अनिल अंबानी के अर्श से फर्श तक के सफर की ब्यौरेबार कहानी

जब कोई सफलता के शीर्ष पर पहुंचता है तो उसके लिए कहते हैं कि यहां आना एक दिन की बात नहीं है. विडंबना है कि यह पंक्तियां अनिल अंबानी के लिए बिल्कुल उल्टे तौर पर कही जाती हैं. दरअसल हुआ भी ऐसा ही है. संपत्ति के बंटवारे के बाद जब दोनों भाइयों को संपत्ति बंट गई तो दोनों के पास खुली संभावनाएं थीं.

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Mar 4, 2020, 06:58 PM IST
    • धीरूभाई अंबानी का रिलायंस ग्रुप 28000 करोड़ का था. 2005 में जब इसका बंटवारा हुआ तो मुकेश और अनिल के हिस्से इसका आधा-आधा भाग आया
    • अनिल अंबानी ने साल 2005 में ऐडलैब्स और 2008 में ड्रीमवर्क्स के साथ करार किया
अनिल अंबानी के अर्श से फर्श तक के सफर की ब्यौरेबार कहानी

नई दिल्लीः 16 नवंबर 2019 को अनिल अंबानी ने अपनी मुख्य कंपनी रिलायंस कम्यूनिकेशंस के डायरेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया था. 2008 में अनिल अंबानी विश्व के छठे सबसे अमीर शख्स थे, लेकिन ऐसी नौबत आ गई कि लगातार घाटे की वजह से उन्हें रिलायंस कम्यूनिकेशंस का यह महत्वपूर्ण पद छोड़ना पड़ा.

इस बड़ी कंपनी को टेलिकॉम की दुनिया में क्रांति लाने के लिए याद किया जाता है, लेकिन अब सिर्फ इसे याद ही किया जा सकेगा. क्योंकि कंपनी को दिवालिया प्रक्रिया से गुजरना पड़ा. अंबानी और दिवालिया ? बहुत सारे प्रश्न तैर जाते हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यही कि आखिर जिस सीढ़ी से मुकेश अंबानी सफलता की ओर चढ़े, अनिल अंबानी नीचे कैसे उतर आए...

अनिल अंबानी का फर्श पर आना एक दिन की बात नहीं
जब कोई सफलता के शीर्ष पर पहुंचता है तो उसके लिए कहते हैं कि यहां आना एक दिन की बात नहीं है. विडंबना है कि यह पंक्तियां अनिल अंबानी के लिए बिल्कुल उल्टे तौर पर कही जाती हैं. दरअसल हुआ भी ऐसा ही है. संपत्ति के बंटवारे के बाद जब दोनों भाइयों को संपत्ति बंट गई तो दोनों के पास खुली संभावनाएं थीं,

जबकि कहा यह गया कि अनिल अंबानी के पास अच्छे और बेहतर मौके हैं. फिर भी बड़े भाई मुकेश के बजाय छोटे अंबानी पिछड़ते चले गए. हालत यह रही कि जहां से चले, लौटकर वहां भी नहीं पहुंचे हैं. अनिल अंबानी के जीवन में जो घटा, डालते हैं एक नजर-

खुली थीं संभावनाएं, फिर भी पिछड़े
धीरूभाई अंबानी का रिलायंस ग्रुप 28000 करोड़ का था. 2005 में जब इसका बंटवारा हुआ तो मुकेश और अनिल के हिस्से इसका आधा-आधा भाग आया. अनिल के हिस्से तब टेलिकॉम सेक्टर आया था. यह सेक्टर मुनाफे कमाने की असीम संभावनाओं के साथ घिरा था.

इसी के साथ अनिल अंबानी के लिए भी संभावनाएं खुली थीं, क्योंकि बंटवारे में तय हुआ कि अगले 10 साल तक मुकेश अंबानी टेलिकॉम इंडस्ट्री में दखल नहीं देंगे. विशेषज्ञ इस पर अपनी टिप्पणी रखते हुए कहते हैं कि अनिल अंबानी ने तब CDMA तकनीक का चुनाव किया.

साबित हुआ अदूरदर्शी चयन
उस समय का यह अदूरदर्शी चयन था. रिलायंस इन्फोकॉम की शुरुआत 2002 में हुई थी. उनके प्रतिस्पर्धी कंपनियों में थीं एयरटेल, हच (जो बाद में वोडाफोन बनी) जिन्होंने GSM तकनीक को चुना. यह दौर भारत में 4G की शुरुआती नींव रखने वाला था. CDMA तब 2G-3G नेटवरर्क पर ही सपोर्ट करता था. भारी निवेश के बाद भी अनिल इसमें पिछड़ते चले गए.

चौतरफा हाथ आजमाना भी पड़ा भारी
अनिल अंबानी ने साल 2005 में ऐडलैब्स और 2008 में ड्रीमवर्क्स के साथ करार किया. ड्रीमवर्क्स के साथ उनका करार 1.2 अरब डॉलर का था. फिर उन्होंने इन्फ्रॉस्ट्रक्चर के बिजनेस में भी हाथ डाल दिया. हालांकि इंटरटेनमेंट और इन्फ्रॉस्ट्रक्चर में अनिल अंबानी को खासी बढ़त नहीं मिली और 2014 आते-आते उनकी पॉ़वर इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियां बड़े कर्ज में डूब गईं.

