ईसा मसीह के इंडिया कनेक्शन पर पर्दा डालता है साम्राज्यवादी चर्च

आज क्रिसमस है. यानी जीसस क्राइस्ट का जन्मदिन. जिसे पूरी दुनिया में मनाया जा रहा है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जीसस मूल रुप से एक भारतीय परंपरा में दीक्षित संत थे. जिन्होंने पश्चिम में जाकर अपनी ज्ञान की पताका फहराई. लेकिन भारत से जीसस क्राइस्ट के संबंधों पर जानबूझ कर पर्दा डालकर रखा गया है. क्योंकि इससे चर्च के साम्राज्यवादी मंसूबों को नुकसान पहुंचने की आशंका है. 

Written by - Anshuman Anand | Last Updated : Dec 26, 2019, 10:18 AM IST
    • भारतीय परंपरा के संत थे जीसस क्राइस्ट
    • चर्च ने जीसस के इंडिया कनेक्शन को छिपाया
    • भारत से ही जीसस ने ग्रहण की थी शिक्षा
    • यही जीसस की मौत का भी कारण बना
    • जीसस के मूल विचारों पर साम्राज्यवादी चर्च ने पर्दा डाला
ईसा मसीह के इंडिया कनेक्शन पर पर्दा डालता है साम्राज्यवादी चर्च

नई दिल्ली: पूरी दुनिया को प्रेम का संदेश देने वाले जीसस क्राइस्ट की महानता पर कोई सवाल नहीं उठा सकता. लेकिन उनके जीवन के बारे में कई अहम बातें छिपा ली गई हैं. जो यह दर्शाती हैं कि वह मूल रुप से भारतीय परंपरा के वाहक थे. लेकिन चर्च ने जीसस के इंडिया कनेक्शन पर जानबूझकर भ्रम का पर्दा डाल रखा है. 

जीसस के विचारों पर भारत का प्रभाव 
जीसस क्राइस्ट के इंडिया कनेक्शन का सबसे बड़ा सबूत उनके मूल विचार हैं. जो कि उस समय की पश्चिमी दुनिया के विचारकों से मेल नहीं खाते हैं.   

 ईसा मसीह ने साफ तौर पर कहा है कि 'अतीत के पैगंबरों ने तुमसे कहा था कि यदि कोई तुम पर क्रोध करे, हिंसा करे तो आंख के बदले में आंख लेने और ईंट का जवाब पत्थर से देने को तैयार रहना. लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि अगर कोई तुम्हें चोट पहुंचाता है, एक गाल पर चांटा मारता है तो उसे अपना दूसरा गाल भी दिखा देना.' 

खुद ओल्ड टेस्टामेन्ट में ईश्वर के हवाले से लिखा गया है ‘मैं कोई सज्जन पुरुष नहीं हूं, तुम्हारा चाचा नहीं हूं. मैं बहुत क्रोधी और ईर्ष्यालु हूं, और याद रहे जो भी मेरे साथ नहीं है, वे सब मेरे शत्रु हैं.’

लेकिन जीसस का संदेश स्पष्ट था कि ‘मैं तुमसे कहता हूं कि परमात्मा प्रेम है.’

लेकिन जीसस के ये विचार सेमेटिक परंपरा(एक पैगंबर एक किताब) से भिन्न थे. जिसकी वजह से उन्हें सलीब पर चढ़ाए जाने जैसी क्रूर सजा का सामना करना पड़ा. 

क्योंकि रोमन साम्राज्य के अधिकारी और आम लोग भले ही समझ नहीं पाए लेकिन चतुर यहूदी रबाईयों ने जान लिया था कि ये पूरब के सनातनी विचार हैं. इनका प्रसार हुआ तो तत्कालीन रुढ़िवादी समाज पर उनकी पकड़ ढीली पड़ जाएगी. यही वजह थी कि उन्होंने रोमन साम्राज्य के तत्कालीन प्रशासक पांटियस के कान भरकर जीसस को क्रॉस पर लटकवा दिया. 

