नहीं जमाने दे रहा है बीसीजी का टीका
    • भारत के बच्चों को जन्म के समय ही लगा दिया जा ता है बीसीजी का टीका
    • टीबी की बीमारी से बचाने के लिए लगाया जाता है टीका
    • अमेरिका यूरोप में टीबी की बीमारी है ही नहीं
    • इसलिए वहां के बच्चों को नहीं लगाया जाता टीबी का टीका
    • यही वजह है कि अमेरिका और यूरोप कोरोना से तबाह हो रहे हैं
जिसे जानलेवा रोग समझते रहे, वही दवा बन गया

नई दिल्ली: प्रकृति के हर कार्य के पीछे एक योजना होती है. खास तौर पर प्राकृतिक शक्तियों की उपासना करने वाले भारत में माता प्रकृति(Mother nature) अगर कोई कहर भी लाती है तो उसके पीछे भी कारण होता है. आज कोरोना वायरस पूरी दुनिया में मौत का कहर बरसा रहा है. लेकिन भारत में उसका प्रभाव नगण्य है. इसके पीछे भी कुदरत की योजना ही है. जिसने एक बीमारी के टीके को दूसरी बीमारी के सामने खड़ा कर दिया. 


देश में कोरोना संक्रमण पूरी दुनिया में सबसे कम  
आज भारत में कोरोना के संक्रमित मरीजों की संख्या सवा लाख को पार कर गयी है जबकि 3700 से अधिक  को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. लेकिन सच ये भी है कि भारत में संक्रमण की दर प्रति व्यक्ति दर सबसे कम है. 
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, भारत में कोरोना के कंफर्म मामलों का प्रतिशत 7.1 प्रति लाख है, जबकि विश्व में कोविड-19 के आंकड़ों की दर प्रति लाख पर 60 मरीज है. इसका मतलब है कि भारत में एक लाख लोगों में मात्र 7 लोग कोरोना से संक्रमित हो रहे हैं जबकि दुनिया में एक लाख लोगों पर 60 लोग कोरोना के मरीज मिल रहे हैं. 


विकसित देशों का है बुरा हाल 
डब्ल्यूएचओ (WHO) की ओर से जारी आंकड़ों  के मुताबिक 17 मई अमेरिका में कोरोना के कुल मामले 14 लाख 9 हजार थे, जबकि कंफर्म मामलों का दर 431 प्रति लाख था. रूस में कोविड-19 के कुल केस 2,81,752 दर्ज किये गए थे, वहां पर कंफर्म केसों की दर 195 प्रति लाख थी.
तीसरे स्थान पर ब्रिटेन है. ब्रिटेन में 17 मई तक कोरोना के कुल मामले 2 लाख 40 हजार दर्ज किये गए थे, जबकि पुष्ट केसों का प्रतिशत 361 है. इसके बाद इस लिस्ट में स्पेन, इटली, ब्राजील, जर्मनी, तुर्की, फ्रांस और ईरान जैसे देश शामिल हैं.
भारत में कोरोना के अप्रभावी होने का राज खुल गया
भारत में कोरोना वायरस इसलिए अप्रभावी साबित हो रहा है क्योंकि भारतीयों को बचपन से ही BCG यानी Bacillus Calmette-Guerin के टीके लगाए गए. ये टीका टीबी जैसी घातक बीमारी से बचाव के लिए नवजात शिशुओं को जन्म के समय लगाया जाता है. 
एक जमाना था,जब भारत में टीबी को बड़ी महामारी माना जाता था. उससे होने वाली मौतों की संख्या बेहद ज्यादा थी. जिससे निपटने के लिए सरकारी नीति के तौर पर नवजात शिशुओं को टीबी का टीका लगाया जाने लगा. 
लेकिन रुस, अमेरिका,इंग्लैण्ड जैसे देशों में कभी टीबी की समस्या रही ही नहीं. जिसकी वजह से वहां के नवजात शिशुओं को बीसीजी का टीका नहीं लगाया जाता था. लेकिन किसे पता था कि यही टीका एक दिन कोरोना वायरस के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार साबित होगा.

 
शोध के जरिए खुला ये राज
अमेरिका और ब्रिटेन के चिकित्सा शोधकर्ताओं ने 178 देशों के डेटा का विश्लेषण करके कोरोना वायरस के प्रसार पर एक शोध किया. जिसमें यह बात सामने आगई है कि BCG का टीका लगवाने वालों देशों में कोरोना के मामले 10 गुना कम पाये गए हैं. 
इस शोध में 178 देशों के आंकड़े एकत्रित करके उसका विश्लेषण किया गया. जिसमें पता चला कि बीसीजी टीकाकरण वाले देशों में कोरोना वायरस के पॉज़िटिव मामलों की दर 10 लाख में केवल 38.4 संक्रमित व्यक्तियों की थी. 
वहीं जिन देशों में BCG का टीका लगाने की प्रथा नहीं थी, वहां पर प्रति 10 लाख व्यक्तियों पर कोरोना संक्रमण के मामले 358.4 की थी. यानी बीसीजी टीका लगाने वाले देशों से लगभग 9 गुना ज्यादा. बीसीजी का टीका कोरोना से होने वाली मौतों को भी रोकता है. जिन देशों में BCG का टीका लगाया जाता है, वहां करोना से होने वाली मौतों की दर 4.28 व्यक्ति प्रति 10 लाख थी. जबकि विकसित देशों में यह दर 40 व्यक्ति प्रति 10 लाख रही. यानी कि लगभग 10 गुना.  
ये शोध मैटर मिसेरिकोर्डिया यूनिवर्सिटी अस्पताल, डबलिन के पॉल हेगर्टी और हेलेन ज़ाफिरकिस तथा बेयर कॉलेज ऑफ़ मेडिसिन, ह्यूस्टन के एंड्रयू डीनार्डो ने किया है. 
टीबी के खिलाफ भारत का बड़ा अभियान
भारत में टीबी एक खतरनाक बीमारी के रुप में जाना जाता है. अभी भी ये पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. अभी भी भारत में दुनिया भर के 40 फीसदी टीबी मरीज हैं. सरकार ने साल 2025 तक टीबी को खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है. 
देश में टीबी की इसी गंभीरता को देखते हुए साल 1948 से ही आक्रामक BCG के टीकाकरण अभियान को चलाया जाता रहा है. जिसकी वजह से भारतीयों की रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी विकसित हो गई है कि उसने कोरोना जैसे खतरनाक वायरस को भी मात दे दी. 
बीसीजी टीके की इसी कोरोना प्रतिरोधक क्षमता को देखते हुए हुए पुणे की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने कोरोना वायरस के खिलाफ टीका तैयार करने के लिए शोध करना शुरु कर दिया है. उम्मीद है इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे. 

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