यहीं से शुरु हुआ कर्ज चुकाने के लिए कंपनियों को बेचने का दौर, लेकिन कई कंपनियां घाटे में होने और बिजनेस कुछ खास न हो पाने के कारण कंपनियों को बेचना भी काम नहीं आया. एक साथ कई जगह हाथ आजमाना नुकसान दे गया.

2013 में एरिक्सन से किया सौदा, साबित हुआ घाटे का 
आरकॉम ने एरिक्सन से 2013 में एक समझौता किया था. समझौते के मुताबिक एरिक्सन को रिलायंस के मोबाइल फोन टावर, फिक्स्ड टेलीफोन लाइन, ब्रॉडबैंड, वायरलेस वॉयस और डेटा आदि काम संभालने थे. समझौता 7 साल के लिए हुआ. लेकिन इसी बीच आरकॉम घाटे में आ गई.

मई, 2018 में नैशनल कंपनी लॉ अपीलिएट ट्रिब्यूनल ने एरिक्सन की आरकॉम के खिलाफ दायर तीन दिवालिया याचिकाएं मंजूर कर लीं. एरिक्सन ने आरोप लगाया कि आरकॉम ने उससे काम करा लिया और उसके 1100 करोड़ रुपये नहीं दे रही है. 

2014 से बढ़ी अनिल अंबानी की मुश्किलें
अनिल अंबानी की मुश्किलें 2014 में बढ़ने लगीं और एक रिपोर्ट के मुताबिक, सितंबर 2018 में ग्रुप पर कुल 1.72 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था. दोनों भाइयों में बंटवारे के बाद अनिल अंबानी के अधीन वाली रिलायंस ग्रुप कंपनीज का मार्केट कैप मार्च 2008 में 2 लाख 36 हजार 354 करोड़ था. फरवरी 2019 में घटकर यह 24 हजार 922 करोड़ पर पहुंच गया.

2016 में मुकेश जियो ले आए
अनिल अंबानी तो 2014 से ही वित्तीय संकट में घिरे थे. उन्हें उबरने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था. इसी के साथ 2016 में उस शर्त को 10 साल पूरे हो गए जिसके तहत मुकेश अंबानी अब तक टेलिकॉम सेक्टर से बाहर थे. मुकेश अंबानी पूरे दमखम के साथ इस सेक्टर में आए और साथ में जियो की आंधी ले आए.

एयरटेल, वोडाफोन जैसी बड़ी टेलिकॉम कंपनियां तो एकाएक घाटे में जाने लगीं. अनिल अंबानी के बिजनस के लिए भी यह बड़ा झटका था. बीते कुछ सालों में अनिल अंबानी को बिग सिनेमा, रिलायंस बिग ब्रॉडकास्टिंग और बिग मैजिक जैसी कंपनियों को बेचना पड़ा है.

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एरिक्सन से पहले सेटलमेंट फिर मुकेश ने बचाया था
2018 में जब एरिक्सन कोर्ट पहुंची थी तो इस पर आरकॉम ने भी एरिक्सन के खिलाफ नेशनल कंपनी लॉ अपीलिएट ट्राइब्यूनल में अपील की. ऑरकॉम ने दिवालिया प्रक्रिया का विरोध किया. कहा कि उसकी रिलायंस जियो और ब्रुकफील्ड के साथ असेट्स बेचने की बात चल रही है.

वह पैसे चुका देगी. इस पर दोनों कंपनियों के बीच सेटलमेंट हो गया. आरकॉम ने एरिक्सन को 550 करोड़ रुपये देने का वादा किया, लेकिन यह रकम अनिल अंबानी 30 सितंबर 2018 तक नहीं चुका सके थे. इस पर एरिक्सन सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. हालांकि तब तो मुकेश अंबानी ने बड़े भाई बनकर कर्ज अदा किया और अनिल को बचा लिया था. 

मुकेश अंबानी ने साबित किया है कि बड़ा आखिर बड़ा ही होता है

एक बार फिर मुकेश अंबानी ने साबित किया बड़प्पन
तमाम विवादों, मुकेश अंबानी के खिलाफ मानहानि जैसे मुकदमे करने के बावजूद अनिल अंबानी को आखिरी सहारा मिला तो फिर से बड़े भाई के कंधे पर ही. अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन्स (RCom) के दिवाला प्रक्रिया को एसबीआई बोर्ड ने मंजूरी दे दी है.

इस तरह एकबार फिर उन्हें भाई का साथ मिला. बड़े भाई मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस जियो आरकॉम के टॉवर और फाइबर बिजनस को खरीदेगी. इसके बदले कंपनी 4700 करोड़ देने को तैयार है. आरकॉम पर 82000 करोड़ का भारी कर्ज है.

 

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