इन लेखकों ने भी दिया है जीसस के इंडिया कनेक्शन का सबूत
एक फ्रांसीसी लेखक मिगुएल सेर्रानो की किताब ‘’दि सर्पेंट ऑफ पैराडाइज’’ में दावा किया गया कि जीसस का शुरुआती जीवन भारत में बीता था. इसके लेखक ने भारत के कई इलाकों की यात्राएं करके यहां जीसस से तुड़े तथ्य संकलित किए. बाद में इस फ्रांसीसी यात्री ने ‘’सेंट जीसस’’ नामक एक पुस्‍तक लिखी. जिसमें उसने अपनी यात्राओं के बारे में बताया

इस लेखक का दावा है कि जीसस तिब्बत, लद्दाख तथा पूर्व के कई देशों में आए थे। जहां ईसा मसीह ने बौद्ध ग्रंथों के जरिए सनातन ज्ञान के बारे में जाना. लेखक का ये भी दावा है कि कश्मीर के एक खास इलाके के लोगों के बीच ऐसी मान्यता है कि जीसस तिब्बत से होते हुए लद्दाख पहुंचे फिर वहां से चलकर, ऊंची बर्फीली पर्वतीय चोटियों को पार करके कश्‍मीर के पहलगाम पहुंचे. जिसका अर्थ है ‘’गड़रियों का गांव’’. जहां रहकर ईसा ने ज्ञान हासिल किया. जिसका प्रसार यहां से लौटने के बाद उन्होंने पश्चिमी दुनिया में किया. माना जाता है कि यहां रहकर जीसस क्राइस्ट ने योग का भी अभ्यास किया था. 

इसके अलावा निकोलस नाटोविच नामक एक रूसी यात्री सन 1887 में भारत यात्रा पर आया. लद्दाख जाकर वह बीमार पड़ गया था. इसलिए उसे वहां प्रसिद्ध ‘’हूमिस-गुम्‍पा‘’ में ठहराया गया. वहां पर उसने बौद्ध साहित्‍य का अध्ययन किया. उन किताबों में जीसस की भारत यात्रा का जिक्र मिला. इन बौद्ध ग्रंथों में जीसस के उपदेशों की भी चर्चा की गई है. 

ईसा मसीह के आखिरी दिनों के बारे में ‘ओशो रजनीश’ अपनी किताब ‘द सायलेंट एक्सप्लोजन’ के अध्याय ‘दि अननोन लाइफ ऑफ जीसस’ में लिखा है कि "तुम्हें जानकर आश्चर्य होगा कि अंतत: उनकी(जीसस की) मृत्यु भी भारत में हुई! और ईसाई रिकार्ड्स इस तथ्य को नजरअंदाज करते रहे हैं. 

अमेरिकी लेखक होल्गर कर्स्टन ने अपनी किताब ‘जीसस लिव्ड इन इंडिया’ किताब में ईसा के भारत प्रवास का जिक्र किया है. 

रामकृष्ण परमहंस के शिष्य और स्वामी विवेकानंद के गुरुभाई स्वामी अभेदानंद ने 1922 में लद्दाख के होमिज मठ तक यात्रा की थी. जहां उन्होंने अपनी आंखों से जीसस के जीवन से संबंधित साक्ष्यों को देखा. स्वामी अभेदानंद के संस्मरण बांग्ला भाषा में ‘तिब्बत ओ कश्मीर भ्रमण’ में संकलित हैं. 

''एन ऑटोबायोग्राफी और योगी'' के लेखक स्वामी परमहंस योगानंद ने अपनी दो किताबों ‘द सेकेंड कमिंग ऑफ क्राइस्ट’ और ‘रेजरेक्शन ऑफ क्राइस्ट विदिन यू’ में जीसस के भारत आने की घटनाओं के बारे में बताया है. उनकी किताबों के अंशों को लांस एंजिलिस टाइम्स और द गार्जियन जैसे अमेरिकी अखबारों ने छापा था. 

भारत के भविष्य के बारे में बताने वाले भविष्यपुराण के एक श्लोक में भी तिब्बत में जीसस की शकराज से हुई मुलाकात का वर्णन है- ‘म्लेच्छदेश मसीहो हं समागत। ईसा इति मम् नाम प्रतिष्ठितम्’.

जीसस के मूल विचारों को ढंकने की कोशिश 
आधुनिक चर्च ने अपने ही पैगंबर जीसस क्राइस्ट के मूल विचारों को ढंकने की कोशिश की है. जीसस क्राइस्ट के निजी जीवन के बारे में हाल ही में सनसनीखेज खुलासे हुए. दरअसल साल 1945 में उत्तरी मिस्र के नाग हम्मदि शहर में एक बर्तन में रखी हुई 12 दुर्लभ किताबें मिलीं. जिन्हें 1500 साल पहले सुरक्षित रखने के लिए दफन कर दिया गया था. 

