Haridwar Mahakumbh 2021: मैसूर का कुंभ मेला, जो हर तीन साल पर लगता है

मैसूर के थिरमकुदालु नरसीपुर हर तीन साल पर ग्रहों की विशेष स्थिति होने पर कुंभ का आयोजन करता है. इसे यहां दैव्यम स्नान के तौर पर जाना जाता था. माघ मास में यहां पुराने समय से एक मेले जैसा आयोजन होता आ रहा था. जिसे पिछली शताब्दी में ही कुंभ के आयोजन के तौर पर पहचान दी गई है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 19, 2021, 10:16 AM IST
  • मैसूर में स्थित थिरमकुदालु नरसीपुर को दक्षिण का काशी कहा जाता है
  • तीन नदियों कावेरी, कपिला, स्पाटिका के संगम स्थल पर लगता है कुंभ
Haridwar Mahakumbh 2021: मैसूर का कुंभ मेला, जो हर तीन साल पर लगता है

नई दिल्लीः Haridwar Mahakumbh 2021 के साथ ही इस वक्त देवभूमि उत्तराखंड संतों और आध्यात्म की नगरी बनी हुई है. गंगा नदी के तट पर कुंभ का आयोजन युगों से लोगों को आकर्षित करता आया है. वहीं यमुना के तट पर वृंदावन का वैष्णव कुंभ भी अलग ही छटा बिखेरता है. कुंभ के निर्धारित ज्ञात चार स्थलों में सबसे अधिक महत्व प्रयागराज को दिया गया है.

तीन बड़ी और दिव्य नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल त्रिवेणी पर लगने वाला यह कुंभ आत्मिक शुद्धि का सबसे बड़ा महापर्व बनता है. इसी तरह दक्षिण भारत के कुंभकोणम पर लगने वाले महामहम कुंभ के अलावा कावेरी तट पर और भी कुंभ मेले आयोजित किए जाते हैं. 

मैसूर में थिरमकुदालु नरसीपुर का Kumbh
वास्तव में Kumbh या Mahakumbh महज चार स्थानों पर ही सीमित नहीं है. आज संस्कृति का केंद्र उत्तर भारत में है ऐसे में दक्षिण भारत का महत्व और बढ़ जाता है जहां से परंपराओं का विकास हुआ है. कुंभकोणम में लगने वाले Mahakumbh के अलावा मैसूर शहर में भी एक कुंभ आयोजित होता आ रहा है.

मैसूर जिले के थिरमकुदालु नरसीपुर का कुंभ आध्यात्म का ऐसा ही केंद्र है. यहां कावेरी, कपिला और स्पाटिका नदी के संगम तट पर श्रद्धालु पहुंचते हैं और Kumbh स्नान करते हैं. 

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दक्षिण का काशी है थिरमकुदालु नरसीपुर
थिरमकुदालु नरसीपुर को दक्षिण का काशी कहा जाता है. तीन नदियों के संगम स्थल के कारण इसकी महानता तीर्थराज प्रयाग के समान ही है. कहते हैं कि रामायण काल में यह पूरा क्षेत्र शूर्पणखा और उसके भाइयों खर-दूषण के अधिकार में आता था. यहीं से वे राक्षसी गतिविधियों का संचालन करते थे.

वनगमन के समय श्रीराम ने इस संगम क्षेत्र में स्थान किया था तबसे इसकी पवित्रता और बढ़ गई. इस स्थान के महादेव शिव और उनके पुत्र गणेश ने पवित्र बताया है. महर्षि कपिल के प्रवास के समय यहां उनका आश्रम था. राक्षसों के कारण जब यह सारी भूमि अपवित्र हो गई तब ऋषियों और सप्तऋषियों की सहायता से यहां सभी तीर्थों को बुलाया गया. वे अपने पवित्र जल के साथ प्रकट हुए और इस संगम स्थान को पवित्रता प्रदान की. 

हर तीन साल पर आयोजित होता है कुंभ
इन्हीं पौराणिक आधार पर थिरमकुदालु नरसीपुर हर तीन साल पर ग्रहों की विशेष स्थिति होने पर कुंभ का आयोजन करता है. इसे यहां दैव्यम स्नान के तौर पर जाना जाता था. माघ मास में यहां पुराने समय से एक मेले जैसा आयोजन होता आ रहा था. जिसे पिछली शताब्दी में ही कुंभ के आयोजन के तौर पर पहचान दी गई है.

कुंभकोणम में 12 साल के बाद लगने वाले Mahakumbh के लिए नरसीपुर का कुंभ एक Timer की तरह है. जब यहां तीन साल के कुंभ आयोजित हो जाते हैं तब 12 साल का कुंभ कुंभकोणम में आयोजित होता है. 

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नदी के प्रति समाज का आभार है Mahakumbh
नदियों के किनारे कुंभ लगना यह बताता है कि पानी की लहरों के किनारे से ही समाज के बसने की शुरुआत हुई थी. इस तथ्य को इतिहास भी बताता है. संसार की बड़ी से बड़ी सभ्यताएं नदियों के किनारे ही पनपी. मिस्त्र की सभ्यता को नील नदी ने सींचा, सिंधु सभ्यता को सिंधु नदी ने.

आज भारत में गंगा-यमुना, कावेरी, कृष्णा, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी और क्षिप्रा जैसी बड़ी नदियों के किनारे कई-कई महानगर आबाद हैं. कई छोटे-छोटे गांव इन्हीं से पोषण पा रहे हैं. कुंभ मेले के दौरान विकसित हो रहा समाज एक बार फिर नदी की ओर लौटता है. वह इस गहरे जल में उतर कर नदियों का आभार जताता है. Mahakumbh जैसे आयोजन इसी आभार और धन्यवाद का प्रतीक हैं. 

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