Mahakumbh Haridwar का क्या है नागों से कनेक्शन, जानिए ये अद्भुत कथा

Haridwar में लगने वाला Mahakumbh अपने आप में कई पुण्य कथाओं को समेटे हुए है. कहानियों के सिलसिले में एक कड़ी जमीन के नीचे यानी पाताललोक से भी जुड़ती है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 18, 2021, 07:00 AM IST
  • नागमाता कद्रू और गरुण की मां विनता में हुआ था विवाद
  • इसी विवाद के कारण अमृत कलश लेने गए थे गरुणराज
Mahakumbh Haridwar का क्या है नागों से कनेक्शन, जानिए ये अद्भुत कथा

नई दिल्लीः Haridwar Mahakumbh 2021 में गंगा की जिस पवित्र धारा में श्रद्धालु डुबकी लगाएंगें, उन्हीं गंगा की एक धारा पाताल लोक में भी बहती है. गंगा की इसी धारा को पाताल गंगा कहते हैं. पाताल लोक का संबंध नागलोक से है. भगवान विष्णु की शेष शैय्या के शेष नाग और महादेव के कंठहार वासुकि इस लोक के स्वामी हैं. दोनों के ही अधिपति शिव और विष्णु हैं, जिनकी कथाएं महाकुंभ का आधार हैं. इसी वजह से नागलोक की भी एक दिव्य कथा ऐसी है जो पुराणों के आधार पर कुंभ आयोजन की कड़ी मानी जाती है.

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नागवंश और गरुण की कहानी

इस कथा के आधार पर यह माना जाता है कि देवताओं को सागर मंथन से अमृत प्राप्त हो चुका था. अमृत कुंभ से अमृत छलका और धरती पर गिरकर पवित्र नदियों के जल में मिल गया. इस रूपक के आधार को बताने के लिए कई अलग-अलग पौराणिक कथाओं की मान्यता है. नागलोक की कथा नागों और गरुण के बीच की शत्रुता की वजह बताने की भी है. दरअसल दोनों एक ही पिता की संतानें  हैं, लेकिन माताएं अलग-अलग हैं.

इस कारण गरुण और नाग आपस में सौतेले भाई-बहन हैं. दरअसल, ऋषि कश्यप ने प्रजापति दक्ष की आज्ञा से जीवों की उत्पत्ति के लिए उनकी कई पुत्रियों से विवाह किया था. इनमें से दिति से दैत्य, अदिति से आदित्य और देवता, कद्रू से नाग और विनता से गरुण का जन्म हुआ. जहां दिति और अदिति के पुत्रों में स्वर्ग के अधिकार को लेकर लड़ाई थी तो वहीं कद्रू और विनता के पुत्रों में वर्चस्व की लड़ाई थी.

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ऋषि कश्यप की दो पत्नियों में हुआ विवाद

वास्तव में यह लड़ाई दोनों के पुत्रों में नहीं बल्कि कद्रू और विनता के बीच ही थी. इसमें भी कद्रू ही ईर्ष्या के कारण विनता को कष्ट पहुंचाने की वजह खोजती रहती थी. एक दिन दोनों में विवाद इस बात पर हुआ कि सूर्य के अश्व काले हैं या सफेद. विनता ने पौराणिक संदर्भ दिए कि अश्व तो सफेद हैं, लेकिन कद्रू ने कहा कि पुराण का लिखा हुआ क्या कल सुबह प्रत्यक्ष देख लेना. दोनों अगली सुबह की प्रतीक्षा करने लगीं. इधर रात में कद्रू ने अपने नागपुत्रों को प्रेरित करके कहा कि वह जाकर सूर्य के अश्वों को ढंक लें. अगली सुबह जब सूर्योदय हुआ तो विनता को सूर्य के घोड़े काले दिखे. वह हार गई.

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इंद्र और गरुण की छीना-झपटी में छलका अमृत

दासी के रूप में अपने आप को असहाय संकट से छुड़ाने के लिए विनता ने अपने पुत्र गरुड़ से कहा कि तुम मुझे छुड़ाओ. इस पर गरुण अपनी सौतेली माता कद्रू के पास पहुंचे. कद्रू ने शर्त रखी कि नागलोक से वासुकि के द्वारा रक्षित किया जा रहा अमृत कलश अगर कोई  लाकर दे दे तो मैं  विनता को दासत्व से मुक्ति दे दूंगी.  गरुण नागमाता कद्रू की बात सुनकर नागलोक से अमृत लाने पहुंचे. वहां से उन्होंने अमृत हासिल कर लिया. इस पर वासुकि ने इंद्र को सूचित कर दिया. जब गरुण अमृत लेकर गंधमादन पर्वत की ओर उड़े तब इंद्र ने उन पर आक्रमण किया.

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इंद्र के प्रहार को बचाते-बचाते चार स्थानों पर अमृत गिर गया. वही चारों स्थान आज कुंभ आयोजन के तौर पर पवित्र हो गए.

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