इसमें आर्माइक भाषा में लिखी हुई 'लॉस्ट गॉस्पेल' मिली. साल 2014 में लंदन स्थित ब्रिटिश लाइब्रेरी के प्रोफेसर बैरी विल्सन और लेखक सिम्चा  जैकोबोविक ने काफी परिश्रम करके इसका अनुवाद किया. इसमें संत थॉमस के अतिरिक्त ल्यूक और मेरी मैग्डलेन के भी सूत्र हैं. 

लेकिन यह अनुवाद चर्च द्वारा प्रचारित ईसाईयत के लिए बेहद खतरनाक हैं. क्योंकि इसमें सनातन धर्म की ही तरह मनुष्य की अंत:प्रज्ञा को सर्वोपरि माना गया है. ना कि चर्च या किसी अनदेखे ईश्वर को. संत थॉमस के लिखे हुए ये सूत्र मनुष्य को उसकी आंतरिक चेतना की ओर उन्मुख करते हैं. 

'द लॉस्ट गॉस्पेल' बाइबिल का हिस्सा नहीं हैं. इसमें जीसस के वे अछूते शब्द हैं जो पिछले 2000 हजार सालों से रहस्य के अंधेरों में छिपे हुए थे. इन सूत्रों में मनुष्य की अंतश्चेतना को उसकी सद्गति का आधार माना गया है. या फिर यूं कहें कि यह उपनिषदों की आध्यात्मिक शिक्षा (सोsहं, तत्वमसि, अयमात्मा ब्रह्म, तत्सत्) का उद्घोष करते हैं. 

'द लॉस्ट गॉस्पेल' इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि जीसस क्राइस्ट भारतीय परंपरा के वाहक संत थे. जिन्हें चर्च ने साजिश करके उनकी मूल भूमि भारत से काटने की कोशिश की है. 

क्यों रची गई जीसस को भारत से काटने की साजिश? 
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि जिस जीसस क्राइस्ट को चर्च ने अपने साम्राज्यवाद का आधार बनाया. उन्हें लगभग 300 सालों तक देवपुत्र माना ही नहीं गया. जीसस की मौत के 325 साल बाद नायसिया(वर्तमान तुर्की) में एक परिषद् बुलाई गई, जिसमें जीसस के देवत्व के बारे में आधिकारिक रुप से घोषणा की गई थी. 

वस्तुत: रोमन साम्राज्य ने ही चर्च के जरिए जीसस क्राइस्ट के देवत्व की घोषणा करके उन्हें अपना लिया. जिससे कि उन्हें अपने साम्राज्य के प्रसार के लिए जीसस क्राइस्ट के प्रेम और स्नेहपूर्ण विचारों का आधार मिल सके. 

हालांकि ये बात अलग है कि जीसस के प्रेम का साम्राज्य फैलाने के नाम पर चर्च ने 'क्रूसेड' के नाम से भयानक युद्ध लड़े. जिसमें बड़ी संख्या पर मानवता का संहार किया गया. 

जीसस क्राइस्ट के भारत से संबंध और उनपर सनातनी विचारों के प्रभाव पर इसलिए पर्दा डालने की कोशिश की गई क्योंकि अगर ईसा मसीह के भारत में बिताए गए प्रारंभिक और आखिरी जीवन के बारे में सबको पता चल जाता तो भला चर्च को कोई क्यों महत्व देता. 

इससे रोमन साम्राज्य यानी कैथोलिक चर्च के विशाल आर्थिक और भौगोलिक साम्राज्य खड़ा करने के मंसूबों को कड़ी चोट पहुंचती. 

खास बात ये है कि आज भी चर्च का केन्द्र वेटिकन सिटी है. जो कि प्राचीन रोमन साम्राज्य(आधुनिक काल के इटली के शहर रोम) में ही स्थित है. 

लेकिन वर्तमान सूचना क्रांति के युग में जीसस क्राइस्ट के इंडिया कनेक्शन पर से पर्दा उठने लगा है. उपर दिए गए तथ्यों के आधार पर अब तो यह सबको स्वीकार करना पड़ेगा कि जीसस क्राइस्ट भारतीय संत थे और उनके नाम पर किया जा रहा धर्म परिवर्तन और खूनी जंगें बिल्कुल नाजायज हैं. क्योंकि प्रेम और स्नेह का संदेश देने वाले जीसस क्राइस्ट अपने जीते जी इसे कतई स्वीकार नहीं करते.  

 

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