'ढोल, गंवार शूद्र, पशु नारी' : रामचरित मानस में राम ने कभी नहीं कही यह बात, फिर भी क्यों हो रहा है विरोध

क्या रामचरितमानस में यह बात भगवान राम ने कही है? इस चौपाई का उल्लेख कहां पर है यानी मानस के किस कांड में? किस संदर्भ में इस चौपाई का उल्लेख किया गया है?   

Edited by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 3, 2023, 08:07 AM IST
  • रामचरितमानस की चौपाई पर विवाद.
  • स्वामी प्रसाद मौर्य ने दिया है विवादित बयान.
'ढोल, गंवार शूद्र, पशु नारी' : रामचरित मानस में राम ने कभी नहीं कही यह बात, फिर भी क्यों हो रहा है विरोध

नई दिल्ली. हिंदू धर्म के सर्वाधिक मान्य और पूज्य ग्रंथों में से एक रामचरित मानस को लेकर इस वक्त जमकर विवाद हो रहा है. पहले बिहार के मंत्री से शुरू हुई बात यूपी में स्वामी प्रसाद मौर्य तक पहुंच गई. बीजेपी ने घेरा तो अखिलेश यादव खुद मौर्य के समर्थन में उतर आए. स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा था कि राम चरित मानस में समाज के कुछ हिस्सों अपमानित महूसस होता है. उनकी बात का इशारा राम चरित मानस की चौपाई- 'ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी...सकल ताड़ना के अधिकारी' पर था.

मौर्य के इस बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी ने सपा को घेरना शुरू कर दिया. इसे लेकर राजनीतिक बहस जारी है क्योंकि खुद अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद मौर्य का बचाव किया है. लेकिन इस सारे विवाद के बीच यह जानना जरूरी है कि क्या रामचरितमानस में यह बात भगवान राम ने कही है? इस चौपाई का उल्लेख कहां पर है यानी मानस के किस कांड में? किस संदर्भ में इस चौपाई का उल्लेख किया गया है. यह सब जानना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जब भी राजनीतिक बहस की शुरुआत होती है तो हमेशा उल्लेख होता है कि यह चौपाई रामचरित मानस में उद्धत है. कई बार यह भ्रम भी बनता है कि यह बात भगवान राम ने कही है!

मानस में किसने कही यह बात, कहां मिलता है प्रसंग
रामचरित मानस के सुंदर कांड में यह चौपाई उद्धृत है. और यह बात भगवान राम से समुद्र कहता है. प्रसंग यह है कि भगवान राम अपनी वानर सेना के साथ लंका पर चढ़ाई करने की तैयारी कर रहे हैं. समुद्र पार करने के लिए भगवान राम ने समद्र से राह मांगी. लेकिन तीन दिन बीत जाने के बावजूद समुद्र ऐसा करने को तैयार नहीं हुआ. ऐसा न होने पर गोस्वामी तुलसीदास ने राम के भीतर गुस्से का चित्रण किया है.

सुंदरकांड में समुद्र के पार जाने का प्रसंग
सुंदरकांड का दोहा नंबर 57 कहता है- 'विनय न मानत जलधि जड़ गए तीनि दिन बीति, बोले राम सकोप तब भय बिनु होई न प्रीति.'  इसका अर्थ है- तीन दिन बीत गए किंतु जड़ समुद्र विनय नहीं मानता. तब श्रीराम क्रोध सहित बोले- बिना भय के प्रीति नहीं होती है.

इसके बाद राम भाई लक्ष्मण से धनुष मांगते हैं और कहते हैं कि समुद्र को सुखा डालूंगा. इसके बाद जैसे ही राम ने धनुष का संधान किया तो भय के कारण समद्र के प्रकट होने का जिक्र आता है.

समुद्र ने कही है यह बात
इसके बाद ही चौपाई आती है जिसमें समुद्र भगवान राम से माफी मांगते हुए कहता है-प्रभु भल कीन्ह मोहि सिख दीन्ही, मरजाता पुनि तुम्हरी कीन्ही. ढोल गंवार शुद्र पसु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी. यानी समुद्र कहता है- प्रभु आपने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी. लेकिन मर्यादा (जीवों का स्वभाव) भी आपकी बनाई हुई है. ढोल गंवार शूद्र पशु और नारी सभी ताड़ना के अधिकारी हैं. चूंकि इस चौपाई की पहली लाइन में समुद्र सिख या फिर शिक्षा का जिक्र करते हैं. इसी क्रम में वो ढोल गंवार शूद्र पशु और नारी को ताड़ना का अधिकारी यानी नजर रखने की बात कहते हैं.  इसी चौपाई को लेकर हालिया विवाद खड़ा हुआ है.

यह भी पढ़िए: संसद में उठेगा अडाणी ग्रुप पर धोखाधड़ी के आरोपों का मुद्दा, विपक्षी दलों ने जताई सहमति

Zee Hindustan News App: देश-दुनिया, बॉलीवुड, बिज़नेस, ज्योतिष, धर्म-कर्म, खेल और गैजेट्स की दुनिया की सभी खबरें अपने मोबाइल पर पढ़ने के लिए डाउनलोड करें ज़ी हिंदुस्तान न्यूज़ ऐप.

ट्रेंडिंग न्यूज़