संसाधनों पर बढ़ रहा है आबादी का बोझ, लेकिन मुस्लिम सांसद समझने को नहीं तैयार

जहां एक ओर पूरा देश और राज्य सरकार जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कोई सार्थक पहल करने की कोशिश में लगी हुई है, वहीं असम के ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट( AIUDF) के बदरूदीन अजमल ने जनसंख्या पर विवादास्पद बयान दे् दिया है.

Last Updated : Oct 29, 2019, 09:23 AM IST
    • मुस्लिम सांसद का विवादास्पद बयान
    • मुसलमानों को ज्यादा बच्चे पैदा करने के लिए भड़काया
    • देश के संसाधनों पर बढ़ रहा है आबादी का बोझ
    • लेकिन मुस्लिम सांसद समझने के लिए नहीं तैयार
संसाधनों पर बढ़ रहा है आबादी का बोझ, लेकिन मुस्लिम सांसद समझने को नहीं तैयार

नई दिल्ली: AIUDF प्रमुख बदरूदीन ने कहा कि मुस्लिम बंधु असम सरकार के जनसंख्या नियंत्रण के लिए बनाए गए नियम का पालन नहीं करेंगे. अजमल ने सरकार को आगाह करते हुए कहा कि मुस्लिम जितने बच्चे चाहें, पैदा करेंगे. प्रकृत्ति के बनाए गए नियमों का हवाला देते हुए अजमल ने बेतुका तर्क गढ़ते हुए कहा कि उस नियम से खिलवाड़ करने वाली सरकार कौन होती है. वे इस बात को नहीं मानेंगे. 

क्या है पूरा मामला? 
दरअसल, ये पूरा बखेड़ा असम सरकार की जनसंख्या नियंत्रण को लेकर पारित कराए गए नियम के बाद शुरू हुआ. असम की सर्वानंद सोनोवाल सरकार ने पिछले दिनों फैसला किया कि जनवरी 2021 से वैसे लोग जो दो से ज्यादा बच्चे रखते हैं, उन्हें कोई भी सरकारी सुविधा नहीं दी जाएगी. इसके अलावा सरकारी नौकरी से भी उन्हें वंचित रखा जाएगा. असम सरकार ने साल 2017 में विधानसभा में "असम जनसंख्या और महिला सशक्तिकरण नीति" का एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें राज्य के निवासियों को टू चाइल्ड पॉलिसी  पर उतारने का रोडमैप तैयार किया था.  

इस्लाम में बच्चे रखने की आजादी: अजमल
इसी नियम का विरोध करते हुए असम के ढ़ुबरी सांसद बदरूदीन अजमल ने कहा कि "असम सरकार सरकारी नौकरियों की पहुंच मुस्लिमों तक घटाने के लिए यह नियम ला रही है". साचर कमिटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि "मुश्किल से दो फीसदी मुस्लिम ही सरकारी नौकरी ले पाते हैं जबकि मुस्लिम समुदाय में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या पूरे विेश्व में लगातार बढ़ रही है. इसके अलावा अजमल ने कहा कि इस्लाम धर्म ने उन्हें यह आजादी दी है कि वे जितना चाहें, उतने बच्चे रख सकते हैं. कोई उन्हें रोक नहीं सकता, असम में भाजपा सरकार भी नहीं."

वोटबैंक की तरह इस्तेमाल करने का है प्लान

बदरूदीन अजमल का यह बयान तब आया जब पूरा देश जनसंख्या विस्फोट या यूं कहें कि कम संसाधनों पर अत्याधिक जनसंख्या का दबाव झेल रहा है. इससे न सिर्फ सरकारी नौकरियां बल्कि पृथ्वी पर मौजूद सभी संसाधनों की पहुंच लोगों तक मुश्किल में हो चली है. AIUDF प्रमुख के इस विवादास्पद बयान के बाद सोशल मीडिया से लेकर मीडिया में उनकी आलोचनाएं हो रही हैं. लोगों ने कहा कि मुस्लिम की आबादी को बढ़ावा देने का पक्ष रखने वाले बस उसे वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल करने की चाह रखते हुए यह सब कह रहे हैं. 

तेजी से बढ़ी है आबादी और प्रजनन दर
भारत फिलहाल विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश है. लेकिन जो सबसे परेशानी का सबब है वह है इसकी वृद्धि दर. 1951 के जनगणना में भारत की पूरी आबादी 3 करोड़ 61 लाख थी, जो 2011 की जनगणना में 17 फीसदी की तेजी से बढ़कर 121 करोड़ से भी ज्यादा तक पहुंच चुका है. इस जनसंख्या में हिंदू आबादी 79.8 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी 14.23 फीसदी है. वहीं 2.3 फीसदी ईसाई तो 1.72 फीसदी सिख हैं. दिलचस्प बात यह है कि 1951 के सेंशस में हिंदू 84 फीसदी से भी अधिक थे जबकि मुस्लिम आबादी 9 फीसदी ही थी. इसके अलावा कुल प्रजनन दर यानी एक महिला से कितने बच्चे के आंकड़ें के मुताबिक हिंदू फर्टिलिटी दर 2.7 तो मुस्लिम की 3.1 है. वहीं ईसाई की प्रजनन दर 2.4 तो सिख का 2 है.  

जनसंख्या नियंत्रण जागरूकता कार्यों को प्रभावित कर सकता है अजमल का बयान
भारत में जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए पहले से ही कई राज्यों में तमाम तरीके अपनाए जा रहे हैं. समाजिक स्तर पर महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा शिक्षित कर जागरूक करने का प्रयास अब तक सकारात्मक परिणाम दिखा रहा है. इसके अलावा परिवार नियोजन, शिक्षित किए जाने जैसे प्रोग्रामों के अलावा स्वयं पर नियंत्रण के तरीके भी मुख्य रूप से अपनाई जा रही है. ऐसे में बदरूदीन अजमल के बेतुके बयान से इन प्रयासों पर पानी फिर सकता है. असम से पहले भी कई राज्यों ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर कुछ कड़े रूख अख्तियार किए थे लेकिन कभी राजनीतिक कारणों की वजह से तो कभी समाजिक कारणों की वजह से उन्हें बीच में ही समझौता करना पड़ा.

मध्यप्रदेश में नप गए थे दो ADJ
मध्यप्रदेश मे जनसंख्या नियंत्रण कानून को इसी फॉर्मूले पर लागू किया गया था. इसके तहत राज्य के दो एडिशनल जिला जजों अशरफ अली और मनोज कुमार को सरकारी नौकरी से निष्कासित कर दिया गया था, लेकिन बाद में उन्हें हाइकोर्ट के आदेशानुसार दोबारा सर्विस में बहाल कर लिया गया. असम में उपजा यह विवाद क्या नया मोड़ लेता है, यह देखना दिलचस्प होगा. 

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