देहरादून: लगभग चार साल तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभालने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत की पारी का मंगलवार शाम चार बजे अंत हो गया. मंगलवार शाम रावत ने अपना इस्तीफा राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को सौंप दिया. इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने इस्तीफे का औपचारिक तौर पर ऐलान कर दिया.
अपने गठन के 20 साल के अंतराल में 9 मुख्यमंत्री देख चुके इस पहाड़ी राज्य के 10वें मुख्यमंत्री की तलाश जारी है. ऐसे में भाजपा की विधायक दल की होने वाले राज्य के 10वें मुख्यमंत्री का चयन होगा. राज्य के पर्यवेक्षक रमन सिंह और दुष्यंत गौतम देहरादून में हैं और इनकी देख-रेख में ही राज्य का नया सीएम चुना जाएगा. ऐसे में जानते हैं कि कौन-कौन हैं राज्य का नया मुख्यमंत्री बनने की रेस में...
धन सिंह रावत
सीएम पद की रेस में धन सिंह रावत सबसे आगे चल रहे हैं, वो सबसे बड़े उम्मीदवार के रूप में उभरे हैं. धन सिंह रावत त्रिवेंद्र कैबिनेट में उच्च शिक्षा मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में काम कर रहे थे और उन्होंने त्रिवेंद्र सिंह का करीबी भी माना जाता है. नो संघ के भी करीबी माने जाते हैं. राज्य में उनकी पहचान एक जमीनी नेता की है.
ऐसे में अगले साल होने वाले चुनाव के लिए पहाड़ से ताल्लुक रखने वाले जमीनी नेता से मुफीद और कोई व्यक्ति नहीं हो सकता. इसीलिए उनके दावे में दम दिख रहा है. त्रिवेंद्र सिंह का करीबी होना भी उनके लिए फायदे का सौदा होगा और पार्टी में संभावित फूट को भी रोका जा सकता है.
सतपाल महाराज
कांग्रेस की हरीश रावत सरकार के खिलाफ साल 2016 में बगावत का बिगुल फूंककर भाजपा का दामन थामने वाले सतपाल महाराज का नाम भी मुख्यमंत्री के दावेदारों में लिया जा रहा है. कांग्रेस की सरकार को गिराने की जब कोशिश की गई थी तब सतपाल महाराज की पत्नी अमृता विधायक थीं.
हालांकि भाजपा में उनकी पकड़ मजबूत तो हुई है लेकिन कांग्रेस की पृष्ठभूमि उनके लिए परेशानी का सबब बन सकती है.
अनिल बलूनी
उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी का नाम भी मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में शामिल है. बलूनी को पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का करीबी माना जाता है जो कि उनकी दावेदारी को अन्य उम्मीदवारों ज्यादा प्रबल बना देता है.
बलूनी राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख की भूमिका में हैं और केंद्र की राजनीति में ज्यादा सक्रिय रहे हैं यही उनके लिए चुनाव से एक साल पहले कमजोर पहलू साबित हो सकता है.
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अजय भट्ट
भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और नैनीताल से मौजूदा लोकसभा सांसद अजय भट्ट भी सीएम बनने की रेस में शामिल हैं. उन्होंने राज्य के पूर्व सीएम हरीश रावत को लोकसभा चुनाव में पटखनी देकर अपनी लोकप्रियता साबित कर दी थी. 2017 में वो सीएम बनने के दावेदारों में से एक थे लेकिन जातीय समीकरणों की वजह से तब बाजी त्रिवेंद्र रावत के हाथ लगी थी.
उत्तराखंड की राजनीति में कुमाऊं और गढ़वाल के बीच भौगोलिक और ब्राह्मण- क्षत्रिय संतुलन बनाया जाता है. ऐसे में किसी एक क्षेत्र को एक साथ अध्यक्ष और सीएम का पद देकर आलाकमना राज्य के संतुलन को नहीं बिगाड़ना चाहेगी. यही समीकरण एक बार फिर अजय भट्ट के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. जो कि पार्टी के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में घातक साबित हो सकता है. भट्ट के सीएम बनने से गढ़वाली मतदाता नाराज हो सकते हैं और पार्टी फिलहाल ये रिस्क नहीं लेना चाहेगी.
रमेश पोखरियाल निशंक
रमेश पोखरियाल निशंक साल 2009 से 2011 तक राज्य की कमान संभाल चुके डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को अनिर्णय की स्थिति में राज्य की कमान दी जा सकती है. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उनका कार्य संतोषजनक रहा है ऐसे में आलाकमान उन्हें चुनाव से पहले वापस उत्तराखंड भेजने का निर्णय लेगी ऐसा कम ही लग रहा है.
लेकिन निशंक के सीएम बनते ही एक बार फिर पहाड़ बनाम मैदान की जंग शुरू हो जाएगी. जो कि किसी भी सूरत में पार्टी के लिए चुनावी साल में ठीक नहीं होगी.
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